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    09-12-2022:महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु प्रातः राजभवन स्थित राज प्रज्ञेश्वर महादेव मंदिर में विधिवत पूजा अर्चना के साथ रुद्राभिषेक किया।

    • प्रारंभ तिथि : 09/12/2022
    • समाप्ति तिथि : 09/12/2022
    • स्थान : Rajbhawan uttarakhand, Dehradun

    महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने शुक्रवार को उत्तराखण्ड प्रवास के दूसरे दिन प्रातः राजभवन स्थित राज प्रज्ञेश्वर महादेव मंदिर में विधिवत पूजा अर्चना के साथ रुद्राभिषेक किया।
    इसके बाद राष्ट्रपति ने राजभवन स्थित नक्षत्र वाटिका का उद्धाटन किया व पलाश के पौधे का रोपण भी किया।
    नक्षत्र वाटिका में 27 नक्षत्रों से संबन्धित 27 पौधों को स्थान दिया गया है जिसमें कुचिला, आंवला, गूलर, जामुन, खैर, अगर, बांस, पीपल, नागकेसर, बरगद, ढ़ाक, पाकड़, चमेली, बेल, अर्जुन, हर श्रृंगार, मौलश्री, सेमल़, साल, सीता अशेक, कटहल, मदार, शमी, कदम्ब, नीम, आम, महुआ पौधे शामिल हैं, जो कि भारतीय आध्यात्म, प्राचीन ज्ञान और प्रकृति संरक्षण का अनूठा मिश्रण है।

    इस दौरान राज्यपाल लेफ़्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) एवं प्रथम महिला श्रीमती गुरमीत कौर समेत मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी, सचिव श्री राज्यपाल डॉ. रंजीत कुमार सिन्हा मौजूद रहे।

    नक्षत्र वाटिका का संक्षिप्त विवरण

    आध्यात्मिक, प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक के रूप में राजभवन देहरादून में “नक्षत्र वाटिका” की स्थापना की गई है। प्राचीन काल से धरती के ऊपर आकाश को 360 डिग्री में बाँटा गया है। यदि हम 360 डिग्री को 27 भागों में बाँटते हैं तो इसकी प्रत्येक इकाई 13.33 डिग्री (13 डिग्री 20 मिनट ) के रूप में आती है। इस प्रत्येक इकाई का एक नक्षत्र बनाया गया है। अब यदि 360 डिग्री को 12 भागों (राशियों) में बांटते हैं तो प्रत्येक राशि चिह्न 30 डिग्री के रूप होता है। जिससे हम 12 अलग-अलग राशियों के नाम से जानते हैं।
    प्रत्येक नक्षत्र को 4 चरण या पाद में समान रूप से विभाजित किया जाता है। इन नक्षत्रों की पहचान आसमान के तारों की स्थिति व विन्यास से की जाती है, जिस प्रकार समुद्र में प्रवाह मान जहाज की स्थिति देशांतर रेखा व्यक्त करती है उसी भांति पृथ्वी के निकट भ्रमण पिण्डों (ग्रहों) की स्थिति नक्षत्रों द्वारा व्यक्त की जाती है। नक्षत्र वाटिका में इन्हीं 27 नक्षत्रों से संबन्धित 27 पौधों को स्थान दिया गया है जो कि भारतीय आध्यात्म, प्राचीन ज्ञान और प्रकृति संरक्षण का अनूठा मिश्रण है।
    इन्हीं 27 नक्षत्रों के माध्यम से भारतीय ज्योतिष में नवग्रहों और 12 राशियों की स्थिति और चाल का आंकलन किया जाता है। प्रत्येक ग्रह एवं राशि के लिए भी एक वनस्पति अथवा पौधे की पहचान की गई है। इसीलिये वाटिका में 9 ग्रहों, 12 राशियों से संबधित पौधो तथा त्रिगुणात्मक देव के प्रतीक के रूप में तीन पौधों, कुल 51 पौधों को स्थान दिया गया है। इन नक्षत्रों, ग्रहों तथा राशियों से सम्बन्ध रखने वाले वृक्षों के नाम आयुर्वेदिक, पौराणिक, ज्योतिषीय ग्रन्थों में मिलते है, इन ग्रन्थों में वर्णन है कि जन्म नक्षत्र के वृक्ष की सेवा व वृद्धि करने से मनुष्य का कल्याण होता है।
    ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति को उसके नक्षत्र एवं राशि से सम्बन्धित पौधे को लगाकर उसकी देखभाल करनी चाहिए। यह भी माना जाता है कि यह सभी वृक्ष प्रजातियाँ अन्य प्रजातियों की तुलना में अधिक ऑक्सीजन प्रदान करती हैं और इसलिए इन वृक्षों के पास बैठने से सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। इन वृक्षों की प्रजातियाँ एंटीऑक्सीडेन्ड, फ्लेवोनोइड, तारपीन व टैनिन नामक द्वितीयक चयापचयों (Secondary metabolites) से समृद्ध हैं और इनका प्रयोग पारम्परिक उपचार प्रणालियों में व्यापक रूप से किया जाता है। राजभवन नक्षत्र वटिका के रूप में इन प्रजातियों के संरक्षण से जैव विविधता को समृद्ध करने की अनुपम पहल है।
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