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    प्रोफ़ाइल-माननीय राज्यपाल

    ले ज गुरमीत सिंह, पीवीएसएम,यूवाईएसएम,एवीएसएम,वीएसएम(से नि)
    पूर्व डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ

    सेवानिवृति   –  31 जनवरी 2016

    जन्मतिथि     –  1 फरवरी 1956

    जन्मस्थान    –   जलाल उस्मा, अमृतसर, पंजाब

    प्रारंभिक शिक्षा – सैनिक स्कूल,कपूरथला, पंजाब

    भारतीय सेना में अपनी सैन्य दक्षता और निपुणता के लिए अलग पहचान रखने वाले ले0ज0 गुरमीत सिंह वर्तमान में उत्तराखण्ड प्रदेश के राज्यपाल पद को सुशोभित कर रहे हैं। श्री सिंह का व्यक्तित्व वीरता, शौर्य, साहस, दया, करूणा, सादगी, ईमानदारी का एक अद्भूत संगम है। इनके विचार वास्तव में इन्हे प्रतिष्ठा और सम्मान का हकदार बनाते हैं। प्रभावशाली व्यक्तित्व में सरलता, सादगी और प्रसिद्धी का अद्भूत संयोग इनके जीवन में देखने को मिलता है।

    सैन्य जीवन में बड़े-बड़े कठोर निर्णय लेने में माहिर श्री सिंह सोच से विस्तृत, आत्मा, हृदय और विचारों से कोमल हैं। सभी के प्रति दया, प्रेम और स्नेह रखने वाले हैं।

    जाति, धर्म, वर्ग को भूलकर सिर्फ आत्मा और परमात्मा को देखने वाला नजरिया इनके पास है। सिख धर्म के तीन गुण दया, सादगी और ईमानदारी को पूरी तरह अपने निजी जीवन में आत्मसात करने वाले श्री गुरमीत सिंह जी में सैन्य योग्यता और सौम्य व्यक्तित्व का अनोखा मिश्रण है। ये हर किसी के दिल को करीब से छू जाते हैं। उत्तराखण्ड के राज्यपाल बनने के बाद ही देशप्रेम की भावना, और राज्य की सेवा के अपने दृष्टिकोण को पहले ही संदेश में स्पष्ट कर चुके हैं।

    अतिश्योक्ति नहीं होगी यदि कहा जाए कि श्री गुरमीत सिंह जी का कर्तव्यनिष्ठ, समर्पित व्यक्तित्व हमारे राष्ट्र की धरोहर है। ऐसे व्यक्तित्वों का जीवनदर्शन, जीवनमूल्य तथा जीवनशैली वर्तमान पीढ़ी को एक अनुपम सौगात होगा। उनका व्यक्तित्व और सोच गुरुनानक देव जी के बताए हुए मार्ग और गुरु गोबिंद सिंह जी के ‘निश्चय कर अपनी जीत करुँ ‘ पर आधारित है।

    आइए! जानते हैं विरले व्यक्तित्व के मालिक। इनके गहन अध्ययन, कूटनीतिक समझ, शैक्षिक योग्यता के बारे में।

    सिख धर्म के सबसे पवित्र स्थान स्वर्ण मंदिर की नगरी अमृतसर से आने वाले भारतीय सेना के पूर्व डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ रहे है।

    वे एक देशभक्त परिवार से आते हैं। उनके पिताजी मोहाइन सिंह जी ने भारतीय थलसेना में और बड़े भाई ने भारतीय वायुसेना में सेवाएं दी हैं।

    इन्होने अनेक मौकों पर देश का प्रतिनिधित्व किया। चीन के साथ सीमा समस्याओं को लेकर अनेक वार्ता भारत में की और 7 बार चीन जाकर बीजिंग और शंघाई आदि शहरों में वार्ता की। चीन जैसे शक्तिशाली देश के वार्ताकारों को अपनी कूटनीति से सूझ बूझ का परिचय दिया।

    पाकिस्तान के साथ सियाचिन और अन्य मुद्दों पर वार्ता के लिए पाकिस्तान जाकर दोनों पक्षों में विश्वास निर्माण के उपाय किए और एक बार फिर अपना कौशल दिखाया। आतंकवाद के खिलाफ अनेक मौकों पर जम्मू कश्मीर, और नार्थ ईस्ट में आतंकवादियों से लोहा लिया।

    ये रक्षा मामलों पर एक विद्वान के तौर पर स्थापित हैं। देश की सेवा करते हुए भारत और अमेरिका में रक्षा सम्बंधित अनेक विषयों में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, और राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय, वाशिंगटन आदि में पढ़ाई और रिसर्च की। 2 साल तक भारत चीन सीमा सम्बन्धी विवादों पर रिसर्च की हैं। सेना में एडजुटेंट जनरल रहते हुए मानव संसाधन पर काम किया। इसके अलावा विभिन्न पदों पर रहते हुए सूचना प्रौद्योगिकी, मानव संसाधन प्रबंधन प्रशिक्षण, जनशक्ति नीति और योजना, भर्ती, चयन, प्रेरणा, मनोबल, स्वास्थ्य, अनुशासन, कानूनी मुद्दे, कल्याण, पुनर्वास, और पूर्व सैनिकों के मुद्दों पर काम किया।

    इनका सैनिकों, वीर योद्धाओं और शहीदों के प्रति अलग ही लगाव रहा हैं। ये राष्ट्रीय सैनिक संस्था के मुख्य संरक्षक भी हैं। नेशन फर्स्ट और जय हिन्द जरनल आदि न्यूज कार्यक्रमों में रक्षा विशेषज्ञ के तौर पर शामिल होते रहे हैं। लगभग 40 साल सेना में सेवाएं देने के दौरान उप थल सेना प्रमुख द्वारा 4 राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। इसके अलावा परम विशिष्ट सेवा मैडल, उत्तम युद्ध सेवा मैडल, अति विशिष्ठ सेवा मैडल, और विशिष्ठ सेवा मैडल से सम्मानित हो चुके हैं। सेना सेवा काल में उत्तराखंड के वनवसा में भी देश को सेवा दे चुके हैं। ऐसे परम विद्वान सिख योद्धा को देवभूमि उत्तराखंड का राज्यपाल नियुक्त किया जाना देश के लिए गौरव का विषय हैं।

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