Close

    08-10-2021 : राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (से. नि.) गुरमीत सिंह ने देव संस्कृति विश्वविद्यालय, शांति कुंज, हरिद्वार में स्थापित 100 फीट राष्ट्रीय ध्वज का लोकापर्ण किया।

    प्रकाशित तिथि: अक्टूबर 8, 2021

    राजभवन देहरादून : 08 अक्टूबर, 2021

    राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (से. नि.) गुरमीत सिंह ने देव संस्कृति विश्वविद्यालय, शांति कुंज, हरिद्वार में स्थापित 100 फीट राष्ट्रीय ध्वज का लोकापर्ण किया। राज्यपाल गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज के स्वर्ण जयंती वर्ष के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि सम्मिलित हुये। राज्यपाल ने विश्वविद्यालय परिसर में स्थित महाकाल मंदिर में पूजा-अर्चना की तथा राज्य की सुख-समृद्धि एवं खुशहाली के लिए प्रार्थना की। राज्यपाल ने विश्वविद्यालय परिसर में स्थित शौर्य दीवार पर पुष्पचक्र अर्पित कर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की।

    कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुये राज्यपाल ने कहा कि मेरे लिए यह गौरव का क्षण है। राष्ट्रीय ध्वज हर भारतीय की आन-बान, शान एवं गौरव का प्रतीक है। मैं एक फौजी भी हूँ। यदि एक फौजी को तिरंगा फहराने और तिरंगे से जुड़े गौरवपूर्ण कार्य में शामिल होने का अवसर मिले तो इससे अधिक सौभाग्य का विषय कोई नहीं हो सकता। यह ध्वज एक आइकन है, एक प्रेरणा है।

    राज्यपाल ने कहा कि वे बचपन में जब भी राष्ट्रीय ध्वज को देखते थे तो उन्हें एक आत्मीय हर्ष और उल्लास होता था। अपने आप दाहिना हाथ उठ कर तिरंगे को सलाम करता था। उनका सेना में जाकर देश सेवा करने का स्वपन बाल्यकाल से ही था। वे कैप्टन बनना चाहते थे। राज्यपाल ने कहा कि हमेशा राष्ट्र सर्वोपरी है। हमने यही सकंल्प लिया तथा इसी ध्येय के साथ जीवन जिया। राष्ट्रीय सुरक्षा प्राणों से ऊपर रही है। उन्होंने कहा ‘‘मैंने एक सैनिक की भूमिका में जीवन बिताया है, हर रोज राष्ट्रीय ध्वज को अंतर आत्मा ने श्रद्धा की दृष्टि से देखा है। जब भी कोई सैन्य चुनौती सामने आयी, यही एहसास मन में रहा है, कि अगर प्राणों की आहूति हुई तो एक सर्वोच्च सौभाग्य होगा। किसी भी सैनिक के लिए उसका पार्थिव शरीर इसी तिरंगे में लपेटा जाए, यही अंतिम अभिलाषा होती है।’’ राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखण्ड में प्रत्येक व्यक्ति सैनिक है। देश का प्रथम परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले एक उत्तराखण्डी थे, यह गर्व का विषय है।

    राज्यपाल ने कहा कि भारत की संप्रभुता और अखण्डता बनाये रखना तथा हर मैदान फतह करना और वहाँ तिरंगे को लहराता देखना, हर एक सैनिक का अंतिम लक्ष्य होता है। यह जज्बा हमारी संस्कृति से आता है। आज जो ध्वज लहरा रहा है, यह हर भारतीय, सैनिक, संत और विद्वानों के बलबूते पर ही सम्भव हो पाया है।

    राज्यपाल ने कहा कि भारतवर्ष की जडें और आधार, भारतीय संस्कृति और हमारी अनन्य सभ्यता रही है। यह तिरंगा, ना केवल तीन रंगों और अशोक चक्र का मेल है बल्कि अपने आप में भारत की आत्मा, शान, साहस, ज्ञान और पराक्रम को भी अपने में समाहित किये हुए है। हमारे लिए एक लक्ष्य और मार्ग दर्शन का स्रोत भी है।

    राज्यपाल ने कहा कि राष्ट्रीय ध्वज के उचित प्रयोग हेतु राष्ट्रीय ध्वज संहिता में वर्ष 2002 में संशोधन करते हुए और स्वतंत्रता के वर्षों बाद भारत के नागरिकों को अपने घरों, कार्यालयों और फैक्ट्रियों आदि संस्थानों में न केवल राष्ट्रीय दिवसों पर बल्कि किसी भी दिन बिना किसी रूकावट के फहराने की अनुमति मिल गई है। बशर्ते कि राष्ट्रीय ध्वज संहिता का कड़ाई से पालन हो। अनुशासन का पालन किया जाना चाहिये।

    राज्यपाल ने कहा कि भारतीय संस्कृति विश्व की समृद्ध संस्कृति है, जिसमें नैतिक मूल्यों के साथ-साथ एक आदर्श जीवन पद्धति की भी शिक्षा दी जाती है। मानव जीवन के लक्ष्यों का निर्धारण इसी संस्कृति के द्वारा सम्भव है। संस्कृति हमें शिक्षा के साथ-साथ विद्या, व्यापार, पर्यावरण और जीवन के अन्य महत्वपूर्ण आयामों से जोड़ती है। एक सुसंस्कृत और आदर्श जीवन के लिए जिन मूलभूत तत्वों की आवश्यकता है उन सभी का समायोजन भारतीय संस्कृति में है। यह केवल भौतिक सुखों का ही अनुभव नहीं कराती, इसी के साथ आध्यात्मिक उन्नयन हेतु उच्च अनुभूतियों का ज्ञान भी कराती है। कोविड के दौरान पूरे विश्व में नमस्कार को महत्व मिला। आज पूरा विश्व नमस्कार करता है। यह ज्ञान हमारी संस्कृति ने ही दिया। राज्यपाल ने गायत्री मंत्र के महत्व पर भी प्रकाश डाला।

    राज्यपाल ने कहा कि एक सभ्य एवं सुसंस्कृत समाज का जो स्वप्न पं0 श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने देखा था, सभी उसे पूरा करने के लिए कृत संकल्पित हैं। विद्यार्थियों को ‘‘निश्चय कर अपनी जीत करूं’’ के वाक्य के साथ अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रयास करने चाहिये।

    राज्यपाल ने कहा कि राष्ट्रवाद की भावना और भारत माता के प्रति हमारी श्रद्धा और समर्पण ही है जिसने भारतीय संस्कृति को विश्व की प्राचीनतम संस्कृति का दर्जा दिया है। हमारी भारतीय संस्कृति आज भी प्रखर और तेजस्वी है। यह हमारे वीर जवानो का साहस और शौर्य ही है जिसने हमें एक महान राष्ट्र के रूप में लगातार शक्तिशाली बनाया है।
    राज्यपाल गुरमीत सिंह ने कहा कि आप सभी ने उत्तराखण्ड की धरती पर ज्ञान और जीवन-मूल्य का पाठ सीखा है। इसलिए यह आपका नैतिक दायित्व है कि प्रदेश के विकास में भी आपकी भूमिका अहम हो। आप जहां भी रहें, जहां भी कार्य करें, प्रेम, करूणा, अहिंसा, सहयोग जैसे मानवीय मूल्यों को जीवित रखते हुए देवभूमि के ब्रांड अंबेसेडर बनकर कार्य करें यही मेरी आप सबसे अपेक्षा है।

    पूज्य आचार्य जी के सपनों का यह विश्वविद्यालय आज भारतीयता और भारतीय संस्कृति को जीवित रखने में सहायक हो रहा है। आज के युग में ऐसे संस्थानों की आवश्यकता है, जिनमें शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक, आध्यात्मिक, भावानात्मक एवं चरित्र निर्माण का शिक्षण-प्रशिक्षण दिया जाता हो। यह विश्वविद्यालय अपने सामाजिक दायित्वों के प्रति भी गम्भीर है।
    विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ0 प्रणव पण्ड्या जी ने कहा कि आज का दिन विश्वविद्यालय के लिये ऐतिहासिक है। एक सैनिक द्वारा आज तिरंगे को फहराया गया है।

    राज्यपाल ने विश्वविद्यालय के न्यूजलेटर ‘‘रेनेसां’’ का विमोचन किया।

    इस अवसर पर देव संस्कृति विश्वविद्यालय के विश्व गायत्री परिवार प्रमुख एवं विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ0 प्रणव पण्ड्या जी, कुलपति श्री शरद पारधी, प्रति-कुलपति डॉ0 चिन्मय पण्ड्या जी एवं कुलसचिव, समस्त आचार्यागण, विद्यार्थी एवं विश्वविद्यालय के समस्त अधिकारी-कर्मचारी उपस्थित थे।

    —-0—-