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    31-03-2024 : ‘अद्वैत आश्रम, मायावती’ की 125वीं वर्षगाँठ के अवसर आयोजित कार्यक्रम में मा0 राज्यपाल महोदय का संबोधन

    प्रकाशित तिथि: मार्च 31, 2024

    जय हिन्द!

    ‘अद्वैत आश्रम, मायावती’ की 125वीं वर्षगाँठ के सुअवसर पर आयोजित इस विशेष कार्यक्रम में आप सभी के बीच पहुंच कर सचमुच मुझे अत्यंत हर्ष और उल्लास की अनुभूति हो रही है।

    इस विशेष कार्यक्रम में उपस्थित सभी क्षेत्रवासी, विशिष्ट अतिथि, श्रद्धेय स्वामी सुवीरानन्द जी महाराज महासचिव, रामकृष्ण मठ तथा रामकृष्ण मिशन, बेलूड़, स्वामी शुद्धिदानन्द (अध्यक्ष, अद्वैत आश्रम, मायावती) आप सभी को हृदय से नमन।

    इस दिव्य और पावन स्थली में गत वर्ष भी मुझे आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वास्तव में यह अद्वैत आश्रम पर्वत राज हिमालय के समक्ष एक ऐसा आश्रम है जो अद्वैत के आदर्श के रूप में स्थापित है। यह सत्य की खोजियों की प्रशिक्षण स्थली है।

    हिमालय – शिव एवं शक्ति का, माँ गौरी तथा शंकर का लीलास्थल है। हिमालय के दिव्य शिखरों से, इसकी गुफाओं से और इसके कल-कल बहने वाले झरनों से हमारे वेद-मन्त्र निस्सृत हुए हैं।

    यह वही भूमि है, जिसमें भारत-जननी माता पार्वती ने जन्म लिया, यह वही पवित्र स्थान है, जहाँ भारत का प्रत्येक सत्य-पिपासु अपने जीवन काल के अन्तिम दिन व्यतीत करना चाहता है।

    इस दिव्य स्थली के सुधी स्वामी विवेकानंद ने योग, राजयोग और ज्ञानयोग जैसे ग्रंथों की रचना करके युवा जगत को नई राह दिखाई, जिसका भारतीय जनमानस पर जबरदस्त असर हुआ और आगे भी युगों-युगों तक इसका प्रभाव रहेगा।

    स्वामी जी केवल एक संत ही नहीं बल्कि एक महान देशभक्त, दार्शनिक, वक्ता, विचारक, लेखक भी थे। उनके ओजस्वी विचार हमेशा से युवाओं को प्रेरित करते रहे हैं।

    स्वामी विवेकानंद जी बेहद कम उम्र में विश्व विख्यात प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु बन गए थे। 1893 में अमेरिका के शिकागो में हुए विश्व धार्मिक सम्मेलन में उन्होंने जब भारत और हिंदुत्व का प्रतिनिधित्व किया तो उनके विचारों से पूरी दुनिया उनकी ओर आकर्षित हुई।

    वेदांत और योग को पश्चिमी संस्कृति में प्रचलित करने में उन्होंने बेहद अहम योगदान दिया।

    इसलिए हर वर्ष 12 जनवरी को युवाओं के प्रेरणास्त्रोत स्वामी विवेकानंद जी की जयंती के दिन को भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

    स्वामी जी के अनुसार पराधीनता ही दुःख और स्वाधीनता ही सुख है। अद्वैत ही ऐसा इकलौता ज्ञान है, जो मनुष्य को अपने आप पर पूर्ण स्वामित्व दिलाता है, और हमें कष्टों को सहने तथा कर्मवीर बनने में समर्थ बनाता है और अन्ततः पूर्ण मुक्ति की प्राप्ति कराता है।

    हम सब जानते हैं कि ‘अद्वैत आश्रम, मायावती’ स्वामी विवेकानंद की स्वप्न भूमि है। यह आश्रम ‘रामकृष्ण संघ’ का एक प्राचीन शाखा केन्द्र ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के इतिहास में श्रीरामकृष्ण-विवेकानंद भावधारा तथा वेदान्त-साधना का एक महान केन्द्र है।

    स्वामी जी की चरण धूलि से धन्य इस आश्रम में, पिछले सौ सालों से भी अधिक समय में, न जाने कितने ही साधु-सन्तों एवं देश-विदेश के महान व्यक्तियों का आगमन हुआ है इसकी कोई गणना नहीं!

    रामकृष्ण मिशन के मुख्यालय बेलूड़ मठ के बाहर, यही एक ऐसा केन्द्र है, जहाँ स्वामी जी ने (3 जनवरी से 18 जनवरी, 1901 के बीच) लगातार 15 दिनों तक निवास किया था।

    अपने पन्द्रह-दिवसीय प्रवास काल के दौरान, स्वामी जी ने अपने एक शिष्य से कहा कि हिमालय कितना महान है, इसका सौन्दर्य अतुलनीय है, किन्तु जिन्होंने इस विराट हिमालय की रचना की है, वे कितने महान और सुन्दर होंगे!

    इसलिए हिमालय में रहना, इसे देखते हुए विराट का ध्यान करना और इस तुच्छ अहम भाव को त्यागकर उसके साथ एक हो जाने के लिए ही इस आश्रम की स्थापना हुई है।

    श्रीरामकृष्ण कहते थे कि स्वच्छन्द आकाश, विशाल समुद्र तथा खुले मैदान को देखने से अनन्त की धारणा होती है। मायावती आश्रम तुच्छ अहम को नष्ट करके अनन्त की धारणा करने का स्थान है। यहाँ का परिवेश भी सदा ही उस अनन्त का ही संकेत देता है।

    मुझे मालूम है कि यहाँ उपासना में किसी तरह का कोई आडम्बर नहीं है। अद्वैत आश्रम केवल अपने उपास्य की खोज, उसके साथ अपने सम्बन्ध का शोध और उसे पाकर असीम आनन्द में खो जाने की साधन भूमि है। यह आत्मा और परमात्मा की मिलन भूमि है।

    मुझे बताया गया कि कप्तान सेवियर, श्रीमती सेवियर और स्वामी स्वरूपानन्द इस आश्रम की स्थापना के मुख्य संस्थापक थे। स्वामी जी के स्वप्न को साकार करने में उनका योगदान अत्यन्त ही अवर्णनीय है।

    वन के वेदान्त को पूरे विश्व में फैला देना स्वामी विवेकानंद जी का जीवन-संकल्प था। श्रीरामकृष्ण के ‘जीव पर दया नहीं, शिवज्ञान से जीव की सेवा’ इस वाक्य को सुनकर ही उन्होंने यह संकल्प लिया था।

    स्वामी जी ‘‘ध्यान सिद्ध” थे। उनके ध्यान-निष्ठ मन के साथ हिमालय का एक आत्मीय सम्बन्ध था। ध्यान में मग्न रहना – यह उनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति थी। अनन्त के ध्यान में मग्न महादेव शंकर उनके श्रेष्ठतम आराध्य थे।

    स्वामी जी प्रायः कहा करते कि वे काम से अवकाश लेकर हिमालय की गुफाओं में ध्यान करेंगे। देवभूमि हिमालय के प्रति स्वामी विवेकानंद की अगाध श्रद्धा थी। वे हिमालय से प्रेम करते थे।

    हिमालय के सौन्दर्य में छिपी चिर शान्ति की गूंज स्वामी जी के शब्दों में बड़े ही अनूठे ढंग से प्रकट होती है। वे कहते हैं, ‘गिरिराज हिमालय त्याग एवं वैराग्य के जीवन्त रूप हैं।’ पतित-पावनी गंगा इसी हिमालय से ‘हर हर’ का उद्घोष करती हुई पृथ्वी पर उतरती हैं।

    स्वामी विवेकानंद हिमालय की पुण्यभूमि पर एक अखण्ड ज्योति प्रज्वलित करना चाहते थे, जो मानव मन की कुसंस्कारों को जलाकर खाक कर दे और विश्व के समक्ष ईश्वर ही सत्य है, ईश्वर के अतिरिक्त और कुछ नहीं, ‘जो कुछ है, सो तू ही है’ इस सत्य को प्रतिष्ठित कर दे।

    आखिरकार मायावती अंचल में स्थित एक छोटा-सा चाय का बागान उन्हें पसन्द आया, जो स्वामी जी की परिकल्पना से हूबहू मिलता था। जो आज अद्वैत आश्रम के रूप में आपके समक्ष है।

    स्वामी जी कहते थे कि मुझे इस बात का गर्व है कि मैं ऐसे धर्म का अनुयायी हूं जिसने पूरे विश्व को सहिष्णुता और सार्वकालिक स्वीकार्यता का संदेश दिया है।

    हमें यह याद रखना चाहिए कि सभी संसाधनों के मौजूदगी के बावजूद जब भी भारतीय समाज में विभाजन हुआ है और आंतरिक संघर्ष हुए हैं, बाहरी दुश्मनों ने इस स्थिति का फायदा उठाया है।

    इन संघर्षों के दौर में हमारे संतों और समाज सुधारकों ने हमें सही रास्ता दिखाया है। यह रास्ता हमें एक साथ मिलजुल कर रहने का संदेश देता है।

    स्वामी विवेकानंद ने विश्व को वैदिक दर्शन की श्रेष्ठता बताई। उन्होंने देश के समृद्ध अतीत और अपार क्षमता की भी याद दिलाई। उन्होंने हमें खोया हुआ विश्वास, गर्व और अपनी जड़ें प्रदान की।

    स्वामी विवेकानंद के इस विजन के साथ भारत पूरे विश्वास के साथ आगे बढ़ रहा है। आज हम स्वामी विवेकानंद की प्रेरणा से एक नए भारत के निर्माण की ओर अग्रसर हैं।

    जय हिन्द!