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    28-11-2023 : बीटल्स फेस्टिवल-2023 के समापन के अवसर पर महामहिम राज्यपाल महोदय का संबोधन

    प्रकाशित तिथि: नवम्बर 28, 2023

    बीटल्स फेस्टिवल-2023 के समापन के अवसर पर महामहिम राज्यपाल महोदय का संबोधन
    (28 नवम्बर 2023)

    जय हिन्द!
    बीटल्स फेस्टिवल-2023 के समापन के अवसर पर आप सभी के बीच आकर मुझे अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है।
    बीटल्स’ जिसकी गूंज पूरे विश्व में सुनाई देती है, इसके दिव्य स्वरों के सतरंगी सरगम के साथ एक सुरेले कार्यक्रम के माध्यम से अध्यात्म और शांति का संदेश देने का यह बहुत ही अनोखा आयोजन है।
    दुनिया भर के संगीत प्रेमियों को देव भूमि में मां गंगा के तट पर एक साथ लाना हमारी परम्परा का दुनिया की सभ्यताओं, संस्कृतियों और आत्माओं के साथ एक बार फिर से पुनर्मिलन है।
    नगर पंचायत स्वर्गाश्रम जौंक महर्षि महेश योगी जी की तपस्थली रही है। इस धरती से भारत की महान विद्याएं देश और विदेशों में विख्यात हुई हैं।
    आज जिला प्रशासन पौड़ी और यहां के स्थानीय प्रशासन के द्वारा विश्वप्रसिद्ध लोकप्रिय अंग्रेजी रॉक बैण्ड द बीटल्स की यादों के साथ इस संगीत महोत्सव का आयोजन किया गया है। इस बहुत ही सुन्दर आयोजन के लिए मैं आयोजकों को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ, आपके इस प्रयास की सराहना करता हूँ।
    यहाँ आपने प्रदर्शनी, ऑडियो विजुअल स्टॉल तथा रॉक और ‘हिन्दुस्तानी’ फ्यूजन संगीत संध्या का आयोजन किया है यह दिल को छूने वाला है।
    सच कहूँ तो इस समारोह से जो एक नया उत्साह और उमंग यहां दिखाई दे रहा है इससे ऋषिकेश, यमकेश्वर, लक्ष्मणझूला और आस-पास के पूरे क्षेत्र की एक अलग ही पहचान बन रही है।
    जरा याद करें तो वर्ष- 1960 में जॉन लेनन, पॉल मककार्टनी, जॉर्ज हैरिसन तथा रिंगों स्टार ने इस संगीत बैण्ड की स्थापना की थी और इस देव भूमि में संगीत की सुन्दर सुर लहरियों के साथ बीटल्स को देवभूमि से लेकर पूरे विश्व तक पहुंचाया है।
    लक्ष्मणझूला, स्वर्गाश्रम जौंक में स्थित महर्षि महेश योगी जी की साधना स्थली से द बीटल्स का बहुत गहरा आध्यात्मिक जुड़ाव रहा है।
    वर्ष 1968 में बीटल्स लक्ष्मणझूला, स्वर्गाश्रम जौंक स्थित महर्षि महेश योगी के आश्रम आये और यह आश्रम आज भी बीटल्स आश्रम चैरासी कुटिया के नाम से विश्वप्रसिद्ध है।
    लक्ष्मणझूला स्वर्गाश्रम जौंक स्थित चैरासी कुटिया क्षेत्र योग, अध्यात्म तथा संगीत के लिए राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता है। यहां से पाश्चात्य संगीत और हिन्दुस्तानी संगीत को एक नयी पहचान मिली। यह संगीत साधना का एक प्रमुख केन्द्र के रूप में विकसित हुआ।
    आज फिर से उस संगीत परम्परा को जीवंत बनाने के लिए नगर पंचायत स्वर्गाश्रम जौंक में आयोजित इस समारोह की, मैं दिल से सराहना करता हूँ।
    तीन दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम के माध्यम से बीटल्स बैण्ड की जीवनी, बीटल्स की सफलता में लक्ष्मणझूला, स्वर्गाश्रम जौंक का योगदान और इस बीटल्स आश्रम के महत्व के संबंध में जो योगदान है यह बहुत ही ऊंचे दर्जे का है।
    मैं देख सकता हूं किस प्रकार से आज यह एक दिव्य समारोह बन गया है। यह जो सुन्दर मौसम है, इस मौसम में इस उत्सव ने हमारी खुशियों में बहुत बड़ी नवीनता ला दी है। एक आनंद और उमंग का मौसम बना दिया है।
    इन खुशहाली के क्षणों को मैं यहां के गीत, संगीत और सुरों में महसूस कर सकता हूँ, यहां उपस्थित हर व्यक्ति में अनुभव कर सकता हूं।
    हमारे युवा इस उत्सव को अपने हृदय की गहराईयों से अनुभव करंे। हमारी समृद्ध संस्कृति और संगीत संपदा के बारे में जागरूक बनें। आप सभी संगीत प्रेमी इस मंच से आध्यात्मिक उन्नति और सांस्कृतिक समृद्धि के लिए कार्य करें।
    विकास के अनंत अवसरों का पता लगाने के लिए यह एक बड़ा अवसर है। आज दुनिया भारत आना चाहती है। अध्यात्म और पर्यटन के माध्यम से हमें उत्तराखण्ड को एक ब्रांड बनाना है।
    इससे दुनिया को शांति और समृद्धि का घर बनाना है। इसमें इस प्रकार के संगीत कार्यक्रमों की बहुत बड़ी भूमिका हो सकती है।
    ‘बीटल्स’ में और आसपास के स्थानों पर यह तीन दिवसीय संगीत समारोह परमात्मा की प्राप्ति और संगीत के बीच संबंध सृजित करने का एक नया अवसर है। एक नया उत्सव है।
    योग विद्या हमारी प्राचीन धरोहर है जो आज भी असंख्य लोगों को जीवन के उन्नत अवसर उपलब्ध करा रहा है। इस योग विद्या के साथ आध्यात्मिक संगीत का समन्वय एक चमत्कार पैदा कर सकता है।
    देखिए, कैसे बीटल्स ने पश्चिमी दुनिया को दिखाया कि निर्वाण, आत्मा और संगीत को मिलाकर परमात्मा की प्राप्ति की जा सकती है।
    50 साल से भी पहले बीटल्स ने यमकेश्वर की इन्हीं गलियों से होकर संगीत की एक नयी यात्रा शुरू की थी। अपने प्रवास के दौरान, योग और ध्यान की प्राचीन प्रथाओं के साथ इस यात्रा ने दुनिया के लिए भावपूर्ण सिम्फनी और संगीत का दिव्य उपहार दिया।
    यह संगीत, यह कला, यह स्वरलहरियां, संगीत की आत्मा है। कलाओं में सर्वश्रेष्ठ कला गान है। सर्वश्रेष्ठ कला संगीत का निर्माण करना है। जब संगीत की धुन पैदा होती है तो ऐसे लगता है कि एक नयी सृष्टि की रचना हो रही हो।
    जब संगीत बजता है तो न केवल शरीर नृत्य करने लगता है, अपितु आत्मा भी भावविभोर हो जाती है। पांव थिरकने लगते हैं, हृदय में स्पंदन होने लगता है, आत्मा नृत्य करने लगती है।
    इस लिए संगीत बहुत बड़ी विद्याएं हैं। स्वरों से ही संगीत पैदा होता है। स्वरों से ही गीत पैदा होते हैं। स्वरों से ही नृत्य और संवाद में एक आत्मा का अवतरण होता है।
    भारत में संगीत की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। यहां वेदों को भी स्वरों के माध्यम से ही व्यक्त किया गया है। वेदों में असंख्य स्वर और संगीत की धुनें हैं। छन्द जिसका अर्थ होता है स्वर! स्वरों के गेयता होने के कारण वेदों का एक अंग छन्द शास्त्र भी है। आध्यात्मिक चेतना के विकास में संगीत का सर्वोच्च योगदान है।
    सगुण भक्ति धारा में संगीत ने परमात्मा की उपासना का सबसे सुन्दर मार्ग दिखाया है। मां सरस्वती साक्षात विद्या की देवी संगीत की देवी हैं। विद्या का संगीत के साथ गहरा रिश्ता है। मां सरस्वती अपने हाथों में वीणा रखती हैं। वह विद्या की देवी हैं और वही संगीत की देवी भी!
    भारत में संगीत को दैवीय साधना का माध्यम माना जाता है, तो भौतिक आनन्द का माध्यम भी। देवर्षि नारद जी सदैव वीणा लेकर ईश्वर की भक्ति और साधना में लीन रहते हैं।
    कृष्ण भक्ति में असंख्य दिव्य संतो और भक्तों ने अपने जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त किया है।
    मैं तो सिख परम्परा से आता हूँ जहां गुरुओं की पवित्र वाणी को शबद, कीर्तन, स्मरण के माध्यम से वाहेगुरू की कृपा को पाने का माध्यम बताया गया है।
    गुरुवाणी का हर एक शबद संगीत में समाया हुआ है। रागों में समाया हुआ है। रागों से जो संगीत पैदा होता है, वह गुरु कृपा बन जाता है।
    जिस प्रकार से योग, ध्यान, साधना, उपासना परमात्मा के प्रेम को पाने का साधन है उसी प्रकार से संगीत भी परमात्मा की कृपा को पाने का बहुत ही पवित्र माध्यम है।
    आज यहां संगीत का यह समारोह भक्ति, अध्यात्म, आनन्द और अनुभूति की ओर ले जाने के पवित्र उद्देश्यों को पूरा कर रहा है।
    मुझे पूरा विश्वास है कि यह संगीत की यात्रा जो 50 साल पहले इस धरती से पूरे विश्व में फैली थी एक बार फिर से अपने पवित्र लक्ष्यों को पाने की दिशा में आगे बढ़ेगी।
    बीटल्स और गंगा फेस्ट, यमकेश्वर उस सिम्फनी को फिर से जीवंत करने और उस जादू को फिर से बनाने का एक प्रयास है जो कभी गंगा घाटी में गूंजता था।
    उनकी यात्रा इस बात का जीवंत उदाहरण है कि योग और ध्यान की प्राचीन पद्धतियाँ किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करने में कैसे मदद कर सकती हैं। इससे यह भी पता चलता है कि महर्षि महेश योगी ने समाज के निर्माण में कैसे शानदार योगदान दिया।
    हमारी देवभूमि उत्तराखंड, ‘देवताओं की भूमि’ का देवत्व से गहरा संबंध है। यह संबंध राज्य की प्राकृतिक सुंदरता, इसके प्राचीन मंदिरों और इसकी समृद्ध आध्यात्मिक विरासत में स्पष्ट है।
    संगीत, अध्यात्म और उत्तराखंड का रिश्ता बहुत गहरा और अटूट है। राज्य में संगीत का उपयोग इसकी प्राकृतिक सुंदरता, इसकी आध्यात्मिक विरासत और इसकी समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं का उत्सव मनाने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग आध्यात्मिक सद्भाव की भावना पैदा करने और लोगों को परमात्मा से जोड़ने के लिए भी किया जाता है।
    हमारा राज्य ग्रह पर कुछ सबसे पवित्र स्थानों का घर है, जिनमें केदारनाथ जी मंदिर, बद्रीनाथ जी मंदिर, गंगोत्री जी और यमुनोत्री जी मंदिर शामिल हैं। और हर की पौड़ी पर स्वर्ग का प्रवेश द्वार और योग और आध्यात्मिकता की राजधानी ‘ऋषिकेश’ भी है।
    इन स्थानों पर हर साल लाखों तीर्थयात्री आते हैं, जो शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक मुक्ति के लिए प्रार्थना करने आते हैं।
    उत्तराखंड गढ़वाली और कुमाऊंनी शैलियों सहित कई शास्त्रीय संगीत परंपराओं का भी घर है। इन शैलियों की विशेषता सारंगी, सितार और तबला जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों का उपयोग है।
    उत्तराखंड में शास्त्रीय संगीत अक्सर मंदिरों और आश्रमों में प्रस्तुत किया जाता है और इसका उपयोग आध्यात्मिक सद्भाव की भावना पैदा करने के लिए किया जाता है।
    उत्तराखंड का लोक संगीत अक्सर प्रकृति में भक्तिपूर्ण होता है, और यह अक्सर राज्य की प्राकृतिक सुंदरता और इसकी समृद्ध आध्यात्मिक विरासत का जश्न मनाता है।
    उत्तराखंड और देवत्व के बीच का संबंध इसके धार्मिक और आध्यात्मिक पहलुओं तक ही सीमित नहीं है। इसका संगीत से गहरा संबंध है और यह संबंध राज्य के लोक संगीत, इसकी शास्त्रीय संगीत परंपराओं और इसके आध्यात्मिक त्यौहारों में बहुत स्पष्ट है।
    राज्य की प्राकृतिक सुंदरता को दैवीय अभिव्यक्ति के रूप में भी देखा जाता है। हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियाँ, हरी-भरी घाटियाँ और प्राचीन नदियाँ सभी पवित्र स्थानों के रूप में देखी जाती हैं जहाँ कोई भी दिव्य उपस्थिति का अनुभव कर सकता है।
    पवित्र गंगा नदी सभ्यताओं और समाज को आकार दिया है और प्रभावित करना जारी रखा है।
    यह परमात्मा का अनुभव करने और आत्मा की गहराइयों को खोजने का एक माध्यम है। और मां गंगा के तट पर इस उत्सव के आयोजन का विचार ही मुझे रोमांचित कर देता है। आयोजकों और जिला प्रशासन को मेरी हार्दिक बधाई जिन्होंने इसे सफल बनाने की जिम्मेदारी संभाली है।
    यह शहर के इतिहास में एक नया अध्याय भी जोड़ता है, युवा प्रतिभाओं को एक मंच देता है, संगीत, कथक और कला पर कार्यशालाओं के माध्यम से पारंपरिक कौशल का पोषण करता है, और सबसे ऊपर, आत्मिक आनंद की राह पर यात्रा करता है।
    यह त्यौहार भारतीय संस्कृति और प्रभाव के विभिन्न पहलुओं को एकत्रित करता है- योग, शास्त्रीय कला और नृत्य, भावपूर्ण संगीत, प्रतिष्ठित परंपराएं, गंगा पार पनपने वाली प्रतिभा को बढ़ावा देना और दुनिया को भारतीय अनुभव प्रदान करना। यह संस्कृति, परंपराओं और आधुनिकता का एकदम सही मिश्रण है।
    मैं आप सभी को पुनः खोज और आत्म-खोज की इस यात्रा में शामिल होने के लिए आमंत्रित करता हूं। आइए हम संगीत, संस्कृति और परंपरा की एक ऐसी सिम्फनी बनाने के लिए साथ आएं जो दुनिया भर में गूंजेगी।
    भारत अपने उत्कर्ष के सोपानों पर आगे बढ़ रहा है। देश की आजादी के अमृतकाल में हम एक अनोखे कालखण्ड में हैं। आने वाले 10, 20 और 25 वर्षों में भारत के विकास की यात्रा एक नये मुकाम पर होगी। इसके लिए हमारी तैयारियां, हमारी योजनाएं, हमारी नीतियां बहुत दूर तक कार्य करेंगी।
    विकसित भारत, आत्मनिर्भर भारत, विश्वगुरू भारत का सपना हम सबका सपना है। हमें इस सपने को पूर्ण करना है। आप सभी का भी मैं भारत के उत्कर्ष में योगदान देने के लिए आह्वान करता हूँ।
    जो लोग यहां आए हैं, वे इसके बाद हमारे ब्रांड एंबेसडर हैं, उत्तराखंड वास्तव में एक विशेष स्थान है, और यह अपने सबसे अनोखे और स्थायी तरीके से आने और दिव्यता से जुड़ने के लिए आपका स्वागत करता है।

    जय हिन्द!