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    27-11-2025 : “पुष्कर धामीः हिमालय की जीवंत ऊष्मा” पुस्तक लोकार्पण समारोह में माननीय राज्यपाल महोदय का उद्बोधन

    प्रकाशित तिथि : नवम्बर 27, 2025

    जय हिन्द!

    उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर धामी जी, आचार्य प्रमोद कृष्णन महाराज जी, पूज्य स्वामी श्री चिदानंद मुनि जी, सभागार में उपस्थित महानुभावों, साहित्य-साधकों, विद्वतजनों और कला-संस्कृति के तपस्वियों!

    आज इस गरिमामय अवसर पर उपस्थित होकर मैं स्वयं को अत्यंत सम्मानित अनुभव कर रहा हूँ। यह केवल एक पुस्तक का लोकार्पण नहीं, बल्कि एक ऐसी साहित्यिक परंपरा का उत्सव है जो विचार, संस्कृति और नेतृत्व को एक सूत्र में पिरोती है।

    समाज और परिवार में अनेक संभावनाएँ जन्म लेती हैं, परंतु “संभावना” नाम की इस प्रतिभाशाली युवा लेखिका ने यह सिद्ध कर दिया है कि वह केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक जीवंत शक्ति है।

    मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी के जीवन को शब्दों में ढालकर उन्होंने यह प्रमाणित किया है कि जब संभावना कर्म बनती है, तो वह साहित्य के आकाश में उज्ज्वल नक्षत्र बनकर चमक उठती है।

    किसी राज्य का बौद्धिक स्तर तभी ऊँचा होता है जब उसकी युवा पीढ़ी साहित्य, विचार और संस्कृति के प्रति निष्ठा रखती हो। देवभूमि उत्तराखण्ड की इस प्रतिभाशाली बेटी, संभावना ने अपनी युवावस्था में ही जिस परिपक्वता, जिस शोध-गंभीरता और जिस संवेदनात्मक शक्ति का परिचय दिया है, वह सराहनीय ही नहीं, बल्कि प्रेरणादायी भी है।

    मुख्यमंत्री धामी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को आधार बनाकर उन्होंने जो जीवंत, स्पष्ट और गहन जीवन-वृत्तांत लिखा है, वह आने वाले समय में साहित्य और राजनीति दोनों के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत सिद्ध होगा।

    यह पुस्तक केवल घटनाओं का संकलन नहीं है, बल्कि उत्तराखण्ड की राजनीतिक परंपरा, उसकी सांस्कृतिक आत्मा, उसके संघर्ष और उसके उभार की एक सुसंगत जीवनगाथा है।

    इसकी आरंभिक पंक्ति-“दृढ़ निश्चयी व्यक्ति असफलताओं से परेशान नहीं होते, बल्कि उनसे सीखकर आगे बढ़ते हैं”, इस पुस्तक की आत्मा को उद्घाटित करती है। यह विचार न केवल धामी जी के जीवन दर्शन को अभिव्यक्त करता है, बल्कि हर उस युवा के लिए प्रेरणा है जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपने सपनों को जीवित रखता है।

    साहित्य की विशिष्टता यह है कि वह केवल घटनाओं को नहीं लिखता, बल्कि युगों को सहेजता है। आज के दौर में जब सोशल मीडिया का अव्यवस्थित प्रवाह, फेक न्यूज, अधूरी सूचनाएँ और भ्रामक प्रचार सत्य को धुंधला कर देते हैं, तब साहित्य ही वह दर्पण है जिसमें समाज अपनी वास्तविकता को देख सकता है।

    साहित्य वह शक्ति है जो छल-छद्म के शोर के बीच सत्य को फिर से केंद्र में स्थापित करता है। इसी कारण संभावना की यह कृति और भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह नेतृत्व की उन परतों को सामने लाती है जो अक्सर दिखती नहीं, परंतु देश और समाज के लिए अत्यंत निर्णायक होती हैं।

    इस जीवन-वृत्तांत में लेखिका ने मुख्यमंत्री धामी जी के बाल्यकाल, छात्र जीवन, लखनऊ में संघर्ष के दिनों और बाद के राजनीतिक उत्कर्ष को जिस मार्मिकता और प्रामाणिकता से लिखा है, वह पाठक को केवल पढ़ने नहीं, बल्कि अनुभव करने के लिए बाध्य कर देता है।

    पर्वतीय ग्राम से प्रारम्भ हुई यह यात्रा, संघर्ष, धैर्य, सेवा और निरंतर आत्मविश्वास से परिपूर्ण रही है। जो आज उत्तराखण्ड की नई दिशा का आधार बनी है। संभावना ने इन अनुभागों में धामी जी के जीवन के दो प्रमुख आधारों साहस और संयम को अत्यंत सुंदर ढंग से संयोजित किया है।

    मैं यहाँ एक अत्यंत व्यक्तिगत स्मृति भी साझा करना चाहता हूँ। सैन्य सेवा के दौरान जब मेरी पोसिं्टग बनबसा क्षेत्र में थी, तभी से मेरा धामी परिवार से गहरा संबंध रहा है। धामी जी के पूज्य पिता स्वर्गीय शेर सिंह जी मेरे सैन्य जीवन के अत्यंत निकटस्थ सहचर थे।

    अनुशासन, देशभक्ति और तप की वह सैन्य संस्कृति जिसे हमने साथ जिया, आज भी धामी जी के व्यक्तित्व में उसी गहराई से प्रवाहित होती है। जब वे मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए और पहली भेंट में हमारा पुराना चित्र उन्होंने सादगीपूर्वक दिखाया, तब अनेक स्मृतियाँ पुनः जीवित हो उठीं। मैंने उसी क्षण अनुभव किया कि नेतृत्व केवल पद का नहीं, बल्कि संस्कारों का निरंतर प्रवाह है।

    धामी जी का नेतृत्व विशिष्ट इसलिए है क्योंकि वह विनम्रता और दृढ़ता दोनों का समन्वय है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने जिस विश्वास के साथ उन्हें उत्तराखण्ड की कमान सौंपी, उन्होंने उसे नीतियों, निर्णयों और कर्मठता के माध्यम से पूर्णतया सार्थक किया है। युवा-केंद्रित प्रशासन, पारदर्शी भर्ती, नकल-विरोधी कानून, और अवसर आधारित शासन। इन सबने राज्य के युवाओं में नई ऊर्जा का संचार किया है।

    विकास को उन्होंने केवल घोषणाओं तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे व्यवहारिकता और गति प्रदान की। पर्वतीय विकास मॉडल के माध्यम से मॉडल गाँवों की परिकल्पना, पर्यटन सर्किट, दूरस्थ क्षेत्रों तक कनेक्टिविटी, स्थानीय उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने के प्रयास। इन सबने पलायन को रोकने की दिशा में एक ठोस नींव रखी है।

    धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में भी उनका योगदान उल्लेखनीय है। चारधाम यात्रा का पुनर्गठन, केदारनाथ-बदरीनाथ मास्टर प्लान, मानसखंड मंदिर माला मिशन और आध्यात्मिक अवसंरचना ने उत्तराखण्ड को आध्यात्मिक भारत के केंद्र में स्थापित कर दिया है।

    आपदा के क्षणों में उनका नेतृत्व और अधिक प्रकाशमान हो उठता है। चाहे सिल्क्यारा टनल की दुर्घटना हो, जोशीमठ का भूस्खलन, धराली और थराली की त्रासदियाँ हों या बनभूलपुरा की घटनाएँ- हर स्थिति में उनकी त्वरित पहुँच, स्थिर निर्णय और मानवीय संवेदना यह प्रमाणित करती है कि वे स्वाभाविक रूप से ‘फर्स्ट लाइन लीडर’ हैं।

    प्रशासनिक सुधारों की दिशा में भी उन्होंने नई संस्कृति विकसित की है। स्पीड, स्केल और स्टैंडर्ड का वह सूत्र जिसमें शासन त्वरित भी हो, पारदर्शी भी और उत्तरदायी भी।

    नकल-विरोधी कानून, समान नागरिक संहिता की दिशा में पहल, अतिक्रमण के विरुद्ध कार्रवाई, और शिक्षा में समान अवसरों की स्थापना- इन सबने उनके नेतृत्व की गंभीरता को प्रदर्शित किया है। अस्पतालों और आईएसबीटी के औचक निरीक्षण से लेकर प्रत्येक विभाग की कार्यप्रणाली में सुधार तक उन्होंने शासन की बुनियादी संवेदनशीलता को नया आयाम दिया है।

    राजनीतिक जीवन के भीतर छिपे संघर्ष, निर्णय, संवेदनाएँ और मानवीय पहलू, इनका सबसे प्रामाणिक चित्रण केवल साहित्य ही कर सकता है। यही कारण है कि यह पुस्तक केवल एक कृति नहीं, बल्कि उत्तराखण्ड के राजनीतिक-सांस्कृतिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय बनकर उभरती है।

    नेतृत्व तभी सार्थक होता है जब उसकी यात्रा समाज के लिए प्रेरणा बन जाए, और साहित्य तभी महान होता है जब वह विचारों को दिशा दे सके। संभावना पन्त की यह कृति दोनों उद्देश्यों को अद्भुत सामंजस्य के साथ पूर्ण करती है।

    मैं युवा लेखिका संभावना पन्त को हृदय से साधुवाद देता हूँ और उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए अपनी मंगलकामनाएँ प्रेषित करता हूँ।

    इस पुस्तक में योगदान देने वाले सभी सहयोगियों तथा यहाँ उपस्थित सभी महानुभावों को मैं अपनी ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ देते हुए अपनी वाणी को विराम देता हूँ।

    जय हिन्द!