25-06-2025 : कुमाऊँ विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयंती समारोह में माननीय राज्यपाल महोदय का उद्बोधन
जय हिन्द!
भारत के यशस्वी उप राष्ट्रपति, श्री जगदीप धनखड़ जी, कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर दीवान सिंह रावत जी, शिक्षा जगत के समर्पित सदस्यगण, प्रिय विद्यार्थियों, उपस्थित देवियों और सज्जनों!
हम सबके लिए यह अत्यंत गौरव का विषय है कि आज के इस विशेष समारोह में भारत के माननीय उप राष्ट्रपति जी हमारे बीच उपस्थित हैं। उनका व्यक्तित्व भारतीय संविधान की गरिमा, लोकतांत्रिक मूल्यों की प्रतिबद्धता और राष्ट्र के प्रति निष्ठा का प्रतीक है। मैं इस अवसर पर देवभूमि उत्तराखण्ड की ओर से आपका अभिनंदन और स्वागत करता हूँ।
आज कुमाऊँ विश्वविद्यालय की स्वर्ण जयंती के समारोह के इस ऐतिहासिक अवसर पर मैं कुमाऊँ विश्वविद्यालय के सभी पूर्व छात्रों, वर्तमान विद्यार्थियों, शिक्षकों, अधिकारियों और कर्मचारियों को हृदय से बधाई देता हूँ।
यह विश्वविद्यालय केवल एक शैक्षणिक संस्थान नहीं, बल्कि उत्तराखण्ड के इस मध्य हिमालयी अंचल में ज्ञान का एक ऐसा दीप स्तंभ है जिसने बीते पचास वर्षों में हजारों युवाओं के जीवन को आलोकित किया है।
आज हम विकसित भारत/2047 की संकल्पना की ओर तेजी से अग्रसर हैं, और इस लक्ष्य की प्राप्ति का मूल आधार शिक्षा है। कुमाऊँ विश्वविद्यालय ने इस दिशा में उल्लेखनीय योगदान दिया है। बीते पचास वर्षों में इस विश्वविद्यालय ने न केवल शैक्षणिक उत्कृष्टता को प्राप्त किया, बल्कि समाज के अंतिम व्यक्ति तक ज्ञान की रोशनी पहुँचाने का भी कार्य किया।
यह विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उत्तराखण्ड के युवाओं को नवाचार, अनुसंधान और नेतृत्व के लिए प्रेरित करता रहा है। आज के युवा, तकनीक-सक्षम, जागरूक और वैश्विक दृष्टिकोण वाले हैं। उन्हें राष्ट्र निर्माण के लिए सक्षम और प्रतिबद्ध बनाना ही हमारे शिक्षा तंत्र का उद्देश्य होना चाहिए।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 हमारे देश के शिक्षा क्षेत्र में एक ऐतिहासिक बदलाव का प्रतीक है। यह नीति केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि जीवन कौशल, नैतिकता, नवाचार, और बहु-विषयक दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है। माननीय उपराष्ट्रपति जी स्वयं छम्च् के एक सशक्त प्रवक्ता हैं। उनका यह स्पष्ट दृष्टिकोण रहा है कि शिक्षा वह हो, जो जीवन को सार्थक बनाए, व्यक्ति को समाज से जोड़े और राष्ट्र के विकास में उसकी भागीदारी सुनिश्चित करे।
साथियों,
हमारा देश युवा है। 65 प्रतिशत जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है। यह जनसांख्यिकीय लाभ तभी सार्थक होगा जब हम अपने युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, रोजगारपरक कौशल, उद्यमशीलता और सामाजिक चेतना से युक्त करें। मेरी अपेक्षा है कि कुमाऊँ विश्वविद्यालय इस दिशा में स्थानीय आवश्यकताओं को समझते हुए वैश्विक क्षितिज की ओर आगे बढ़े।
आज का युवा केवल नौकरी खोजने वाला नहीं, रोजगार सृजक, स्टार्टअप लीडर, टेक्नोलॉजी नवाचारकर्ता और सामाजिक सुधारक बन रहा है। विश्वविद्यालयों का दायित्व है कि वे इस युवा शक्ति को केवल शिक्षित ही नहीं, बल्कि प्रेरित, प्रशिक्षित और उत्तरदायी नागरिक के रूप में विकसित करें।
साथियों,
अपने राष्ट्र को विश्व गुरु बनाने की दिशा में शिक्षकों की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। वे न केवल ज्ञान देते हैं, बल्कि व्यक्तित्व गढ़ते हैं, नेतृत्व को जन्म देते हैं और विचारों में संस्कारों का सिंचन करते हैं। शिक्षकों का कार्य केवल पाठ्यक्रम की पूर्ति नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण और मूल्य आधारित राष्ट्र निर्माण है।
आज आवश्यकता है कि हमारे शिक्षक शोध और अध्यापन दोनों में दक्ष हों, तकनीक का उपयोग करें, विद्यार्थियों को मूल्य आधारित विचारधारा से जोड़ें और उनमें ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना उत्पन्न करें।
हमें शिक्षा को ‘राष्ट्र प्रथम’ के मंत्र से जोड़ना होगा। जब हमारे शिक्षण संस्थान राष्ट्र की प्राथमिकताओं, सामाजिक चुनौतियों और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के प्रति सजग होंगे, तभी हम विकसित भारत का सपना पूरा कर सकते हैं।
हमारा प्रत्येक विद्यार्थी इस भाव से पढ़े कि उसकी सफलता केवल उसकी व्यक्तिगत उन्नति नहीं, बल्कि राष्ट्र की उन्नति है। चाहे वह वैज्ञानिक बने, शिक्षक बने, सैनिक बने, उद्यमी बने या प्रशासक – उसमें ‘भारत को सर्वाेत्तम बनाने’ की आकांक्षा होनी चाहिए।
मैं कुमाऊँ विश्वविद्यालय को अब अगले पचास वर्षों की यात्रा की योजना बनाने का आग्रह करता हूँ। ‘स्वर्णिम अतीत से विकसित भविष्य’ की ओर। इसमें पाँच प्रमुख लक्ष्य केंद्र में होने चाहिए-
1. शोध एवं नवाचार को प्राथमिकता, 2. स्थानीय समस्याओं पर केंद्रित अध्ययन, 3. डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन, 4. समावेशी शिक्षा – वंचित वर्ग तक पहुँच, 5. वैश्विक साझेदारी और इंटरनेशनलाइजेशन।
इस विश्वविद्यालय के पास अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, प्राकृतिक संसाधन और उत्कृष्ट मानव संसाधन हैं। मेरा विश्वास है कि इनका अधिक से अधिक उपयोग करते हुए हम इस संस्थान को उत्तराखण्ड ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए एक मॉडल यूनिवर्सिटी बनाने के लिए मिलकर प्रयास करेंगे।
साथियों,
हम ऐसे कालखण्ड में हैं जहाँ भारत ने वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान मजबूत की है। विश्व आज भारत को शांति, योग, आयुर्वेद, डिजिटल इंडिया, आत्मनिर्भर भारत और वैश्विक नेतृत्व के प्रतीक के रूप में देखता है। हमें इस यश और विश्वास को बनाए रखना है और इसे और आगे बढ़ाना है।
इस विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में, मैं पूरे शैक्षणिक और प्रशासनिक समुदाय द्वारा किए गए कार्यों की सराहना करता हूँ। यह स्वर्ण जयंती केवल उत्सव नहीं, बल्कि आत्ममंथन, संकल्प और पुनर्निर्माण का अवसर है।
आइए! आज के इस विशेष अवसर पर हम सभी संकल्प लें – शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र को सर्वाेच्च शिखर तक पहुँचाने का। ज्ञान के माध्यम से भारत को विश्व गुरु बनाने का। और चरित्र और पुरुषार्थ के माध्यम से इस देवभूमि उत्तराखण्ड को सर्वश्रेष्ठ राज्य बनाने का।
एक बार पुनः इस ऐतिहासिक अवसर पर मैं कुमाऊँ विश्वविद्यालय के सभी पूर्व छात्रों, वर्तमान विद्यार्थियों, शिक्षकों, अधिकारियों और कर्मचारियों को बधाई देता हूँ। और अपनी उपस्थिति से इस आयोजन को गरिमामयी बनाने के लिए माननीय उप राष्ट्रपति जी का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
जय हिन्द!