19-12-2025 : सैनिक स्कूल कपूरथला के वार्षिक उत्सव समारोह में माननीय राज्यपाल महोदय का सम्बोधन
जय हिन्द!
सैनिक स्कूल कपूरथला के ऊर्जावान, तेजस्वी और राष्ट्र-प्रेम से ओत-प्रोत युवा कैडेट्स के मध्य उपस्थित होने पर, सच कहूँ आज मैं अंतरात्मा से असीम गर्व और अपार प्रसन्नता की अनुभूति कर रहा हूँ। मैं इस विशेष अवसर पर आप सभी को हृदय से बधाई और शुभकामनाएं देता हूँ।
आज इस ऐतिहासिक जगतजीत पैलेस के प्रांगण में खड़े होकर मेरे भीतर केवल स्मृतियाँ नहीं, बल्कि समय की पूरी एक यात्रा सजीव हो उठी है। यह वही भूमि है जहाँ मैंने अनुशासन का पहला पाठ सीखा, जहाँ प्रातःकाल की ठंडी हवा में परेड की ताल पर कदम मिलाते हुए जीवन की दिशा तय हुई, और जहाँ इस मिट्टी ने मुझे गढ़कर राष्ट्र की वर्दी सौंपने योग्य बनाया। आज यहाँ लौटना मेरे लिए आत्मा की घर-वापसी है।
जब किसी व्यक्ति का निर्माण होता है, तो उसके जीवन में कुछ स्थान ऐसे होते हैं जो उसके भीतर स्थायी रूप से बस जाते हैं। सैनिक स्कूल कपूरथला मेरे लिए ऐसा ही एक तीर्थ है। यहाँ मैंने जाना कि शिक्षा केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं होती, वह चरित्र में उतरती है, अनुशासन केवल आदेश नहीं होता, वह जीवन-पद्धति बनता है, और नेतृत्व कोई पद नहीं, बल्कि सेवा का भाव होता है।
यह विद्यालय केवल एक शैक्षणिक संस्थान नहीं है। यह राष्ट्र की सुरक्षा-श्रृंखला की पहली कड़ी है। 1961 में जिस दूरदृष्टि के साथ इस स्कूल की स्थापना की गई थी, उसका उद्देश्य स्पष्ट था- ऐसे नागरिक तैयार करना जो संकट में खड़े हों, जो राष्ट्र को सर्वाेपरि मानें और जिनके लिए ‘कर्तव्य’ केवल शब्द न होकर साधना हो।
दशकों की इस तपस्या का परिणाम आज हमारे सामने है। एक हजार से अधिक अधिकारी, जिन्होंने थल, जल और नभ- तीनों सेनाओं में नेतृत्व किया, जिनके निर्णयों ने सीमाओं को सुरक्षित रखा, और जिनके बलिदान ने भारत को निर्भीक बनाया। हमारे स्कूल को छक्। में अधिकतम कैडेट भेजने के लिए कई बार ‘रक्षा मंत्री ट्रॉफी’ से सम्मानित किया गया है। 35 वर्षों के अंतराल के बाद इस ट्रॉफी को फिर से हासिल कर हमने भारत के सर्वश्रेष्ठ सैनिक स्कूलों में से एक के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत किया है, जो हमारे लिए गर्व का विषय है।
आज जब हम इस विद्यालय का वार्षिक उत्सव मना रहे हैं, तब यह केवल उपलब्धियों का उत्सव नहीं, बल्कि उत्तरदायित्व की पुनः स्मृति का क्षण है। आप सब कैडेट्स से मैं कहना चाहता हूँ- यह परंपरा आपको गौरव देती है, पर साथ ही आपसे अपेक्षा भी करती है। इतिहास का सम्मान तभी सार्थक होता है, जब वर्तमान उसे आगे बढ़ाने का साहस रखे।
मेरे युवा साथियों,
जब अपने सपनों से पहले राष्ट्र का स्वप्न रखा जाता है, तब साधारण युवा असाधारण इतिहास रचते हैं। इसलिए “राष्ट्र प्रथम-राष्ट्र सर्वाेपरि” की भावना हर युवा हृदयों में धड़कता हुआ जीवन-मंत्र होना चाहिए। इस मंत्र को आत्मसात कर आप भारत की शक्ति, प्रतिष्ठा और भविष्य का स्वर्णिम आधार तैयार करेंगे, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है।
आज दुनिया तेजी से बदल रही है। आज का वैश्विक परिदृश्य अनिश्चितताओं से भरा है। सीमाएँ केवल नक्शों पर नहीं, साइबर स्पेस, अंतरिक्ष और सूचना-तंत्र में भी सुरक्षित करनी पड़ती हैं। भारत आज एक निर्णायक भूमिका में है। एक ऐसा राष्ट्र जो शांति चाहता है, पर शक्ति के साथ, जो संवाद में विश्वास रखता है, पर दृढ़ संकल्प के साथ। चाहे वह सीमाओं की रक्षा हो, प्राकृतिक आपदाएँ हों, आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष हो या विश्व में शांति-स्थापना के मिशन। मैं गर्व के साथ कह सकता हूँ कि आजादी से लेकर अब तक भारतीय सेनाओं ने हर चुनौती में राष्ट्र की ढाल बनकर खड़े होने का कार्य किया है।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में आज भारत की सेनाएँ एक नए आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रही हैं। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता, स्वदेशी तकनीक, आधुनिक हथियार प्रणालियाँ, संयुक्त कमान की अवधारणा और सैनिकों के सम्मान को सर्वाेच्च प्राथमिकता। यह सब सेना के कायाकल्प का प्रतीक है। आज का नया भारत रक्षा प्रौद्योगिकी का सशक्त निर्माता बन रहा है। यह परिवर्तन केवल नीतियों से नहीं, बल्कि उस विश्वास से आया है जो राष्ट्र अपने सैनिकों पर करता है और सैनिक राष्ट्र पर।
हाल ही के अभियानों और उपलब्धियों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत अब अपने हितों की रक्षा के लिए किसी पर निर्भर नहीं है। आधुनिक युद्ध केवल शारीरिक शक्ति का नहीं, बल्कि बौद्धिक क्षमता, तकनीकी दक्षता और त्वरित निर्णयों का युद्ध है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ड्रोन, साइबर सुरक्षा, अंतरिक्ष-आधारित निगरानी। ये सब आज की सैन्य शब्दावली का हिस्सा हैं। इसलिए, आप सब कैडेट्स से मेरा आग्रह है कि अपने मन को जितना परेड ग्राउंड में दौड़ाते हैं, उतना ही प्रयोगशालाओं और कक्षाओं में भी उड़ान दें।
एआई (।प्) आधारित विश्लेषण से लेकर वास्तविक समय के ड्रोन फीड्स और सटीक-निर्देशित हथियारों तक, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने यह साबित कर दिया है कि आधुनिक युद्ध वही जीतता है जिसके पास बेहतर दिमाग और तकनीक होती है, न कि केवल भारी शारीरिक बल।
इसलिए आप अपने आईटी और तकनीकी कौशल को अभी से, स्कूल के इन वर्षों में ही निखारना शुरू करें। कोडिंग सीखें, एआई को समझें, डेटा, ड्रोन, साइबर सुरक्षा और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध के बुनियादी सिद्धांतों में महारत हासिल करें। भविष्य के अधिकारी न केवल सैनिकों और टैंकों की कमान संभालेंगे, बल्कि वे नेटवर्क, सेंसर और एल्गोरिदम का भी नेतृत्व करेंगे।
किन्तु याद रखिए, तकनीक तभी वरदान बनती है जब उसे चरित्र का मार्गदर्शन मिले। बिना मूल्यों के शक्ति विनाशकारी होती है। सैनिक स्कूल की सबसे बड़ी देन यही है कि वह आपके भीतर ‘अधिकारी जैसे गुण’ रोपित करता है। सत्यनिष्ठा, साहस, करुणा, टीम भावना, नेतृत्व और आत्मानुशासन- ये गुण किसी एक दिन में विकसित नहीं होते। ये तब बनते हैं जब आप कठिनाइयों से भागते नहीं, जब आप हार के बाद भी खड़े होते हैं, जब आप अपने से कमजोर के साथ खड़े होने का साहस रखते हैं।
आपका आचरण तब भी शुद्ध होना चाहिए जब कोई देखने वाला न हो। राष्ट्र आपको केवल परीक्षा में उत्तीर्ण होने के आधार पर नहीं, बल्कि उस भरोसे पर चुनता है कि आप संकट की घड़ी में सही निर्णय लेंगे। गुरु गोबिंद सिंह जी की वह पंक्ति-“देह शिवा बर मोहे एहै, शुभ करमन ते कबहूँ न टरों”-केवल एक श्लोक नहीं, बल्कि सैनिक जीवन का मंत्र है।
कुछ कैडेट्स के मन में यह प्रश्न स्वाभाविक है कि आज के समय में जब अनेक आकर्षक करियर विकल्प उपलब्ध हैं, तब सैन्य जीवन क्यों चुना जाए। मैं अपने अनुभव से कहता हूँ, सेना आपको वह देती है जो कोई अन्य क्षेत्र नहीं दे सकता। यह आपको भारत के सर्वश्रेष्ठ युवाओं का नेतृत्व करने का अवसर देती है, आपको उद्देश्य देती है, आपको यह अनुभूति कराती है कि आपके निर्णय किसी राष्ट्र की नींद की रक्षा कर रहे हैं। हाँ, यह मार्ग कठिन है, पर यही कठिनाई इसे महान बनाती है।
आज इस मंच से मैं अभिभावकों और शिक्षकों का विशेष रूप से अभिनंदन करता हूँ। आपके धैर्य, समर्पण और विश्वास के बिना इन बच्चों का यह रूप संभव नहीं था। आपने अपने सपनों से पहले राष्ट्र को रखा है, और यही सबसे बड़ा योगदान है।
मेरे प्रिय कैडेट्स,
एक दिन आप में से कोई बर्फीली चौकी पर तिरंगा थामे खड़ा होगा, कोई आकाश में देश की सीमाओं की रक्षा करेगा, कोई समुद्र की गहराइयों में राष्ट्र की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, और कोई साइबर जगत में अदृश्य युद्ध लड़ेगा। उस दिन आप स्मरण करेंगे कि आपकी असली तैयारी -इन कक्षाओं में, इस परेड ग्राउंड पर, इन अनुशासनपूर्ण दिनों में यहीं हुई थी।
अपने जीवन का एक भी क्षण व्यर्थ न जाने दें। अपने शरीर को सुदृढ़ करें, अपने मन को प्रखर बनाएं, अपने चरित्र को अडिग रखें और अपने हृदय में राष्ट्र को सर्वाेपरि स्थान दें। केवल पुरस्कार जीतने का लक्ष्य न रखें, बल्कि ऐसा जीवन जिएँ कि आपका आचरण ही पुरस्कार बन जाए।
“विविधता में एकता” भारत की आत्मा है, भारत की पहचान है, और भारत की सबसे बड़ी शक्ति है। हमारी भाषा, वेश, विचार और परंपराएँ भले भिन्न हों, पर राष्ट्रभाव की धारा हम सभी को एक सूत्र में बाँधती है। यही एकता संकट में ढाल बनती है और विकास में शक्ति। जब विविधता समरसता बनती है, तब भारत अजेय बनता है।
विकसित भारत का सपना केवल सरकारों से पूरा नहीं होगा। इसे साकार करने के लिए चरित्रवान, सक्षम और राष्ट्रनिष्ठ युवा चाहिए। आप उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो भारत को तकनीकी रूप से सशक्त, नैतिक रूप से दृढ़ और वैश्विक रूप से सम्मानित बनाएगी।
मैं जब आप सबको देखता हूँ, तो मुझे भविष्य का भारत दिखाई देता है- आत्मविश्वासी, सक्षम और अडिग। यह राष्ट्र आपसे बहुत अपेक्षा रखता है, मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप उन अपेक्षाओं पर खरे उतरेंगे, और आत्मनिर्भर भारत, विकसित भारत एवं विश्व गुरु भारत को गढ़ने में अपना सर्वाेच्च योगदान देंगे।
इसी विश्वास, इसी आशीर्वाद और इसी संकल्प के साथ, मैं आप सबके उज्ज्वल भविष्य, सैनिक स्कूल कपूरथला की निरंतर प्रगति और भारत माता की अखंड, सुदृढ़ और समृद्ध यात्रा की कामना करते हुए अपनी वाणी को विराम देता हूँ।
जय हिन्द!