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    18-07-2024- ‘अमरत्व की ओर’ पुस्तक लोकार्पण’ कार्यक्रम में माननीय राज्यपाल महोदय का उद्बोधन।

    प्रकाशित तिथि: जुलाई 18, 2024

    जय हिन्द!

    ‘अमरत्व की ओर’ पुस्तक लोकार्पण समारोह में आप सभी विद्वत जनों के बीच उपस्थित होने पर मुझे परम आनंद का अनुभव हो रहा है।

    यह प्रसन्नता की बात है कि इस पुस्तक में भारत के आर्ष ऋषियों की प्राचीन परंपरा के गौरव को समाहित किया गया है। यह पुस्तक उपनिषदों के गंभीर चिंतन के चयनित अंश को कथाओं के रुप में हिंदी में प्रकाशित की गई है। इससे सभी पाठक इसका आसानी से अध्ययन कर सकेंगे।

    उपनिषद भारतीय आध्यात्मिक चिंतन के मूल आधार हैं और भारतीय आध्यात्मिक दर्शन के स्रोत हैं। उपनिषद वेदों के अंतिम भाग हैं, इसलिए इन्हें वेदांत भी कहा जाता है।

    मुझे अच्छा लगा कि ‘अमरत्व की ओर’ पुस्तक में उपनिषदों में विद्यमान जीवन रहस्य और जीवन के मूल्य परक सिद्धांतों को सरल कथाओं के रुप में वर्णित किया गया है। प्रमुख उपनिषदों से संगृहीत 20 कथाएं इस कृति में प्रस्तुत की गई हंै। इन कथाओं में उपनिषदों के मूल तत्व बाल बोध रीति, साधारण जिज्ञासुओं और छात्रों के ज्ञान की दृष्टि से समाहित है।
    मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, समाज में रहने के लिए उसे बहुत सी बातों का ज्ञान होना चाहिए। पुस्तकें ज्ञान का सागर होती हैं। इनको पढ़कर हमारा सामाजिक और मानसिक विकास होता है।

    हमारी किताबों में सब कुछ बहुत सुरक्षित है, जिनसे हम अपने इतिहास, सभ्यता, संस्कृति के विषय में विस्तार से जान सकते हैं और उस पर गर्व महसूस कर सकते हैं। गीता, रामायण जैसी पुस्तकों को पढ़कर मन को परम शांति का अनुभव होता है।

    मनुष्य अजर-अमर नहीं होता है, लेकिन पुस्तकें तो अमर होती हैं। लेखकों द्वारा लिखी गई पुस्तकें हमेशा जीवित रहती है और हमारा मार्गदर्शन करती है। जिससे पुस्तकों के रुप में वे भी हमेशा जीवित रहते हैं।

    भारतीय ज्ञान परंपरा के संवाहक प्राचीनतम गौरव ग्रंथ वेद न केवल भारतीय आर्ष साहित्य के ग्रंथ माने गए हैं, बल्कि उन्हें इस संपूर्ण सृष्टि में विद्यमान सभी प्रकार के ज्ञान-विज्ञान का आदिस्रोत भी माना गया है। उपनिषद् उस विद्या के रुप में सुप्रसिद्ध है जिनके द्वारा जिज्ञासु आत्मा और परमात्मा के गंभीर रहस्य का ज्ञान पाने से सफल हुए है।

    रहस्य विद्या के नाम से प्रसिद्ध उपनिषद् भारतीय संस्कृति और ज्ञान की श्रेष्ठतम विरासत है। उपनिषदों की महत्ता से भारतीय ही नहीं पश्चिम के विद्वान भी अभिभूत हैं और इन विद्वानों ने, उन पर गंभीर चिंतन-मनन भी किया है। विद्वान दार्शनिक ‘शापेन हावर’ ने माना है कि इस विश्व में उपनिषदों के समान कल्याणकारी और मानव आत्मा को उन्नत बनाने वाला कोई दूसरा ग्रंथ नहीं है।

    उपनिषदों का मूल रहस्य वेदांत-विज्ञान है। उपनिषद् ब्रह्म ज्ञान की प्रमुख श्रृंखला है जो अज्ञान से मुक्ति दिलाने में समर्थ है। मानव आत्मा के रहस्य की व्याख्या करते हैं।

    विद्या और अविद्या इन दोनों को ही एक साथ जानना, अविद्या से परे मृत्यु को पार कर विद्या से देवत्व को प्राप्त कर लेना, यही उपनिषदों का सार है। आज जिस योग-विज्ञान की चर्चा पूरे विश्व में व्याप्त है, उसका मूल स्रोत उपनिषद् ही हैं।

    उपनिषद् विद्या सनातन विद्या है। गुरु-शिष्य परंपरा और जीवन मूल्यों में निहित उपनिषदों के दार्शनिक महत्व की खोज में भारतीय और पाश्चात्य वैज्ञानिक निरंतर शोध करते रहे हैं और आज भी कर रहे हैं।

    प्राचीन भारत की विज्ञान आधारित प्रथाएं और ज्ञान आज भी आधुनिक दुनिया में प्रासंगिक हैं। हमारी प्राचीन विरासत वेद, उपनिषद् और अन्य तमाम ग्रंथों, अद्भुत कृतियों से भरी हुई हैं। मेरा मानना है कि इन्हें संरक्षित और प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता है।

    मैं तो मानता हूँ कि समस्त दुनिया की अनगिनत समस्याओं का समाधान भारतीय ज्ञान प्रणाली में निहित है। अब समय आ गया है कि हम अपने प्राचीन ज्ञान के असीमित ज्ञान के भंडार में झांकंे। यह हमारे राष्ट्र निर्माण के लिए और विश्व के स्थायित्व के लिए यह बहुत आवश्यक है।

    हम जानते हंै कि अपने प्राचीन और विशिष्ट ज्ञान की बदौलत ही भारत कभी ‘विश्वगुरु’ था। भारतीय ज्ञान, संस्कृति और परंपराओं में ही वह सामथ्र्य है, जिससे भारत अकेले नहीं बल्कि पूरे विश्व को शांति पथ पर ला सकता है, दुनिया को बेहतर दिशा देने में अपना योगदान दे सकता है, इसलिए हमको अपने मूल, अपनी संस्कृति से जुड़े रहना बहुत जरुरी है।

    हमारी नई शिक्षा नीति हमारे सांस्कृतिक मूल्यों का समावेश है, यह नीति हमारी सांस्कृतिक विरासत का सृजन करने वाली है, भारतीयता हमारी पहचान है, राष्ट्रवाद हमारा परम धर्म है। इसलिए हर भारतवासी को अपनी संस्कृति और विरासत पर गर्व का अनुभव करना चाहिए।

    महान दार्शनिक सुकरात ने कहा था- ‘‘विद्या या शिक्षा किसी बर्तन को भरना नहीं बल्कि एक ज्योति को प्रकाशित करना है।’’ नई शिक्षा नीति में भी भारतीय ज्ञान परंपरा की विभिन्न धाराओं को प्रसारित करते हुए छात्रों के नैतिक मूल्यों पर विशेष जोर दिया गया है।

    आदिशंकराचार्य सहित आर्ष ऋषियों, नवयुग के भारतीय दार्शनिक चिंतकों महर्षि अरविंद, स्वामी विवेकानंद, डॉ. राधा कृष्णन, स्वामी चिन्मयानंद सहित अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने भी उपनिषदों के ज्ञान को आत्मसात किया और उस ज्ञान का प्रकाश सर्वत्र फैलाया है। विश्व की अनेक भाषाओं में उपनिषदों के अनुवाद भी किए जा चुके हैं।

    वैज्ञानिक तकनीकी, संचार क्रांति के युग में यह पुस्तक वेद, उपनिषद् ज्ञान के साथ ब्रह्माण्ड विज्ञान और सृष्टि के रहस्य को समझने में सहायक होगी, ऐसा मेरा मानना है।

    मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि इस पुस्तक की कहानियाँ भारतीय आर्ष परंपरा और उपनिषद् के ज्ञान को जानने के लिए सुधी पाठकों की जिज्ञासा को दूर करने में सहायक बनेंगी। संस्कृत ज्ञान से अपरिचित नई पीढ़ी के विभिन्न विषयों के छात्र, अध्यापकों के लिए भी यह कृति उपयोगी हो सकती है।

    यहां उपस्थित विद्वानों के समाज के साथ पुस्तक लेखिका डॉ. सुधारानी पांडेय, को भी बहुत-बहुत बधाई देते हुए अपनी वाणी को विराम देता हूँ।

    जय हिन्द!