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    13-04-2024 : ‘‘जननायक सरबंसदानी गुरु गोबिंद सिंह’’ पुस्तक के विमोचन के अवसर पर माननीय राज्यपाल महोदय का उद्बोधन।

    प्रकाशित तिथि: अप्रैल 13, 2024

    जय हिन्द!

    मुझे अति प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है, कि आज राजभवन में उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, द्वारा ‘‘जननायक सरबंसदानी श्री गुरु गोबिंद सिंह’’ जी के जीवनवृत्त पर प्रकाशित पुस्तक का विमोचन किया गया है। आज हम बैसाखी का पर्व भी मना रहे हैं। आज के पावन अवसर पर इस पुस्तक का विमोचन किया जाना अपने आप में एक बड़ा संयोग है। मैं इसके लिए विश्वविद्यालय के कुलपति सहित पुस्तक प्रकाशन में उनके सभी सहयोगियों को बधाई देता हूं।

    यह हम सब के लिए गर्व का विषय है कि ऐसे जन नायक जो सिखों के दसवें गुरु होने के साथ-साथ एक महान योद्धा, कवि, देशभक्त एवं आध्यात्मिक नेता, मौलिक चिन्तक व संस्कृत, ब्रजभाषा, फारसी सहित कई भाषाओं के ज्ञाता थे उन पर यह पुस्तक केंद्रित है।

    पंजाब की धरती वो धरती है जिसने समय-समय पर देश को दिशा और हौसला दिया है। जब हमारे समाज में अंधियारा छाया, तो गुरुनानक देव जी जैसे गुरु ने समाज को रोशन करने का काम किया। गुरु अर्जुनदेव और गुरु गोबिंद सिंह जी जैसे गुरुओं ने देश और धर्म की हिफाज़त कर देश को नई दिशा दी।
    सिख गुरु परंपरा केवल आस्था और आध्यात्म की परंपरा नहीं है। ये ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के विचार का भी प्रेरणा पुंज है। इसी तरह, आप गुरु गोबिंद सिंह जी की जीवन यात्रा को भी देखिए। उनका जन्म पूर्वी भारत में पटना में हुआ। उनका कार्यक्षेत्र उत्तर-पश्चिमी भारत के पहाड़ी अंचलों में रहा। और उनकी जीवनयात्रा महाराष्ट्र में पूरी हुई। गुरु के पंच प्यारे भी देश के अलग-अलग हिस्सों से थे। ‘व्यक्ति से बड़ा विचार, विचार से बड़ा राष्ट्र’, ‘राष्ट्र प्रथम’ का ये मंत्र गुरु गोबिंद सिंह जी का अटल संकल्प था।

    गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने बेटों को भी राष्ट्र धर्म के लिए बलिदान करने में संकोच नहीं किया। जब उनके बेटों का बलिदान हुआ, तो उन्होंने अपनी संगत को देखकर कहा- ‘चार मूये तो क्या हुआ, जीवित कई हजार’। अर्थात, मेरे चार बेटे मर गए तो क्या हुआ? संगत के कई हजार साथी, हजारों देशवासी मेरे बेटे ही हैं। देश प्रथम, छंजपवद थ्पतेज को सर्वाेपरि रखने की ये परंपरा, हमारे लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है। इस परंपरा को सशक्त करने की जिम्मेदारी आज हमारे कंधों पर है।

    संसार में बहुत से महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिभा और दूरदर्शिता से समाज को नई दिशा प्रदान की और मानवीय हितों का संरक्षण किया। उन सभी में गुरु गोबिंद सिंह जी का व्यक्तित्व सूर्य के प्रकाश की तरह है। जिन्होंने अपने व्यक्तित्व से सदियों से मुरझाए, निराश, हताश, लाखों करोड़ों लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाई थी।

    जाति-वर्ण, ऊँच-नीच, धनी-निर्धन के सारे भेद जो तत्कालीन समाज में कोढ़ की तरह व्याप्त थे, जिन लोगों के सर सदा भय और हीन भावना से झुके रहते थे, अब सम्मान के साथ अपने सर उठाकर अपने हृदय मे आत्म गौरव की हुंकार भरने लगे। आगे चल कर यही अवधारणा खालसा के रूप में समानता स्थापित करने का साधन बनी।

    उन्होंने कहा श्रेष्ठ वह है जो दाता है और दाता मात्र एक परमेश्वर है, बाकि सभी याचक हैं। तो उनमें आपस का भेद कैसा? भेदभाव जो समाज की सबसे बड़ी और पुरातन व्याधि थी, उसका दृढ़ता और शुद्धता से निदान कर देना गुरु गोबिंद सिंह जी का ऐसा महान उपकार था। जिसका ऋण कभी नहीं चुकाया जा सकता। ऐसे अतुल व्यक्तित्व का धरती पर अवतार लेना एक पवित्रम घटना थी। जिसका साक्षी सिर्फ भारत ही नहीं समस्त विश्व बना।

    पुस्तकें हमारी आसपास की दुनिया को समझने, सही और गलत के बीच निर्णय लेने में हमारी मदद करती हैं। वे हमारे आदर्श, मार्गदर्शक या सर्वकालिक शिक्षक के रूप में भी हमारे जीवन में शामिल रहती हैं। किताबें न सिर्फ हमें जानकारियां देती है बल्कि हमारे अतीत के चलचित्र से भी रूबरू करवाती हैं। किताबें हमारी कल्पना शक्ति को भी रोशन करती हैं।

    ‘‘जननायक सरबंसदानी गुरु गोबिंद सिंह’’ के जीवनवृत्त पर प्रकाशित पुस्तक नागरिकों में आत्म गौरव का भाव लाकर समाज को दिशा देने का काम करेगी ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है। मैं परमपिता परमेश्वर एक ओंकार को नमन करते हुए, इस पुस्तक के प्रचार-प्रसार की कामना करता हूँ साथ ही पुस्तक के लेखक वर्ग को हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ।

    जय हिन्द!