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    12-06-2025 : स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को माननीय राज्यपाल महोदय का संबोधन।

    प्रकाशित तिथि: जून 12, 2025

    जय हिन्द!

    सर्वप्रथम मैं आप सभी को, विशेषकर हमारी परिश्रमी, आत्मनिर्भर और जुझारू मातृशक्ति को सादर प्रणाम करता हूँ। उत्तराखण्ड की मातृशक्ति की सफलता की कहानियों से मैं अभीभूत हूँ। उत्तराखण्ड की मातृशक्ति बेहद प्रतिभावान होने के साथ-साथ आत्मनिर्भरता की मिसाल हैं।

    यह मेरे लिए अत्यंत गौरव और हर्ष का विषय है कि आज मुझे उत्तराखण्ड की उन महिलाओं से संवाद करने का अवसर मिला है, जो स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से समाज को एक नई दिशा, नया संबल और नया विश्वास दे रही हैं।

    उत्तराखण्ड एक ऐसा प्रदेश है जिसे देवभूमि के साथ-साथ नारीशक्ति की भूमि भी कहा जाना चाहिए। यहाँ की महिलाओं ने समय-समय पर यह सिद्ध किया है कि वे केवल घर-परिवार तक सीमित नहीं, बल्कि समाज, राज्य और राष्ट्र के निर्माण की प्रक्रिया में अग्रणी भूमिका निभाने की क्षमता रखती हैं। चाहे बात राज्य आंदोलन की हो, पर्यावरण संरक्षण की, या फिर आर्थिकी की रीढ़ बनने की, उत्तराखण्ड की महिलाओं ने हर मोर्चे पर अपना अतुलनीय योगदान दिया है।

    हम सबको स्मरण है कि जब उत्तराखण्ड राज्य की माँग के लिए जनांदोलन में हजारों की संख्या में महिलाओं ने सड़कों पर उतरकर नेतृत्व किया। विषम परिस्थितियों में, संघर्ष और बलिदान की अनगिनत कहानियों ने इस पर्वतीय राज्य को नई पहचान दी।

    उत्तराखण्ड की महिलाएँ सदियों से पर्यावरण और जलवायु संतुलन की संरक्षक रही हैं। चिपको आंदोलन इसका श्रेष्ठ उदाहरण है। उस समय जब वन कटान हो रहा था, तब उत्तराखण्ड की पहाड़ी महिलाओं ने पेड़ों से लिपटकर उन्हें बचाने का साहसिक कार्य किया। इस आंदोलन ने न केवल देश बल्कि विश्व को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में प्रेरित किया।

    आज भी हमारे गांवों में महिलाएँ जल स्रोतों की रक्षा कर रही हैं, वर्षा जल संचयन, जैविक खाद और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही हैं। ये कार्य न केवल पर्यावरण की रक्षा कर रहे हैं, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए स्थायी विकास का मार्ग प्रशस्त कर रहें हैं।

    मुझे यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि आज उत्तराखण्ड के कोने-कोने में हजारों स्वयं सहायता समूह सक्रिय हैं। जो समूह महिलाओं को एकजुट कर उन्हें वित्तीय, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक रूप से सशक्त बना रहे हैं। आज वे अब केवल उपभोक्ता नहीं रहीं, बल्कि उत्पादक बन गई हैं। ग्राम स्तर पर लघु उद्योग चला रही हैं, बेकरी, हथकरघा, जैविक उत्पाद, हस्तशिल्प, मसाले, मधुमक्खी पालन, फूलों की खेती और डेयरी उत्पादों के माध्यम से आर्थिक आत्मनिर्भरता की मिसाल गढ़ रही हैं।

    महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा बनाए गए उत्पाद लोकल से ग्लोबल तक जा रहे हैं। कुछ महिलाओं द्वारा अपने उत्पादों की विदेशों में बिक्री की जा रही है, जिससे उनकी आमदनी में अच्छी बढ़ोतरी हो रही है, जो बहुत ही सराहनीय है। ऐसे समूह अन्य के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

    मैं प्रदेशवासियों से अपील करता हूँ कि त्योहारों एवं विशेष पर्वों पर महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा बनाए गए स्थानीय उत्पादों को जरूर खरीदें। ‘‘वोकल फॉर लोकल’’ से जहाँ हमारे उत्पादों को बढ़ावा मिलेगा, वहीं स्थानीय स्तर पर लोगों की आजीविका भी बढ़ेगी।

    उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि कार्यों का अधिकांश भार महिलाओं के कंधों पर है। बुवाई, कटाई, सिंचाई, बीज-संरक्षण से लेकर विपणन तक, महिलाओं की भागीदारी सबसे अधिक है। जलवायु परिवर्तन की चुनौती के बीच महिलाएँ पारंपरिक कृषि पद्धतियों को आधुनिक ज्ञान से जोड़कर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर की दिशा में कार्य कर रही हैं।

    आज जरूरत है कि हम इस ज्ञान को संरक्षित करें, इसे तकनीकी सहायता से और अधिक समृद्ध करें और महिला कृषकों को वैज्ञानिक प्रशिक्षण प्रदान करें।

    मैं तो उत्तराखण्ड की मातृशक्ति को उत्तराखण्ड के भविष्य का नेतृत्वकर्ता मानता हूँ। मैं लगातार प्रयासरत हूँ कि स्वयं सहायता समूहों को अधिक समर्थन, प्रशिक्षण और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक पहुँच प्राप्त हो।

    मेरा प्रयास रहा है कि स्वयं सहायता समूहों की महिला उद्यमियों के उत्पादों को राजभवन में आयोजित विभिन्न मेलों और प्रदर्शनी में स्थान मिले, जिससे उन्हें बाजार, नेटवर्क और नए ग्राहक मिल सकें।

    आपके उत्पाद अब न केवल स्थानीय बाजारों तक सीमित हैं, बल्कि ई-कॉमर्स, सरकारी विपणन पोर्टलों और निर्यात मंचों तक पहुँच बना रहे हैं। यह अत्यंत गर्व का विषय है।

    उत्तराखण्ड सरकार भी इस दिशा में सतत प्रयासरत है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (छत्स्ड) के अंतर्गत प्रदेश में 4 लाख से अधिक महिलाएँ स्वयं सहायता समूहों से जुड़ चुकी हैं। इनके माध्यम से लघु ऋण, प्रशिक्षण, विपणन सहायता, बीमा और कौशल विकास की सुविधा दी जा रही है। राज्य सरकार की ‘‘सशक्त बहना योजना’’ के माध्यम से महिला स्वयं सहायता समूह सपनों को साकार कर रहे हैं।

    ‘‘लखपति दीदी योजना’’ के तहत अपना व्यवसाय खड़ा करने के लिए महिला समूहों को बिना ब्याज के 5 लाख रुपये का ऋण दिया जा रहा है। मैं आप सभी से अपील करता हूँ कि इस योजना का अधिक से अधिक लाभ उठाएँ।

    इसके अतिरिक्त, मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना, वोकल फॉर लोकल अभियान, और हुनर हाट जैसे कार्यक्रम महिलाओं को सशक्त करने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। मैं यह आग्रह करता हूँ कि आप सभी इन योजनाओं का लाभ लें और अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार करें।

    मुझे पूरा विश्वास है कि यदि हमारी मातृशक्ति को सशक्त बनाया जाए, तो उत्तराखण्ड केवल भारत का नहीं, विश्व का एक आदर्श राज्य बन सकता है। नारी शक्ति के बिना विकास की कल्पना अधूरी है।

    मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपका परिश्रम, प्रतिबद्धता और सामूहिक शक्ति उत्तराखण्ड को एक आत्मनिर्भर, पर्यावरण के प्रति संवेदनशील और आर्थिक रूप से समृद्ध राज्य बनाएगी।

    मैं समर्पण और सहयोग की भावना से कार्य कर रहे स्वयं सहायता समूहों को हृदय से बधाई देता हूँ। इन समूहों ने आज यह सिद्ध किया है कि एकजुटता, पारदर्शिता और समर्पण से कोई भी सामाजिक बदलाव संभव है।

    मैं सभी स्वयं सहायता समूहों की बहनों से यह आग्रह करता हूँ कि सहयोग और समर्पण की भावना बनाए रखें, स्थानीय संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करें, पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक तकनीक से जोड़ें, और अपने अनुभवों को अन्य महिलाओं के साथ साझा करें।

    मैं आश्वस्त करता हूँ कि आपकी हर पहल को प्रोत्साहन मिलेगा, और जो भी जरूरी सहयोग चाहिए, वह आपको दिलाया जाएगा।

    आइए, हम मिलकर उत्तराखण्ड को ‘‘नारी शक्ति आधारित विकास मॉडल’’ का उदाहरण बनाएँ। आप सभी को शुभकामनाएँ देते हुए अपनी वाणी को विराम देता हूँ।

    जय हिन्द!
    जय उत्तराखण्ड!