11-12-2025 : हर्षल फाउंडेशन द्वारा आयोजित दिव्यांग पुनर्वास शिविर के उद्घाटन अवसर पर माननीय राज्यपाल महोदय का संबोधन।
जय हिन्द!
“सम्माननीय अतिथिगण, विशिष्ट नागरिक, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारीगण, दिव्यांगजन एवं उनके परिजन तथा हर्षल फाउंडेशन के पदाधिकारी! आप सभी को मेरा सादर अभिवादन!
आज दिव्यांग पुनर्वास शिविर के इस महत्वपूर्ण अवसर पर आप सबके बीच उपस्थित होकर मुझे अत्यन्त संतोष और आत्मिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।
हर्षल फाउंडेशन द्वारा किया गया यह प्रयास केवल एक सेवा गतिविधि नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनशीलता, करुणा, समर्पण और सामाजिक उत्तरदायित्व की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति है। यह शिविर हम सबको यह याद दिलाता है कि वास्तविक प्रगति वही है जिसमें समाज के प्रत्येक व्यक्ति को सम्मान, अवसर और गरिमा प्राप्त हो।
मुझे जानकारी दी गई है कि यह शिविर पिछले कई वर्षों से निरंतर आयोजित किया जा रहा है, और अब तक दस हजार से अधिक दिव्यांगजन इसका लाभ प्राप्त कर चुके हैं। इस शिविर में कृत्रिम अंग, हाथ, पैर, कैलिपर, बैसाखी, व्हीलचेयर, ट्राइसाइकिल, वॉकर, स्टिक, श्रवण यंत्र और विशेष चश्मे प्रदान किए जा रहे हैं। साथ ही चिकित्सा परामर्श, फिजियोथेरेपी, स्वास्थ्य परीक्षण, तलवों और रीढ़ की बीमारियों के उपचार तथा आवश्यक परामर्श की पूरी व्यवस्था की गई है।
दिव्यांगजन के लिए कौशल विकास, रोजगार सहायता तथा स्वावलंबन कार्यक्रमों का भी विशेष प्रावधान किया गया है। वरिष्ठ नागरिकों के लिए भी व्हीलचेयर, नी ब्रेसेस, कमर बेल्ट, कोलर, श्रवण यंत्र, सहायक छड़ी और अन्य उपकरण उपलब्ध कराए जा रहे हैं। यह परोपकारी कार्य अत्यंत सराहनीय है।
यह विस्तृत और व्यापक व्यवस्था यह सिद्ध करती है कि हर्षल फाउंडेशन केवल उपकरण देने तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन को पुनर्संयोजित करने और स्वाभिमान से जीने की शक्ति प्रदान करने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है।
दिव्यांगजन जब आवश्यक सहायक उपकरण प्राप्त करते हैं, तो उनके जीवन की चुनौतियाँ कम होती हैं और आत्मविश्वास बढ़ता है। यही आत्मविश्वास उन्हें समाज में सक्रियता, रोजगार, शिक्षा और सामान्य जीवन के अवसरों में सहभागी बनाता है।
मैं जिला प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग, समाज कल्याण विभाग तथा चिकित्सा अनुभाग से जुड़े सभी अधिकारियों, विशेषज्ञों और स्वयंसेवकों का विशेष रूप से अभिनंदन करता हूँ।
ऐसे शिविरों में प्रत्येक चिकित्सक, तकनीशियन, नर्सिंग स्टाफ और स्वयंसेवक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। उनकी लगन, सेवा-भावना और कर्तव्यनिष्ठा ही इस आयोजन को सफल बनाती है।
दिव्यांग पुनर्वास का उद्देश्य केवल सहायक उपकरण प्रदान करना नहीं, बल्कि समाज के मन में संवेदनशीलता, सम्मान और समावेशन की भावना विकसित करना है। समाज तभी विकसित कहा जा सकता है जब उसकी प्रगति में किसी भी व्यक्ति को पीछे न छोड़ दिया जाए।
दिव्यांगता का अर्थ यह नहीं कि व्यक्ति किसी क्षेत्र में कुछ नहीं कर सकता, बल्कि उचित अवसर, आवश्यक सहायता और सकारात्मक वातावरण मिले तो वे हर क्षेत्र में उत्कृष्टता सिद्ध कर सकते हैं। दुनिया के इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब शारीरिक चुनौतियों के बावजूद व्यक्तियों ने खेल, विज्ञान, कला, संगीत और प्रौद्योगिकी में अनुपम सफलता अर्जित की है।
हमारे देश में सुप्रसिद्ध नृत्यांगना सुधा चंद्रन ने कृत्रिम पैर पर खड़े होकर नृत्य की नई ऊँचाइयाँ छुईं, पैरा-ओलंपिक में अवनि लेखरा, देवेंद्र झाझरिया और प्रवीण कुमार जैसे खिलाड़ियों ने स्वर्ण और रजत पदक जीतकर भारत का नाम विश्व पटल पर रोशन किया और हाल ही में भारत की नेत्रहीन महिला क्रिकेट टीम ने टी-20 विश्व कप जीतकर इतिहास रच दिया। सीमित दृष्टि के बावजूद इन वीरांगनाओं ने असाधारण आत्मविश्वास, समर्पण और साहस दिखाते हुए यह प्रमाणित किया कि दिव्यांगता कोई कमजोरी नहीं, बल्कि आत्मबल और चरित्र की शक्ति का परिचायक है।
भारतीय संस्कृति हमें सिखाती है कि मानवता का अर्थ केवल स्वयं के लिए जीना नहीं, बल्कि अपने व्यवहार, संवेदना और सेवा के माध्यम से दूसरों के जीवन में प्रकाश फैलाना है। हर्षल फाउंडेशन इसी सेवा-धर्म को निरंतर जीवंत बनाए हुए है, और समाज को संवेदनशीलता, सहयोग और करुणा के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहा है।
उत्तराखण्ड सरकार भी दिव्यांगजनों के सशक्तीकरण के लिए निरंतर समर्पित है। राज्य में दिव्यांगजनों हेतु पेंशन योजनाएँ, सहायक उपकरण वितरण, शिक्षा तथा सरकारी रोजगार में आरक्षण का प्रावधान, कौशल विकास और सुगम्यता-अभियान लगातार संचालित किए जा रहे हैं।
उत्तराखण्ड सरकार का मुख्य उद्देश्य यही है कि राज्य के प्रत्येक दिव्यांग भाई-बहन को समान अवसर, समान सुविधाएँ और समान सम्मान मिले। सार्वजनिक भवनों, कार्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों को सुलभ बनाने की दिशा में लगातार प्रयास हो रहे हैं। मैं सभी लोगों से आग्रह करता हूँ कि वे इन योजनाओं का लाभ उठाएँ और अन्य दिव्यांगजन तक भी इसकी जानकारी पहुँचाएँ।
अपने परिवार जनों को आगे बढ़ाने में समाज की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। दिव्यांगजन को दया का नहीं, अवसर और सम्मान का अधिकार है। हमें उनके प्रति सहानुभूति ही नहीं, समानुभूति की भावना विकसित करनी होगी।
हमें यह समझना होगा कि समाज तभी सभ्य माना जाएगा जब वह दूसरों की कठिनाइयों को समझकर उनके साथ खड़े हो। दिव्यांगजन के जीवन में परिवार, समाज और समुदाय का सहयोग उन्हें न केवल जीवन में आगे बढ़ाता है, बल्कि समाज में सम्मानजनक और आत्मनिर्भर स्थान सुरक्षित करता है।
मैं हर्षल फाउंडेशन से यह अपेक्षा करता हूँ कि वे आगे भी इसी प्रकार व्यापक सेवाएँ देते हुए अधिक क्षेत्रों में पहुँचे, अधिक लोगों को लाभान्वित करें और दिव्यांगजन के लिए नीतिगत और सामाजिक बदलावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँ।
मैं सभी सामाजिक संगठनों, एनजीओ, नागरिक समाज और आम जन से आग्रह करता हूँ कि वे सरकार और संस्थाओं के साथ मिलकर एक ऐसे उत्तराखण्ड के निर्माण में योगदान दें जहाँ प्रत्येक नागरिक सम्मान, आत्मविश्वास और गरिमा के साथ जीवन जी सके।
अंत में, मैं इस शिविर से लाभान्वित होने वाले सभी दिव्यांग भाई-बहनों, माताओं-बहनों और वरिष्ठ नागरिकों को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ। मैं कामना करता हूँ कि यह शिविर आपके जीवन में नई आशा, नई ऊर्जा और नई दिशा स्थापित करे। और आपका साहस, आपका आत्मबल और आपका उत्साह उत्तराखण्ड और राष्ट्र को नई शक्ति प्रदान करे।
इस आशा और विश्वास के साथ, आप सबके उज्ज्वल भविष्य की मंगलकामना करते हुए मैं अपने शब्दों को विराम देता हूँ।
जय हिन्द!