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    04-12-2025 : देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार में आयोजित तीर्थ रज वंदन समारोह में माननीय राज्यपाल महोदय का उद्बोधन।

    प्रकाशित तिथि : दिसम्बर 4, 2025

    जय हिन्द!

    आदरणीय संत-जन, विद्वत-जन, देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रबुद्ध आचार्यगण, शांतिकुंज परिवार तथा देश-विदेश से पधारे सभी साधक-उपासक! माँ गंगा के पावन आँचल में बसे हरिद्वार की इस पुण्यभूमि पर आप सभी को मेरा सादर वंदन!

    हरिद्वार की इस तपोभूमि में उपस्थित होकर हृदय स्वतः ही श्रद्धा, विनम्रता और कृतज्ञता से भर उठता है। माँ गंगा की गोद में बैठकर दिया गया हर वचन और हर विचार एक आध्यात्मिक संकल्प में बदल जाता है। आज “तीर्थ रज वंदन समारोह” में उपस्थित होना मेरे लिए एक ऐसा दिव्य और अलौकिक अनुभव है जो आत्मा को शुद्ध करता है, विचारों को उजियारा देता है और मन में लोक-कल्याण की नई प्रेरणा जगाता है।

    अखिल विश्व गायत्री परिवार और देव संस्कृति विश्वविद्यालय का मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। आपके स्नेह, सम्मान और मंगलभाव ने सदैव मुझे प्रेरणा दी है। आज का यह समारोह भारत की सनातन आध्यात्मिक परंपरा का वह उत्सव है जिसमें तप, त्याग, संस्कार, श्रद्धा, साधना और समाज उत्थान की धारा एक साथ प्रवाहित होती है।

    भारत का अध्यात्म सदा से मनुष्य के भीतर छिपी दिव्यता को पहचानने की शिक्षा देता आया है। हमारे ऋषियों ने कहा कि मनुष्य केवल शरीर नहीं है- वह चेतना है, प्रकाश है, संकल्प और साधना की शक्ति है। शांतिकुंज की यह भूमि इसी चेतना को जाग्रत करने का केंद्र है। यहाँ आने वाला हर साधक अपने भीतर सोई हुई शक्ति को पहचान कर लौटता है। यह परिवार युगों से अध्यात्म और आधुनिकता के बीच सेतु बनकर विश्व-मानवता के लिए एक सशक्त दिशा निर्धारित कर रहा है।

    जब मैं देव संस्कृति विश्वविद्यालय को देखता हूँ तो मुझे लगता है कि यह केवल एक शिक्षण संस्थान नहीं, बल्कि आधुनिक युग का एक गुरुकुल है। यहाँ शिक्षा को साधना माना जाता है और ज्ञान को चरितार्थ करने को जीवन का लक्ष्य। हमारे उपनिषदों में कहा गया है- “विद्या अमृतम् अश्नुते”, अर्थात सच्ची शिक्षा वही है जो मनुष्य को अमृत मूल्यों का अनुभव कराए। यही भावना देव संस्कृति विश्वविद्यालय को अद्वितीय बनाती है।

    मैं विशेष रूप से डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी का उल्लेख करना चाहूँगा, जिनकी सरलता में गहराई है, मौन में ऊर्जा है और नेतृत्व में करुणा। वे उन दुर्लभ व्यक्तित्वों में से हैं जो अध्यात्म को आधुनिक विज्ञान से जोड़ते हैं और संस्कृति को वैश्विक संवाद के माध्यम से नई शक्ति प्रदान करते हैं। उनका कार्य हमें यह विश्वास दिलाता है कि नेतृत्व यदि आत्मिक दृष्टि से युक्त हो तो वह समाज को दिशा बदलने की क्षमता रखता है।

    इस वर्ष हमें एक अद्वितीय संयोग प्राप्त हुआ है। अखण्ड दीपक की शताब्दी और परम वंदनीया माताजी की जन्मशती। अखण्ड दीपक केवल ज्योति नहीं है, यह परम पूज्य गुरुदेव की उस आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है जिसने अनेकों जीवनों को आलोकित किया। यह दीपक हमें स्मरण कराता है कि अंधकार चाहे कितना भी घना क्यों न हो, एक छोटी-सी ज्योति भी उसे चीर सकती है।

    माताजी की जन्मशती भी हमारे लिए उतनी ही प्रेरक है। माताजी ने अपने मौन, अपने तप और अपने मातृत्व से युग निर्माण आंदोलन को वह दिशा दी जो बिना उनके संभव नहीं थी। भारतीय संस्कृति में नारी को “शक्ति” कहा गया है, और माताजी ने इस शक्ति को साधना, सेवा और त्याग में रूपांतरित करने का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया।

    आज का तीर्थ रज वंदन समारोह हमें यह स्मरण कराता है कि तीर्थ केवल स्थान नहीं होते, वे ऊर्जा के केंद्र होते हैं। ऋषियों ने तीर्थों की रज को ‘संस्कारों की धूल’ कहा है। जब कोई व्यक्ति इस रज को अपने मस्तक से लगाता है, तो वह केवल परंपरा का पालन नहीं करता, बल्कि एक संकल्प लेता है कि उसके विचार पवित्र हों, उसके कर्म निःस्वार्थ हों और उसका जीवन समाज हित में समर्पित हो।

    भारतीय अध्यात्म कहता है कि मनुष्य का वास्तविक विकास बाहर नहीं, भीतर होता है। स्वयं को जितना पवित्र बनाया जाए, समाज उतना ही निर्मल बनता है। यही मंत्र शांतिकुंज का है- “मनुष्य में परिवर्तन, और मनुष्य से युग में परिवर्तन।” आज यहाँ उपस्थित हजारों साधकों को देखकर यह विश्वास और दृढ़ होता है कि यह आंदोलन केवल एक संस्था का कार्यक्रम नहीं, बल्कि हृदयों की वह यात्रा है जो पूरे विश्व को शांति और सद्भाव की दिशा में ले जा रही है।

    भारत सदियों से कहता आया है- “वसुधैव कुटुम्बकम्।” यह केवल वाक्य नहीं, बल्कि आध्यात्मिक सच्चाई है। जब व्यक्ति स्वयं को विश्व का हिस्सा मानता है, तब उसके भीतर का छोटापन समाप्त होता है, और उसका हर कर्म मानवता के कल्याण की ओर बढ़ने लगता है। गायत्री परिवार यही वैश्विक चेतना जगाने का प्रयास कर रहा है।

    उत्तराखण्ड के लिए यह दशक विशेष महत्व रखता है। देवभूमि की यह ऊर्जा हमें प्रेरित करती है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की संकल्पना के अनुरूप हम संकल्प और कर्म से इस दशक को ‘उत्तराखण्ड का दशक’ बनाएं। यदि हर नागरिक अपने दायित्व को श्रेष्ठता के साथ निभाए, तो उत्तराखण्ड न केवल भारत की प्रगति को गति देगा, बल्कि विश्व के लिए एक प्रेरणादायी मॉडल भी बनेगा।

    हमारे ऋषियों ने सदैव सिखाया है कि पुरुषार्थ ही भाग्य को बदलता है, जब हम अपने भीतर छिपी अपार संभावनाओं पर विश्वास करते हैं और कर्मभूमि पर पूरे समर्पण के साथ उतरते हैं, तो असंभव भी संभव बन जाता है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि हम सब अपने संकल्प और पुरुषार्थ की शक्ति से भारत को पुनः विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठित करेंगे।

    मैं इस अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के उस दृष्टिकोण का भी उल्लेख करना चाहूँगा, जिसमें वे कहते हैं कि भारत अपनी संस्कृति, योग, अध्यात्म और जीवन मूल्य की शक्ति से विश्व को नई दिशा दे सकता है। उत्तराखण्ड की यह पवित्र भूमि, जिसे देवभूमि, तपोभूमि और योगभूमि कहा जाता है, वास्तव में विश्व के लिए अध्यात्म और शांति का केंद्र बन सकती है।

    मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में उत्तराखण्ड “विश्व की आध्यात्मिक राजधानी” के रूप में उभरेगा। यहाँ की प्राकृतिक दिव्यता, हिमालय का तेज, माँ गंगा की पवित्रता और इस प्रदेश के लोगों की सरलता व सेवा भावना इस संभावना को और अधिक सशक्त बनाती है।

    गायत्री परिवार इसी दिशा में समाज को एक नई दिशा प्रदान कर रहा है। संस्कार निर्माण, युवा जागरण, नारी सशक्तीकरण, पर्यावरण संरक्षण, नशा मुक्ति अभियान, जीवन प्रबंधन, योग-आंदोलन, आपदा प्रबंधन और वैश्विक मानवता के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रम केवल गतिविधियाँ नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक जागरण है।

    यह युग परिवर्तन का वह आंदोलन है, जो व्यक्ति को भीतर से बदलकर समाज में सकारात्मक ऊर्जा पैदा करता है। मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि शांतिकुंज का यह मिशन राष्ट्र और विश्व को नैतिकता, उदारता, शांति और सेवा के मार्ग पर ले जाने की दिशा में एक प्रकाश-स्तंभ है।

    परमपूज्य गुरुदेव ने कहा था- “हम बदलेंगे, युग बदलेगा।” आज इस विशाल साधक-संगम में मुझे वही वाक्य जीवंत दिखाई देता है। यह शताब्दी वर्ष केवल उत्सव नहीं, बल्कि आत्म जागरण का समय है। यह हमें स्मरण कराता है कि हर मनुष्य के भीतर वह दिव्यता है जो अंधकार को समाप्त कर सकती है, और हर मनुष्य के भीतर वह शक्ति है जिससे समाज बदल सकता है।

    संस्कृति विश्वविद्यालय, शांतिकुंज परिवार, डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी तथा सभी साधकों का इस दिव्य आयोजन के लिए हृदय से अभिनंदन करता हूँ। मेरा विश्वास है कि आने वाला समय उत्तराखण्ड, भारत और विश्व मानवता के लिए नई शांति, नई प्रेरणा और नई सद्भावना लेकर आएगा।

    गुरुदेव की दिव्य-दृष्टि, माताजी का मातृ-स्नेह और माँ गंगा की पवित्र-कृपा हम सबके जीवन को आलोकित करती रहे। इसी मंगल भावना के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देता हूँ।

    जय हिन्द!