12-12-2025 : क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल में माननीय राज्यपाल महोदय का संबोधन।
क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल में माननीय राज्यपाल महोदय का संबोधन।
(दिनांक 12 दिसम्बर, 2025)
जय हिन्द!
आदरणीय विशिष्ट अतिथि, प्रतिष्ठित लेखक, शोधकर्ता, पुलिस सेवा के सदस्य, छात्र-छात्राएँ एवं उपस्थित सभी सम्मानित जन!
आज इस अनूठे क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल में आप सबके बीच उपस्थित होकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है।
देवभूमि उत्तराखण्ड, जहाँ शांति और अध्यात्म हमारी सांसों में बसे हैं, उसी उत्तराखण्ड में अपराध साहित्य के माध्यम से समाज, न्याय और सुरक्षा पर इतनी सार्थक चर्चा होना, यह बताता है कि हम अपने समय के महत्वपूर्ण प्रश्नों से विमुख नहीं हैं, बल्कि सजग और उत्तरदायी रूप से उनका सामना कर रहे हैं।
अपराध साहित्य केवल मनोरंजन नहीं है, यह समाज की जटिलताओं, मानव मनोविज्ञान की गहराइयों और न्याय व्यवस्था की वास्तविकताओं को समझने का माध्यम है। सबसे श्रेष्ठ अपराध साहित्य न तो अपराध का महिमा मंडन करता है, और न ही हिंसा को आकर्षक बनाता है। वह पाठकों को यह सोचने पर विवश करता है कि अन्याय के विरुद्ध समाज की क्या भूमिका हो सकती है, और लोकतंत्र किस प्रकार कानून के शासन के माध्यम से न्याय सुनिश्चित करता है।
भारतीय साहित्य में अपराध कथाओं की परंपरा अत्यंत पुरानी है। हमारे शास्त्रों से लेकर आधुनिक उपन्यासों तक, कहानियों ने हमेशा धर्म-अधर्म, सत्य-असत्य, और सामाजिक नैतिकता के प्रश्नों को केंद्र में रखा। जिस कहानी में अपराध का समाधान प्राप्त होता है, वह हमें यह प्रेरणा देती है कि जब समाज के नागरिक और संस्थाएं मिलकर न्याय के पक्ष में खड़े होते हैं, तब कोई अपराध इतना बड़ा नहीं होता कि उसका सामना न किया जा सके।
मुझे इस अवसर पर हमारे पुलिस बल का भी विशेष उल्लेख करना चाहिए। दिन-रात की कठिन ड्यूटी, अनिद्रा रातें और जनता की सुरक्षा के लिए निरंतर समर्पण- ये केवल शब्द नहीं बल्कि बलिदान की वास्तविकताएँ हैं। समाज तभी सुरक्षित हो सकता है, जब नागरिक भी जागरूक हों। साहित्य इस जागरूकता को गहराई देता है। एक कहानी पढ़कर गुजरा क्षण भूल जाता है, लेकिन वह सोच को बदल देता है- और यही परिवर्तन समाज के लिए सबसे मूल्यवान होता है।
आज अपराध केवल सड़क तक सीमित नहीं रहा। तकनीक, डेटा, डिजिटल प्लेटफॉर्म, सोशल मीडिया- अपराध की प्रकृति अत्यंत तीव्रता से बदल रही है। इस कारण युवाओं को आधुनिक वास्तविकताओं के लिए तैयार करना उतना ही आवश्यक है, जितना नैतिक मूल्यों को सुदृढ़ करना। अपराध साहित्य नई पीढ़ी को तथ्यों से परिचित कराता है, नैतिकताओं से जोड़ता है, और भय पैदा किए बिना सतर्कता विकसित करता है।
अपराध लेखक समाज के उन पहलुओं को छूते हैं, जिन पर कभी-कभी खुलकर बातचीत करना भी कठिन होता है। अनेक लेखक गहन अनुसंधान, वास्तविक मामलों और पीड़ितों की आवाज को अपने लेखन के माध्यम से सामने लाते हैं। यह केवल साहित्यिक योगदान नहीं है, बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वहन भी है।
आज के संदर्भ में महिलाओं के विरुद्ध अपराध, साइबर अपराध, फेक न्यूज, और डिजिटल फ्रॉड जैसे विषय केवल पुलिस का विषय नहीं, बल्कि समाज के नैतिक और सांस्कृतिक स्वास्थ्य से भी जुड़े हुए हैं। इसलिए साहित्य और सिनेमा से मेरा एक विनम्र अनुरोध है कि वे अपराध का महिमा मंडन न करें, बल्कि समाज को जागरूक करते हुए पीड़ितों की गरिमा और न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान करें।
हम सभी जानते हैं कि समाज केवल दंड से नहीं सुधरता। समाज तब सुधरता है, जब हम अपराध के मूल कारणों को समझें, और उन्हें रोकने के उपाय सामूहिक रूप से खोजें। अपराध साहित्य इस दिशा में एक अत्यंत प्रभावी माध्यम है।
मुझे यह भी आशा है कि इस उत्सव के माध्यम से हमारे हिंदी और भारतीय भाषाओं में भी श्रेष्ठ अपराध साहित्य के अनुवाद को बढ़ावा मिलेगा। इससे युवा पढ़ सकेंगे, समझ सकेंगे, और समाज से जुड़े प्रश्नों पर विचार कर सकेंगे।
मैं इस आयोजन के लिए पुलिस सेवा के दोनों पूर्व डीजीपी श्री अशोक कुमार जी एवं श्री आलोक लाल जी, को विशेष बधाई देता हूँ। उन्होंने केवल पुलिस सेवा में उत्कृष्ट योगदान नहीं दिया, बल्कि साहित्य के माध्यम से समाज की चेतना को भी समृद्ध किया।
दून संस्कृति और साहित्यिक समाज के सदस्यों, कार्यक्रम के आयोजकों, स्वयंसेवकों, और उपस्थित प्रत्येक सम्मानित व्यक्ति का जिन्होंने इस आयोजन को सफल बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है, मैं सभी का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
मैं हमारे सम्मानित अतिथि, प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक श्री केतन मेहता जी का विशेष स्वागत करता हूँ, जिन्होंने अपनी उपस्थिति से इस आयोजन को महत्वपूर्ण बनाया है। मुझे विश्वास है कि उत्तराखण्ड की शांत पर्वतीय संवेदनाएँ, यहां की पवित्रता और यहां के लोगों की आत्मीयता आपको सृजन के नए क्षण प्रदान करेगी।
अंत में, मैं यही कहना चाहूँगा कि एक समाज तभी सुरक्षित होता है, जब न्याय केवल अदालतों में नहीं बल्कि नागरिकों के मन में भी स्थापित हो। यह महोत्सव हमारी सामूहिक चेतना को और गहन बनाए, हमारे साहित्य को और ऊँचाई दे, और प्रत्येक नागरिक में न्याय के प्रति विश्वास को और दृढ़ करे।
इस कामना के साथ आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।
जय हिन्द!