Close

    09-07-2024 : भगवान महावीर के 2550 वें निर्वाण वर्ष एवं अहिंसा विश्व भारती के स्थापना दिवस पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में माननीय राज्यपाल महोदय का उद्बोधन।

    प्रकाशित तिथि: जुलाई 9, 2024

    जय हिन्द!

    राजभवन में उपस्थित सभी महानुभावों का मैं राजभवन में स्वागत एवं अभिनन्दन करता हूं। यह बहुत ही प्रसन्नता का विषय है कि उत्तराखंड राजभवन आज भगवान महावीर के 2550 वें (दो हजार पांच सौ पचासवें) निर्वाण महोत्सव का साक्षी बन रहा है।

    आज यहां पर, जैन धर्म के 24वें तीर्थकर भगवान महावीर जी के 2550 वें निर्वाण वर्ष एवं अहिंसा विश्व भारती के स्थापना दिवस के उपलक्ष में ‘भारतीय संस्कृति एवं महावीर दर्शन में वैश्विक समस्याओं का समाधान’ अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन बहुत ही पुनीत सोच का परिणाम है। मैं, इस अवसर पर सम्पूर्ण जैन समाज एवं अहिंसा विश्व भारती के सभी कार्यकर्ताओं को हृदय से शुभकामनाएँ देता हूँ।

    जैसा आप सभी जानते हैं कि भगवान महावीर का जन्म राजकुमार वर्धमान के रूप में हुआ था, आध्यात्मिक जागृति की खोज में उन्होंने शाही जीवन, घर और परिवार त्याग दिया और एक तपस्वी की तरह जीवन जीने लगे, ज्ञान प्राप्त किया और फिर धर्म का प्रचार किया। मैं मानता हूँ कि उनकी शिक्षाएँ उस समय में जितनी उपयोगी थी उससे अधिक मौजूदा समय में प्रासंगिक हैं। उनके अहिंसा, अनेकांत, अपरिग्रह दर्शन से अनेक वैश्विक समस्याओं का समाधान प्राप्त होता है।

    मुझे इस बात की बहुत खुशी है कि भगवान महावीर के बताए मार्ग पर चलते हुए विश्व शांति दूत आचार्य लोकेश जी पूरी दुनिया में उनकी शिक्षाओं और भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए निरंतर प्रयत्न कर रहे हैं। मुझे मालूम है कि इस वर्ष कनाडा और ब्रिटेन की पार्लियामेंट एवं कैलिफोर्निया की असेंबली में आचार्य लोकेश जी की उपस्थिति में भगवान महावीर के 2550 वें निर्वाण वर्ष के कार्यक्रम आयोजित हुए। निःसन्देह यह इस बात का प्रमाण है कि भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन पद्धति के प्रति विश्व में स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है।

    साथियों,
    किसी के लिए कोई देश एक बाजार हो सकता है लेकिन भारत के लिए तो विश्व एक परिवार है। भारतीय संस्कृति ने ही ‘वसुधैव कुटुंबकम’ एवं ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतुः निरामया’ का संदेश पूरी दुनिया को दिया। यह संदेश भारत भूमि के महापुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, योगी राज कृष्ण, भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, गुरु नानक देव से हमें मिला है।

    हम देख रहें हैं कि आज इस संदेश की पूरी दुनिया को आवश्यकता है। क्योंकि युद्ध, हिंसा या कलह के रास्ते से कोई भी हो, शांत और सुखी जीवन नहीं जी सकते है। आपसी सौहार्द, समन्वय, प्रेम और भाईचारे की भावना के साथ ही स्वस्थ, सुखी और आनंदमय जीवन जिया जा सकता है। इन्हीं मूल्यों के प्रचार-प्रसार के लिए आचार्य लोकेश जी को इस वर्ष ‘अमेरिकन प्रेसिडेंशियल अवार्ड’ से नवाजा गया है। यह अपने देश और देश वासियों के लिए गौरव का विषय है।

    उनके मार्गदर्शन में गुरूग्राम, दिल्ली एनसीआर में भारत का पहला विश्व शांति केंद्र बनकर तैयार हो रहा है,जिसका उद्घाटन इसी वर्ष होने वाला है। उस केंद्र के माध्यम से पूरे विश्व में अहिंसा, शांति, सद्भावना एवं भारतीय संस्कृति का संदेश और अधिक प्रखरता के साथ प्रसारित हो सकेगा। इसी मंच पर उपस्थित आचार्य बाल कृष्ण जी आयुर्वेद और योग के माध्यम से भारत के जीवन मूल्यों को, भारत की विरासत को विश्व के कोने-कोने में पहुंचा रहे हैं।

    वर्तमान समय में विश्व, युद्ध और हिंसा, ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरण प्रदूषण, असमानता, बीमारियों और अवसाद की समस्याओं का सामना कर रहा है। ऐसे समय में जब विश्व के समक्ष बहुत सी चुनौतियाँ मौजूद हैं और हम उनके समाधान के उपाय ढूंढ रहे हैं। भारतीय संस्कृति और भगवान महावीर के दर्शन में इन सभी समस्याओं का समाधान है, इन सिद्धांतों के आधार पर व्यक्तिगत स्तर पर जीवन जीना और साथ ही सामाजिक वातावरण का निर्माण करके विश्व में शांतिपूर्ण, सौहार्दपूर्ण और संतुलित पर्यावरण बनाया जा सकता है। हम मिलकर समाज में शांति, सद्भाव और संतुलित वातावरण के प्रयासों में सफल होंगे, ऐसी मुझे आशा है।

    साथियों,
    भारत न केवल विश्व की सबसे प्राचीन जीवित सभ्यता है, बल्कि, मानवता का सुरक्षित ठिकाना भी है। ये भारत ही है जो ‘स्वयं’ के लिए नहीं, ‘सर्वम्’ के लिए सोचता है। ये भारत ही है जो ‘स्व’ की नहीं, ‘सर्वस्व’ की भावना करता है। ये भारत ही है, जो अहम् नहीं वयम् की सोचता है।ये भारत ही है जो पिंड में ब्रह्मांड की बात करता है, विश्व में ब्रह्म की बात करता है, जीव में शिव की बात करता है। इसी लिए तो पूरा विश्व आज भारत को आशा और विश्वास की दृष्टि से देख रहा है।

    साथियों,
    आज संघर्षों में फंसी दुनिया भारत से शांति की अपेक्षा कर रही है। मैं आपको बताना चाहता हूँ, इसमें हमारी सांस्कृतिक छवि का बहुत बड़ा योगदान है। आज भारत इस भूमिका में आया है, क्योंकि आज हम सत्य और अहिंसा जैसे व्रतों को वैश्विक मंचों पर पूरे आत्मविश्वास से रखते हैं। हम दुनिया को ये बताते हैं कि वैश्विक संकटों और संघर्षों का समाधान भारत की प्राचीन संस्कृति में है, भारत की प्राचीन परंपरा में है। इसीलिए, आज विरोधों में भी बंटे विश्व के लिए, भारत ‘विश्व-बंधु’ के रूप में अपनी जगह बना रहा है।

    ‘क्लाइमेट चेंज’ जैसे संकटों के समाधान के लिए आज भारत ने ‘मिशन लाइफ’ जैसे ग्लोबल मूवमेंट की नींव रखी है। आज भारत ने विश्व को ‘‘वन-अर्थ, वन-फेमली, वन-फ्यूचर’’ का विजन दिया है। क्लीन एनर्जी और सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लिए हमने वन-वल्र्ड, वन-सन, वन-ग्रिड का रोडमैप दिया है। हमारे इन प्रयासों से दुनिया में एक उम्मीद ही नहीं जगी है, बल्कि भारत की प्राचीन संस्कृति को लेकर विश्व का नजरिया भी बदला है।

    साथियों,
    जैन धर्म का अर्थ ही है, जिन का मार्ग, यानी, जीतने वाले का मार्ग। हम कभी दूसरे देशों को जीतने के लिए आक्रमण करने नहीं आए। हमने स्वयं में सुधार करके अपनी कमियों पर विजय पाई है। इसीलिए, मुश्किल से मुश्किल दौर आए, लेकिन हर दौर में कोई न कोई ऋषि, मनीषी हमारे मार्गदर्शन के लिए प्रकट हुआ। दुनिया की बड़ी-बड़ी सभ्यताएँ नष्ट हो गईं, लेकिन, भारत ने अपना रास्ता खोज ही लिया।

    साथियों,
    भारत के लिए आधुनिकता शरीर है, आध्यात्मिकता उसकी आत्मा है। अगर आधुनिकता से आध्यात्मिकता को निकाल दिया जाता है, तो अराजकता का जन्म होता है। और आचरण में अगर त्याग नहीं है, तो बड़े से बड़ा विचार भी विसंगति बन जाता है। यही दृष्टि भगवान महावीर ने हमें सदियों पहले दी थी। समाज में इन मूल्यों को पुनर्जीवित करना आज समय की मांग है।

    साथियों,
    यही समय है, सही समय है जब हम हमारे समाज में अस्तेय-अहिंसा के आदर्शों को मजबूत करें। मुझे पूरा भरोसा है कि देश इस दिशा में हर संभव प्रयास जारी रखेगा। मुझे ये विश्वास भी है, कि भारत के भविष्य निर्माण की इस यात्रा में आप सभी संतों का सहयोग देश के संकल्पों को मजबूत बनाएगा, भारत को विकसित बनाएगा।

    मुझे विश्वास है कि अहिंसा विश्व भारती देश की सामाजिक प्रगति की दिशा में कार्य करती रहेगी। भगवान महावीर के आशीर्वाद पूरे देश वासियों का, और मानव मात्र का कल्याण करेंगे, मैं सभी पूज्य संतों को श्रद्धापूर्वक प्रणाम करता हूँ।

    जय हिन्द!