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    30-04-2025:“रोड सेफ्टी” सेमिनार में माननीय राज्यपाल महोदय का संबोधन

    प्रकाशित तिथि: अप्रैल 30, 2025

    जय हिन्द!

    मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि आज हम सभी एक महत्वपूर्ण विषय-“सड़क सुरक्षा” पर विचार-विमर्श के लिए एकत्र हुए हैं। यह विषय केवल नीति निर्माण या प्रशासनिक क्रियान्वयन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सीधा जीवन और मृत्यु से जुड़ा विषय है। यह एक मानवीय विषय पर जन-जागरण का अभियान भी है और यह संगोष्ठी, जीवन की सुरक्षा को लेकर हमारे उत्तरदायित्व की भी याद दिलाती है।

    जैसा कि डॉक्टर संजय ने बताया कि यह उनकी सड़क सुरक्षा जागरुकता अभियान की 25वीं वर्षगांठ है। उनकी टीम सड़क सुरक्षा जागरूकता अभियान चलाकर जो सामाजिक जिम्मेदारी निभा रही हैं, वह एक सराहनीय कदम है। इस पहल के लिए मैं डॉ. संजय और उनकी टीम के सदस्यों को बधाई और शुभकामनाएँ देता हूँ।

    आज जब उत्तराखण्ड ‘‘21वीं सदी के तीसरे दशक को उत्तराखण्ड का दशक’’ बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, तो यह जरूरी है कि हम अपनी बुनियादी व्यवस्थाओं को सशक्त करें। सड़क सुरक्षा एक ऐसा विषय है, जो हमारी सामूहिक चेतना और उत्तरदायित्व को जाग्रत करता है।

    हम आत्म मंथन करें- क्या हम ट्रैफिक नियमों का पालन करते हैं? क्या हम सीट बेल्ट या हेलमेट पहनते हैं? क्या हम मोबाइल फोन का उपयोग करते हुए वाहन चलाते हैं? क्या हम नियमों का पालन करने के लिए दूसरों को सतर्क करते हैं या केवल मूक दर्शक बनते हैं? यदि नहीं तो यह विचारणीय प्रश्न है।

    मैंने एक सैनिक के रूप में देश की सीमाओं की रक्षा की है। लेकिन आज जब मैं उत्तराखण्ड के राज्यपाल के रूप में आपकी सेवा में हूँ, तो मुझे यह कहने में संकोच नहीं कि हमें एक और युद्ध लड़ना है, वह युद्ध है- सड़कों पर होने वाली मौतों के खिलाफ। और यह लड़ाई कोई बंदूक से नहीं, बल्कि अनुशासन, जागरूकता और तकनीक से लड़ी जानी है।

    हम यह नहीं भूल सकते कि हर दुर्घटना के बाद एक भयावह दृश्य होता है – किसी का उजड़ा हुआ घर, किसी माता-पिता की टूटती उम्मीद, किसी बच्चे की अनाथ आँखें। जो आत्मा को अंदर से झकझोर देती है। इसलिए हमें ऐसा समाज बनाना है, जहाँ ऐसी घटनाएँ अपवाद बन जाएँ।

    सड़क पर एक क्षण की लापरवाही जीवनभर की पीड़ा दे जाती है। इस चुनौती से निपटने के लिए जागरूकता ही सुरक्षा का पहला मंत्र है। यदि हम सड़क पर उतरने से पहले एक पल रुकें, सोचें और नियमों का पालन करें तो हम न केवल अपना जीवन, बल्कि दूसरों की जान भी बचा सकते हैं।

    अभी गत सप्ताह ही केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान जी ने घोषणा की कि सड़क सुरक्षा जल्द ही स्कूली पाठ्यक्रम का औपचारिक हिस्सा बन जाएगी, यह बहुत ही सराहनीय पहल है। इस पहल से बच्चे कम उम्र से ही सड़क सुरक्षा के मूल सिद्धांतों को समझ सकेंगे। निःसंदेह, देश भर में 30 करोड़ स्टूडेंट्स ‘‘सड़क-सुरक्षित भारत’’ अभियान को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

    पर्वतीय राज्य उत्तराखण्ड की भौगोलिक बनावट, संकरी व घुमावदार सड़कें, तीव्र ढलान और लगातार बदलते मौसम के कारण यहाँ सड़क सुरक्षा की चुनौतियाँ और भी अधिक जटिल हो जाती हैं। यह आवश्यक है कि हम एक समग्र रणनीति बनाएँ, जो सड़कों पर चलने वाले प्रत्येक व्यक्ति की चाहे वह वाहन चालक हो, पैदल यात्री हो या साइकिल सवार, सभी की सुरक्षा सुनिश्चित कर सके।

    सड़क दुर्घटनाओं को रोकने में योगदान करना सभी देशवासियों की जिम्मेदारी है। हमें अपने कर्तव्यों के अतिरिक्त दायित्व के लिए भी सजग रहना चाहिए। यह एक चिंतनीय प्रश्न है कि दुनिया के कुल वाहनों में से भारत में केवल 1 प्रतिशत वाहन ही है, जबकि दुर्घटनाओं का आंकड़ा 11 प्रतिशत है।

    उत्तराखण्ड में भी, विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्रों में दुर्घटनाएँ एक चिंता का विषय बनी हुई हैं। इसका कारण केवल सड़क की हालत या प्राकृतिक बाधाएँ नहीं हैं, बल्कि कई बार यह हमारी लापरवाही, नियमों की अनदेखी और असंवेदनशीलता के परिणाम होती हैं।

    हर साल अपने देश में 5 लाख सड़क दुर्घटनाएँ घटित होती हैं, जिसमें लगभग एक तिहाई यानी कि डेढ़ लाख लोग अपनी जान गंवाते हैं। यह चिंता का विषय है कि इनमें बड़ी संख्या में भारत का भविष्य, हमारे युवाओं की अकाल मौत हो जाती है। राष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में दुर्घटनाओं की संख्या निरंतर बढ़ रही है, हमारा उत्तराखण्ड भी इससे अछूता नहीं है। उत्तराखण्ड में गत वर्ष 1514 सड़क दुर्घटनाओं में 1083 लोगों की मौतें हुईं।

    यदि दुर्घटनाओं में चोट लगने की गंभीरता का आकलन करें तो राष्ट्रीय औसत 36 प्रतिशत है, जबकि अपने प्रदेश में यह 63 प्रतिशत है। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि सड़क दुर्घटनाएँ प्रदेश में एक भयावह समस्या है। इनको रोकना अति आवश्यक है और यह एक सामूहिक जिम्मेदारी से ही संभव हो सकता है।

    नशे का प्रभाव, नींद का अभाव, थकान का दबाव ये सभी दुर्घटनाओं के मुख्य कारण हैं। ये तीनों एक कॉकटेल की तरह काम करते हैं, जिसमे, शराब की थोड़ी मात्रा भी जानलेवा हो सकती है। वैज्ञानिकों ने शोध में साबित किया है थकान के दबाव का प्रभाव शराब के नशे के बराबर होता है।

    सड़क दुर्घटनाएँ पलभर में हो जाती हैं। इसलिए गाड़ी चलाते समय मोबाइल का उपयोग नहीं करना चाहिए। ओवर स्पीडिंग, ओवर लोडिंग, ओवर टेकिंग भी सड़क दुर्घटनाओं का मुख्य कारण है, इसलिए हमें इन बातों का ध्यान रखना भी जरूरी है।

    4 नवम्बर 2024 को मरचुला, अल्मोड़ा में दुर्घटनाग्रस्त बस में 63 यात्री भरे हुए थे जिसमें 36 लोगों की मृत्यु हो गई थी। इस बस की क्षमता केवल 42 यात्रियों की थी।

    5 जून 2022 को उत्तरकाशी में यमुनोत्री नेशनल हाईवे पर मध्यप्रदेश से आए हुए चारधाम यात्रियों की बस दुर्घटनाग्रस्त हुई, जिसमें 28 में से 26 व्यक्तियों की दुर्घटनास्थल पर ही मौत हो गई। जांच में पाया गया कि चालक की यह तीसरी डयूटी थी जो साबित करता है कि वह थका हुआ था। यह दुर्घटनाएँ दर्शाती हैं कि ओवरलोडिंग और ओवरस्पीडिंग कितनी घातक हो सकती है।

    सड़क दुर्घटनाएँ किसी भी वर्ग विशेष में भेदभाव नहीं करतीं, चाहे वह गरीब हो या अमीर, शिक्षित हो या अशिक्षित। 13 नवम्बर 2024 को देहरादून के ओएनजीसी चौक में हुई दुर्घटना में 7 में से 6 लोगों की मौत हो गई थी। मृतकों की उम्र मात्र 20 से 22 साल की थी। उनमें से आधे तो मां-बाप की अकेली संतान थे। यह चिंतनीय है कि सड़क दुर्घटनाएँ हमारे नौजवानों में विकलांगता का एक मुख्य कारण बन रहा हैं।

    भाइयों और बहनों,

    हमें समझना होगा कि सड़क सुरक्षा केवल कानून लागू करने से नहीं आएगी, बल्कि इसके लिए जन-जागरूकता, तकनीकी सुधार और जिम्मेदार नागरिक व्यवहार की आवश्यकता है।

    संरचना (प्दतिंेजतनबजनतम), व्यवस्था (म्दवितबमउमदज), व्यवहार (।ूंतमदमेे – ।जजपजनकम) सड़क सुरक्षा के तीन प्रमुख स्तंभ हैं। यदि इन तीनों पर समान रूप से बल दिया जाए, तभी हम एक सुरक्षित परिवहन व्यवस्था की ओर बढ़ सकते हैं।

    उत्तराखण्ड सरकार एवं केंद्र सरकार मिलकर राष्ट्रीय राजमार्गों, राज्य राजमार्गों और ग्रामीण सड़कों को आधुनिक और सुरक्षित बनाने की दिशा में कार्यरत हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हम ‘‘ब्लैक स्पॉट्स’’ की पहचान कर समयबद्ध तरीके से उनका समाधान करें।

    ट्रैफिक नियमों का कड़ाई से पालन और उल्लंघन करने वालों पर समयबद्ध दंड अत्यंत आवश्यक है। तकनीकी समाधान जैसे सीसीटीवी, स्पीड कैमरा और इंटेलिजेंट ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम का विस्तार जरूरी है।

    प्रिय साथियों,

    बढ़ती सड़क दुर्घटनाएँ भारत के विकास में एक बड़ी बाधा बनी हुई है। आँकड़े गवाह हैं कि सड़क दुर्घटनाओं के कारण भारत को ळक्च् का 3 प्रतिशत तक नुकसान होता है, इसलिए सुरक्षित और टिकाऊ सड़कें बनाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। इस दिशा में हमें दीर्घकालिक सुधार सुनिश्चित करने होंगे।

    मैं आज इस मंच से सभी परिवहन अधिकारियों, पुलिस विभाग, स्थानीय निकायों, स्कूलों, कॉलेजों, मीडिया संस्थानों और समाजसेवी संगठनों से अपील करता हूँ कि वे सड़क सुरक्षा को जन-आंदोलन बनाएँ। मैं सभी हितधारकों से अपील करता हूँ कि वे सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए मिलकर समाधान खोजें और देश को सुरक्षित और विकसित बनाने में सहयोग करें।

    सड़क सुरक्षा प्रत्येक नागरिक की नैतिक जिम्मेदारी है। उत्तराखण्ड जैसे पर्वतीय राज्य में वाहन चलाते समय सतर्कता और संयम जीवन रक्षा के अनिवार्य तत्व हैं। हेलमेट, सीट बेल्ट और गति सीमा का पालन जीवन की गारंटी बन सकता है। मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ कि वाहन चलाते समय यातायात के नियमों का पालन करें और राष्ट्र निर्माण में योगदान दें।

    ‘‘सुरक्षित सड़कें, सशक्त उत्तराखण्ड’’- यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक सामूहिक संकल्प होना चाहिए। आइए! हम सब मिलकर यह प्रण लें- कि हम यातायात नियमों का पालन करेंगे। हम दूसरों को भी नियम पालन के लिए प्रेरित करेंगे। हम आपात स्थितियों में मदद करने से पीछे नहीं हटेंगे, और हम प्रत्येक जीवन की कीमत समझेंगे।

    अंत में, इस अत्यंत प्रासंगिक विषय पर संवाद के लिए मंच प्रदान करने के लिए मैं आयोजकों का आभार व्यक्त करता हूँ। विश्वास है कि इस संगोष्ठी के माध्यम से हम कुछ ठोस निष्कर्षों पर पहुँचेंगे और उन्हें क्रियान्वयन के स्तर पर भी ले जा सकेंगे।

    आइए! हम सब मिलकर उत्तराखण्ड को सड़क दुर्घटनाओं से मुक्त राज्य बनाकर विकसित भारत के निर्माण में सहभागी बनें।
    जय हिन्द!