28-11-2024 : सिलक्यारा विजय अभियान की प्रथम वर्षगांठ एवं 19वें साइंस एंड टेक्नोलॉजी सम्मेलन में मा. राज्यपाल महोदय का सम्बोधन
जय हिन्द!
सिलक्यारा विजय अभियान की प्रथम वर्षगांठ और 19वें साइंस एंड टेक्नोलॉजी सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में उपस्थित आप सभी गणमान्य लोगों के बीच आकर मुझे बहुत ही प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है।
आज का दिन हमारे लिए बहुत ही अद्भुत दिन है। एक तरफ तो हम सिलक्यारा विजय अभियान के एक वर्ष पूर्ण होने पर उत्सव मना रहे हैं, और दूसरी तरफ उत्तराखण्ड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकाॅस्ट) के वार्षिक सम्मेलन के 19वें संस्करण का शुभारम्भ कर रहे हैं।
यह कितना सुंदर संयोग है कि जहां एक ओर हम विश्व को सिलक्यारा विजय अभियान की गाथा सुना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर राज्यभर के सैकड़ों वैज्ञानिकों, शोधार्थियों एवं युवाओं द्वारा मौलिक शोध पत्रों का प्रस्तुतीकरण किया जा रहा है। यह इसलिए और भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन युवा शोधार्थियों का बड़ा वर्ग दूर-दराज और सीमान्त क्षेत्रों से आता है।
यह सराहनीय है कि यूकाॅस्ट पिछले 19 वर्षों से राज्य में प्रतिवर्ष राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सम्मेलन का आयोजन कर रहा है। हमने देखा है कि समय के साथ-साथ इस सम्मेलन का स्वरूप विशाल और व्यापक होता गया है।
इस वर्ष यूकाॅस्ट सम्मेलन का मुख्य विषय ‘उत्तराखण्ड में जल और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन’ पर केंद्रित है। मुझे ज्ञात हुआ है कि इस सम्मलेन में राज्य भर से 300 से भी अधिक मौलिक शोध पत्र प्रस्तुत किए जा रहे हैं और साथ ही कई महत्वपूर्ण विषयों पर गहन विचार विमर्श हेतु विभिन्न सत्र आयोजित किए जा रहे हैं।
मुझे प्रसन्नता है कि इनमें जल एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के अलावा इमोशनल रेसिलिएंस, भारतीय ज्ञान-विज्ञान परंपरा, वन संसाधनों का सामुदायिक संरक्षण, साइंस कम्युनिकेशन तथा एआई के माध्यम से आधुनिक युद्ध प्रणाली का प्रवर्तन जैसे महत्वपूर्ण विषय शामिल हैं।
मुझे प्रसन्नता है कि यूकाॅस्ट ने हाल के वर्षों में एआई, साइंस कम्युनिकेशन, लैब्स ऑन व्हील्स, साइंस सिटी, जनपद स्तर पर साइंस सेंटर्स की स्थापना जैसे कई क्रांतिकारी कार्यक्रम प्रारम्भ किए हैं, इसके लिए मैं यूकाॅस्ट परिवार के प्रत्येक सदस्य को बधाई देता हूँ।
साथियों,
मैं, ऐतिहासिक और सफल सिलक्यारा रेस्क्यू अभियान की पहली वर्षगांठ पर इस अभियान दल के सभी जांबाज साथियों की प्रशंसा करते हुए उनके प्रति अपना गहरा आभार प्रकट करता हूँ। हमारे युवा ऊर्जावान मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी ने इस अभियान के नेतृत्व में जिस तत्परता, धैर्य, सूझबूझ परिपक्वता और निर्णय क्षमता का प्रदर्शन किया, वह बहुत ही सराहनीय है। उनकी नेतृत्व क्षमता आज विश्व भर में आपदा प्रबंधन से जुड़े हुए लोगों के लिए एक मिसाल बन चुकी है।
यह अभियान राज्य की आपदा प्रबंधन क्षमता का भी उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें कठिन परिस्थितियों के बावजूद 41 श्रम वीरों की सुरक्षा और बचाव कार्य सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इस अभियान में जुटी सभी टीमों ने जिस निष्ठा, लगन, वीरता, समर्पण और सेवाभाव का प्रदर्शन किया, उसका वर्णन इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया है।
साथियों,
हम सभी जानते हैं कि उत्तराखण्ड प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से संवेदनशील राज्य है। यहां की भौगोलिक स्थिति और जलवायु परिवर्तन के कारण कई चुनौतियाँ उत्पन्न होती रहती हैं, और ऐसे में आपदा प्रबंधन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।
उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल में हुए इस बचाव कार्य ने दिखाया कि राज्य की आपदा प्रबंधन टीम, सुरक्षा बल, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और अन्य सहयोगी संगठन पूरी तत्परता, कुशलता और साहस के साथ कार्य करें तो कठिनाइयों पर भी विजय पायी जा सकती है।
यह अभियान न केवल तकनीकी और पेशेवर योग्यता का प्रतीक था, बल्कि मानवीय मूल्यों का भी अद्वितीय उदाहरण था। हमारे बचावकर्मियों ने निःस्वार्थ भाव से अपनी जान जोखिम में डालकर श्रमिकों की जान बचाई। उनके साहस और धैर्य ने इस अभियान को सफल बनाया।
यह घटना हमें आपदा प्रबंधन की तैयारियों को निरंतर मजबूत करने की आवश्यकता की याद दिलाती है। हम सभी को यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसी किसी भी परिस्थिति में हमारी तैयारी और भी अधिक सुदृढ़ हो। इसके लिए आधुनिक उपकरणों, तकनीकों और प्रशिक्षण का इस्तेमाल आवश्यक है।
इस अभियान को इतिहास में दर्ज करने की शुरुआत आज ‘सिलक्यारा विजय अभियान’ पर प्रो0 दुर्गेश पंत द्वारा संपादित इस महत्वपूर्ण पुस्तक से हो चुकी है।
इस पुस्तक में, अभियान से जुड़ी हुई चुनौतियों, उनकी जटिलताओं, और उनसे निपटने के लिए अपनाई गई रणनीतियों का सिलसिलेवार चित्रण किया गया है। मैं इस पुस्तक के प्रकाशन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले संपादन मंडल के सभी साथियों को बधाई देता हूँ।
मुझे पूरा विश्वास है कि यह पुस्तक हमारे राज्य के विकास, आपदा जोखिमों के न्यूनीकरण एवं उनके प्रबंधन में एक मील का पत्थर साबित होगी। आशा है कि इस पुस्तक में सुझाए गए उपायों से राज्य में सतत एवं संतुलित विकास का मार्ग प्रशस्त हो पाएगा।
साथियों,
जिन विषम परिस्थितियों और जिन चुनौतियों के बीच सिलक्यारा बचाव अभियान चलाया गया वह किसी युद्ध से कम नहीं था, इसलिए इस पुस्तक का शीर्षक ‘सिलक्यारा विजय अभियान’ बहुत ही प्रासंगिक है। 17 दिनों के अथक प्रयास और संघर्ष के उपरांत सभी 41 श्रम वीरों को सुरक्षित बाहर निकालना, आपदा प्रबंधन हेतु संगठित प्रयासों का एक अनूठा उदाहरण है। दुनिया भर में आपदा की दृष्टि से संवेदनशील देशों के लिए यह विजय अभियान एक महत्वपूर्ण दस्तावेज सिद्ध होगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
मैं तो समझता हूँ कि मैनजमेंट के विद्यार्थियों को लीडरशिप के लिहाज से सिलक्यारा केस स्टडी पढ़ाई जानी चाहिए। हमारे लिए यह महत्वपूर्ण होगा कि हम पिछले वर्ष देहरादून में राज्य सरकार द्वारा आयोजित विश्व आपदा प्रबंधन सम्मेलन के समापन सत्र में जारी किए गए देहरादून डिक्लेरेशन का धरातल पर इम्प्लीमेंटेशन सुनिश्चित करें।
साथियों,
हमारे राज्य के सतत् विकास और समृद्धि के लिए जल और प्राकृतिक संसाधनों का उचित प्रबंधन अत्यंत महत्वपूर्ण है। पर्वतराज हिमालय की गोद में बसे होने के कारण उत्तराखण्ड में जल स्रोतों की प्रचुरता है। गंगा और यमुना जैसी नदियों का उद्गम स्थल होने के साथ ही, राज्य में झरने, ग्लेशियर और झीलें भी हैं, जो न केवल हमारी आर्थिक समृद्धि में योगदान देते हैं, बल्कि देश के एक बड़े हिस्से को जल आपूर्ति भी करते हैं।
जल और अन्य सभी प्राकृतिक संसाधनों का उचित प्रबंधन हमारी जिम्मेदारी है, ताकि हम आने वाली पीढ़ियों के उपभोग के लिए इनका संरक्षण सुनिश्चित कर सकें। आज हम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को महसूस कर रहे हैं, जो हमारे जल संसाधनों पर गहरा असर डाल रहे हैं। हमारे जल स्रोत तेजी से सूखते जा रहे हैं, जिसकी हमें चिंता करनी होगी। बाढ़ और भूस्खलन जैसी समस्याएं भी निरंतर बढ़ रही हैं। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है।
हमें सतत् विकास की दिशा में काम करना होगा। जल संरक्षण, भूजल पुनर्भरण, और जल संचयन की तकनीकों को अपनाना होगा। हमारे किसानों को सिंचाई में जल के कुशल उपयोग के लिए प्रशिक्षित करना होगा, ताकि कृषि के साथ जल की बर्बादी भी रोकी जा सके। इसके अलावा, वनीकरण और वन संरक्षण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखा जा सकें।
साथियों,
हमें स्थानीय समुदायों की भागीदारी को प्रोत्साहित करना होगा। जल प्रबंधन में ग्राम पंचायतों और नागरिक संगठनों की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। सामूहिक जागरूकता और सहभागिता ही उत्तराखण्ड के प्राकृतिक संसाधनों के टिकाऊ प्रबंधन की कुंजी है।
हाल ही में राज्य स्थापना दिवस पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने हमसे 5 आग्रह किए हैं। पर्यावरण की रक्षा करने का आग्रह करते हुए उन्होंने कहा कि, प्रत्येक व्यक्ति‘एक पेड़ माँ के नाम’, लगाकर इस आंदोलन को आगे बढ़ाने में योगदान दें, ताकि प्रकृति का संरक्षण करते हुए हम क्लाइमेट चेंज की चुनौती से लड़ पाएं।
नदी-नालों को संरक्षित करने का आग्रह करते हुए उन्होंने कहा कि, ‘‘उत्तराखण्ड में तो नौलों, धारों की पूजा की परंपरा है। आप सभी नदी, नालों का संरक्षण करें, पानी की स्वच्छता को बढ़ाने वाले अभियानों को गति दें।
आइए! प्रधानमंत्री जी के आग्रहों को हम सभी संकल्प में बदलकर, अपने जल और प्राकृतिक संसाधनों का सतत् और प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित करें।
तीन दिवसीय इस सम्मलेन में विज्ञान प्रदर्शनी भी अपने आप में एक महत्वपूर्ण आकर्षण है। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि साइंस एंड टेक्नोलॉजी का यह सम्मेलन राज्य के सैकड़ों विद्यार्थियों, शोध छात्रों, अध्यापकों एवं वैज्ञानिकों के लिए अत्यंत लाभप्रद सिद्ध होगा।
मैं, इस सम्मेलन के आयोजन में यूकाॅस्ट के साथ सक्रिय भूमिका निभाने के लिए दून विश्वविद्यालय की भी सराहना करता हूँ। और यहां उपस्थित जनों को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ।
निश्चित ही, इस सम्मेलन के सफल आयोजन से लोगों में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ेगी और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी के अहसास में भी उत्तरोत्तर वृद्धि होगी ऐसा मेरा विश्वास है। इस कार्यक्रम की सफलता के लिए मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं!
जय हिन्द!