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    28-07-2027 : दून विश्वविद्यालय एवं राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम के बीच समझौता ज्ञापन हस्तान्तरण के अवसर पर माननीय राज्यपाल महोदय का उद्बोधन।

    प्रकाशित तिथि: जुलाई 28, 2025

    जय हिन्द!

    राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम के पदाधिकारीगण,
    दून विश्वविद्यालय के सम्माननीय शिक्षकगण,
    मेरे प्रिय विद्यार्थियों, शोधार्थियों और नवाचार प्रेमियों,

    इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम का हिस्सा बनकर मुझे बेहद खुशी की अनुभूति हो रही है।

    आज का यह अवसर न केवल बौद्धिक सम्पदा अधिकारों (प्दजमससमबजनंस च्तवचमतजल त्पहीजे) की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है, बल्कि यह दून विश्वविद्यालय के आत्मनिर्भर भविष्य की बुनियाद भी है। राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम (छत्क्ब्) और दून विश्वविद्यालय के मध्य हुआ समझौता ज्ञापन- एक ऐसा सेतु है, जो शोध, नवाचार और व्यावसायिक दक्षता को जोड़ता है।

    मैं इस अवसर पर दून विश्वविद्यालय को विशेष रूप से बधाई देता हूँ और सात दशकों की निष्ठा और उत्कृष्टता के लिए एनआरडीसी की हृदय से सराहना करता हूँ।

    बौद्धिक सम्पदा ‘विकसित भारत’ का ईंधन है। यह अमूल्य विचार-धन है जो राष्ट्र की सृजनात्मक क्षमता को दर्शाता है। जैसा कि मैं अक्सर कहता हूँ-
    “म्अमतलजीपदह ींचचमदे जूपबमकृपितेज पद जीम उपदक ंदक जीमद पद तमंसपजलण्”
    (हर चीज दो बार होती है- पहले मन में और फिर वास्तविकता में।)

    इसी दर्शन के मूल में है बौद्धिक सम्पदा। यह वह कल्पना है जो प्रयोगशालाओं में आकार लेती है और फिर देश की औद्योगिक, आर्थिक और रणनीतिक प्रगति में परिवर्तित हो जाती है। पेटेंट, डिज़ाइन, ट्रेडमार्क और जियोग्राफिकल इंडीकेटर्स- ये सभी हमारे राष्ट्र की नवाचार शक्ति के प्रमाण हैं।

    साथियों,

    मैंने पिछले लगभग 4 वर्षों से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को गहराई से आत्मसात करने का प्रयास किया है। रोजगारपरकता और कौशल विकास, उद्योगों से जुड़ाव, राजस्व सृजन और शिक्षण संस्थानों की आत्मनिर्भरता- इस नीति का मूल उद्देश्य हैं।

    मेरा दृढ़ विश्वास है कि इस समझौते के माध्यम से दून विश्वविद्यालय को एक ऐसा प्लेटफार्म मिलेगा, जहाँ शोध केवल शैक्षणिक सीमा तक सीमित न रहकर उद्योगों, स्टार्टअप्स और राष्ट्रीय आवश्यकता से भी जुड़ सकेगा।

    एनआरडीसी दून विश्वविद्यालय को – शोधों का पेटेंट करवाने, विचारों को उद्योगों तक पहुँचाने और नवाचारों का व्यावसायीकरण कराने में मदद करेगा। इससे दून विश्वविद्यालय- राजस्व सृजन की दिशा में आगे बढ़ेगा, बाहरी फंडिंग पर निर्भरता कम होगी और वित्तीय स्थिरता प्राप्त कर सकेगा। यही ‘‘आत्मनिर्भरता-छम्च्-2020’’ का सार भी है।

    देवभूमि उत्तराखण्ड – जो ऋषियों की तपोभूमि रही है, मेरी आकांक्षा है कि अब यह अनुसंधान की कर्मभूमि बने। हमारे विश्वविद्यालयों में – जैविक विज्ञान, हर्बल अनुसंधान, हिमालयी पारिस्थितिकी और डिजिटल नवाचार- ये सभी उभरती हुई दिशाएँ हैं। मैं चाहता हूँ कि दून विश्वविद्यालय इस नव भारत निर्माण में अन्य विश्वविद्यालयों के लिए आदर्श बने।

    मेरे प्रिय विद्यार्थियों,

    आप सब इस युग की सबसे बड़ी शक्ति हैं। भारत की युवा शक्ति पर आज पूरे विश्व की नजर है। आप में सोचने, रचने और नया गढ़ने की अपार क्षमता है। मेरा मानना है कि आप केवल डिग्री के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्र के भविष्य को आकार देने के लिए अध्ययनरत हैं।

    मैं आपसे आग्रह करता हूँ- नैतिक मूल्यों को जीवन का मूल आधार बनाइए, राष्ट्र सर्वाेपरि के भाव को अपने जीवन में उतारिए, नशावृति से दूर रहिए और दूसरों को भी प्रेरित कीजिए।

    आप आदर्श नागरिक बनकर “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की कल्पना को साकार कीजिए। हमारा भारत सिर्फ आर्थिक महाशक्ति नहीं, बल्कि मूल्य आधारित विश्वगुरु बनेगा। और इसके अग्रदूत आप – हमारे विद्यार्थी होंगे।

    आदरणीय शिक्षकगण,

    आप राष्ट्रीय परिवर्तन के निर्माता हैं। आप केवल पाठ नहीं पढ़ाते, जीवन को दिशा देते हैं। आप विद्यार्थियों मे राष्ट्रभक्ति, नैतिक मूल्य, वैज्ञानिक सोच और समरसता की भावना का संचार करते हैं। मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि बौद्धिक सम्पदा को केवल तकनीकी शब्द न मानें बल्कि उसे राष्ट्र निर्माण का औजार मानें।

    मैं स्वयं एक सैनिक रहा हूँ। मुझे यह कहने में गर्व है कि राष्ट्र की सुरक्षा केवल सीमाओं पर नहीं होती, वह प्रयोगशालाओं, कक्षाओं और विचार-मंचों में भी होती है।

    “जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान” – यह नारा अब “जय अनुसंधान” के साथ आगे बढ़ रहा है। इसका अर्थ है कि अब शोध और अनुसंधान को भी राष्ट्र की सुरक्षा और समृद्धि के स्तंभ के रूप में देखा जा रहा है।

    विकसित भारत /2047 का लक्ष्य केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक राष्ट्र संकल्प है। हम सभी के सामूहिक प्रयासों से यह वह युग होगा जब भारत आत्मनिर्भर, ज्ञान समृद्ध और विकसित राष्ट्र बनकर उभरेगा।

    मेरा विश्वास है कि अमृतकाल की इस अवधि में हमारे विश्वविद्यालय वैश्विक रैंकिंग में शीर्ष पर होंगे, हमारे छात्र नवाचार के वैश्विक अगुवा होंगे और हमारी बौद्धिक सम्पदा अर्थव्यवस्था का मुख्य इंजन होगी।

    मेरे लिए यह अत्यंत गर्व का विषय है कि शिक्षा की नगरी में स्थित दून विश्वविद्यालय आज एक नव युग में प्रवेश कर रहा है। यह समझौता केवल दो संस्थानों के बीच नहीं, बल्कि- “विचार और कार्य” के बीच एक आस्था का अनुबंध है। “राष्ट्र और शिक्षा” के बीच एक उन्नयन की शुरुआत है।

    आप सबका दायित्व है कि आप इस अवसर को केवल समारोह तक सीमित न रखें, बल्कि इसे अपने कार्य, शोध और चिंतन में आत्मसात करें।

    आइए! हम सब मिलकर यह संकल्प लें- 2047 तक भारत को आत्मनिर्भर, सुरक्षित, नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण और बौद्धिक सम्पदा में समृद्ध विश्वगुरु राष्ट्र बनाएँगे।

    इस आशा, अपेक्षा और विश्वास के साथ आपको हृदय से अनंत शुभकामनाएं देते हुए अपनी वाणी को विराम देता हूँ।

    जय हिन्द!