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    27-06-2025:शेरवुड कॉलेज, नैनीताल में माननीय राज्यपाल का संबोधन

    प्रकाशित तिथि: जून 27, 2025

    शेरवुड कॉलेज, नैनीताल में माननीय राज्यपाल का संबोधन

    (दिनांकः 27 जून, 2025)

    जय हिन्द!

    देश के यशस्वी उप राष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ जी, शेरवुड कॉलेज के आदरणीय प्रधानाचार्य श्री अमनदीप संधू जी, प्रबुद्ध शिक्षकगण, सम्मानित अभिभावकगण, पूर्व छात्रगण, प्रिय विद्यार्थियों एवं उपस्थित सभी महानुभावों!

    इस ऐतिहासिक शिक्षण संस्थान में आज के ये क्षण हमारे लिए विशेष हैं, वह इसलिए कि इस अवसर पर हमें अपने देश के यशस्वी उप राष्ट्रपति जी का सानिध्य मिला है, जिनका जीवन सार्वजनिक सेवा, संवैधानिक मूल्यों और राष्ट्र प्रथम की भावना का जीवंत उदाहरण है। मैं देवभूमि उत्तराखण्ड में आपका हार्दिक अभिनंदन एवं स्वागत करता हूँ।

    साथियों,

    शेरवुड कॉलेज केवल एक शैक्षणिक संस्थान ही नहीं है, यह एक जीवंत विरासत है। इस संस्थान की 156 वर्षों की यात्रा अत्यंत गौरवपूर्ण रही है, जहाँ पर भारत के कई महानतम सपूतों ने शिक्षा ग्रहण की, जीवन के आदर्श गढ़े और अपने-अपने क्षेत्रों में देश का नाम रोशन किया।

    चाहे बात करें फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की, मेजर सोमनाथ शर्मा – भारत के पहले परमवीर चक्र विजेता की, या जनरल वी.एन. शर्मा और एयर वाइस मार्शल सुमित मुखर्जी जैसे जांबाजों की। यह विद्यालय शिक्षा के साथ ही चरित्र निर्माण की प्रयोगशाला रहा है, जिसने कई संवेदनशील, उत्तरदायी और नेतृत्व में सक्षम व्यक्तियों को गढ़ा है।

    शेरवुड कॉलेज की सबसे बड़ी ताकत यह है कि यहाँ शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं है, बल्कि विद्यार्थियों को सोचने, सवाल करने, खोजने और उद्देश्यपूर्ण सेवा करने की सीख दी जाती है। यही कारण है कि यह संस्थान भारत की शिक्षा व्यवस्था में एक मानक बनकर खड़ा है।

    इस कॉलेज ने राष्ट्र सर्वाेपरि की भावना को हमेशा अपने छात्रों में संजोकर रखा है। चाहे वह सीमाओं की रक्षा करने वाले सेनानी हों या समाज के निर्माण में जुटे लोक सेवक, यह कॉलेज देशभक्ति की उस भावना का स्रोत रहा है जो भारत को एक सशक्त और एकजुट राष्ट्र बनाता है।

    प्यारे विद्यार्थियों,

    हर छात्र को यह समझना चाहिए कि उसका हर प्रयास, हर सफलता, सिर्फ उसकी नहीं बल्कि राष्ट्र की पूंजी है। अपने कर्तव्यों का पालन करते समय जब यह भावना हमारे भीतर जागृत होती है कि हम देश के लिए कार्य कर रहे हैं, तभी हम सही मायने में शिक्षित कहलाते हैं।

    आप हमेशा बड़े सपने देखें और उनकी पूर्ति के लिए पूरी शिद्दत, पूरे सामर्थ्य और पूरे मनोयोग से जुट जाएं। अपने जीवन का उद्देश्य खोजें। वही उद्देश्य जो समाज को दिशा दे, जो राष्ट्र के लिए योगदान दे। “राष्ट्र प्रथम” – यही वह मूल मंत्र है जो हमें हर निर्णय में मार्गदर्शन देता है, इसे आत्मसात करें।

    हमें गर्व होना चाहिए कि हम एक ऐसे संस्थान का हिस्सा हैं जिसकी परंपराएं समृद्ध, मूल्य-प्रधान और प्रेरणास्पद रही हैं। लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जड़ से जुड़कर ही शाखा फलती-फूलती है।

    नई ऊँचाइयाँ तभी हासिल की जा सकती हैं जब हमारे भीतर अपने इतिहास और संस्कृति के प्रति सम्मान हो। हमें अपनी भाषा, संस्कृति, परंपराओं और नायकों को जानना चाहिए, क्योंकि यही हमारी पहचान है। एक वैश्विक नागरिक बनने के लिए अपनी स्थानीय जड़ों से जुड़ना आवश्यक है।

    हमने आजादी के शताब्दी वर्ष 2047 तक विकसित भारत बनाने का संकल्प लिया है। युवाओं को भी चाहिए कि वे अपने कौशल, सेवा, समर्पण, नवाचार और नेतृत्व के साथ राष्ट्र निर्माण में योगदान दें। तकनीक के साथ-साथ मानवीय संवेदना, प्रतिस्पर्धा के साथ सहयोग और विकास के साथ समावेशन – यही विकसित भारत का स्वरूप होगा।

    एक स्कूल से निकलने वाला छात्र जब समाज की समस्याओं को अपनी जिम्मेदारी समझने लगे, तो समझिए हम सही दिशा में जा रहे हैं। यही “नए भारत” की बुलंद तस्वीर है – एक ऐसा भारत जो शक्तिशाली है, पर विनम्र भी, जो तेज है, पर संवेदनशील भी, जो आधुनिक है, पर अपने मूल्यों में भी रचा-बसा है।

    आज हम एक ऐसे दौर में हैं जहाँ वैश्विक समस्याएं साझा हैं – जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, साइबर सुरक्षा, मानसिक स्वास्थ्य – इन सभी का समाधान ऐसे लीडर ही दे सकते हैं जो मूल्य आधारित हों, दृष्टिवान हों और सेवा भाव से प्रेरित हों, मैं आपसे ऐसी ही अपेक्षा रखता हूँ।

    साथियों,

    शिक्षा का उद्देश्य न केवल विद्वान बनाना है, बल्कि सार्थक नेतृत्व कर्ताओं को प्रेरित करना है – जो ज्ञान के साथ उठते हैं, विनम्रता से बोलते हैं, साहस से नेतृत्व करते हैं और उद्देश्य के साथ जीवन जीते हैं।

    आज जब शिक्षा का स्वरूप लगातार बदल रहा है, तब भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी राष्ट्र की रीढ़ उसका चरित्रवान नागरिक होता है। आज विद्यार्थियों को केवल परीक्षा में सफल होना ही नहीं सिखाया जाना चाहिए, बल्कि सच्चे अर्थों में उन्हें मानव बनने की शिक्षा दी जानी आवश्यक है।

    मैं इस अवसर पर प्रिंसिपल श्री अमनदीप संधू जी को बधाई देना चाहता हूँ, जिनके नेतृत्व में यह संस्थान सतत प्रगति की ओर अग्रसर है। पूर्व छात्रों को मैं धन्यवाद देता हूँ, जो आज भी विद्यालय से जुड़कर इसे दिशा देने में योगदान दे रहे हैं। तेजी से बदलती दुनिया में प्रकाश स्तंभ की भांति छात्रों का मार्गदर्शन कर रहे, शिक्षकों को मैं हार्दिक नमन करता हूँ।

    प्रिय विद्यार्थियों,

    यह समय आपका है। आप एक महान परंपरा के उत्तराधिकारी हैं। लेकिन उससे भी अधिक – आप भविष्य के निर्माता हैं। आपका चरित्र आपकी सबसे बड़ी पहचान है। आपका समर्पण इस राष्ट्र की सबसे बड़ी ताकत है। आपका सपना, भारत का सपना है।

    आज के नए भारत की निगाएं आप पर हैं – और विश्व की निगाएं भारत पर। आइए, हम सभी मिलकर एक ऐसा अध्याय रचें, जो अतीत से ऊँचा हो, और भविष्य के लिए और भी बेहतर हो।

    अंत में, मैं आप सभी के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ। और अपेक्षा करता हूँ कि आप एक आदर्श नागरिक बनकर भारत माता की सेवा में अपना श्रेष्ठ योगदान देंगे। एक बार पुनः माननीय उप राष्ट्रपति जी का आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने अपनी गरिमामयी उपस्थिति से इस कॉलेज और उत्तराखण्ड का मान बढ़ाया।
    जय हिन्द!