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    25-12-2023:राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने वीर बाल दिवस के अवसर वीर साहिबजादों का भावपूर्ण स्मरण किया है।

    प्रकाशित तिथि: दिसम्बर 26, 2023

    राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने वीर बाल दिवस के अवसर वीर साहिबजादों का भावपूर्ण स्मरण किया है। राज्यपाल ने बाबा जोरावर सिंह, बाबा फतेह सिंह एवं माता गुजरी जी के बलिदान को याद करते हुए अपनी श्रद्धांजलि दी है। पूर्व संध्या में जारी अपने संदेश में राज्यपाल ने कहा कि आज वीर साहिबजादों के त्याग, बलिदान, वीरता, साहस की महान पराकाष्टा को याद करने का दिन है, जिन्होंने अपने धर्म, संस्कृति और राष्ट्र के लिए अपना सर्वाेच्च बलिदान दिया। उनका बलिदान भारतीय पारंपरिक मूल्यों को दर्शाता है। वीर बाल दिवस के अवसर पर दिनांक 26 दिसंबर को प्रातः 11 बजे से राजभवन में वीर साहिबजादों की शहादत को याद किए जाने के लिए कार्यक्रम आयोजित किया गया है। संस्कृत विश्वविद्यालय के संयोजन में इस कार्यक्रम में राज्यपाल के अलावा कई गणमान्य लोग मौजूद रहेंगे।

    राज्यपाल ने कहा कि ‘‘वीर बाल दिवस’’ भारतीयों के दिलों में एक विशेष स्थान रखता है, जो राष्ट्र की प्रगति में बच्चों के अमूल्य योगदान को याद करता है। सिख धर्म में, बलिदान की गूंज इतिहास में गहराई से अंतर्निहित है, खासकर युवा साहिबजादों के जीवन के माध्यम से इसकी प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। इन बहादुर बच्चों ने अटूट साहस का प्रदर्शन किया और मुगलों के खिलाफ ‘‘खालसा पंथ’’ की पहचान और गरिमा को बनाए रखते हुए अपने विश्वास के लिए सर्वाेच्च बलिदान दिया। इसलिए, वीर बाल दिवस न केवल उन्हें बल्कि अनगिनत बच्चों को भी श्रद्धांजलि देता है, जिन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों में असाधारण बहादुरी दिखाई है।

    उन्होंने कहा कि इन युवा नायकों की ताकत न केवल उनके शारीरिक लचीलेपन में है, बल्कि सिख धर्म के मूल सिद्धांतों न्याय और समानता के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए उनके दृढ़ संकल्प में भी निहित है। जिस तरह साहिबजादों ने अशांत समय का सामना गरिमा और ईमानदारी के साथ किया, उसी तरह आज के बच्चे उनकी विरासत से प्रेरणा लेते हैं, समकालीन चुनौतियों का सामना करते हुए भी लचीलापन दिखाते हैं। हर साहसी बच्चे के पीछे एक परिवार खड़ा होता है जो सच्चे धैर्य का प्रतीक है, और सिख समुदाय कोई अपवाद नहीं है।

    राज्यपाल ने कहा कि साहिबजादों के परिवार, विशेष रूप से उनकी मां, माता गुजरी जी ने प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करते हुए अद्वितीय शक्ति और विश्वास का प्रदर्शन किया। उनका बलिदान आज चुनौतियों का सामना कर रहे सिख परिवारों के लिए प्रेरणा के स्रोत के रूप में काम करता है। वीर बाल दिवस मानते हुए हम न केवल बचपन की खुशी और मासूमियत का आनंद लें, बल्कि सिख धर्म के संदर्भ में असाधारण बच्चों और उनके परिवारों के लचीलेपन, ताकत और बलिदान पर भी विचार करें। साहिबजादों की विरासत और सिख इतिहास में अंतर्निहित बलिदान हमें याद दिलाते हैं कि करुणा, बहादुरी और न्याय के मूल्य युगों से बने हुए हैं।

    राज्यपाल ने कहा कि विश्व के इतिहास में केवल श्री गुरु गोविंद सिंह जी ही ऐसे महापुरुष हुए, जिनको ‘‘शहीद पिता के बेटे और शहीद बेटों के पिता होने का गौरव’’ प्राप्त था। इन युवा नायकों का सम्मान करके, हम एक ऐसी दुनिया बनाने की प्रतिज्ञा करते हैं जहां हर बच्चा, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, सीख सकता है, और शांति और प्रेम के माहौल में पनप सकता है। ऐसा करते हुए, हम यह सुनिश्चित करते हैं कि सिख इतिहास और उससे परे इन युवा नायकों के बलिदानों को कभी भुलाया न जाए।

    राज्यपाल ने कहा कि सिख धर्म अपनी उत्पत्ति के बाद से ही समाज में एक सकारात्मक संदेश देने का कार्य कर रहा है। यह मात्र कोई धर्म नहीं बल्कि राष्ट्रप्रेम की भावना को साथ में रखकर जीवन जीने की सभ्यता है। सिख शब्द का अर्थ है सत्य की खोज। सिख धर्म महिलाओं और पुरुषों की समानता के लिए तत्पर है, यह सभी प्रकार के भेदभाव की निंदा करता है और मानव स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व, सार्वभौमिकता, विवेक की स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय, नैतिक जीवन, लिंग समानता, और ‘‘चढ़दी कलां’’ या गतिशील शक्ति के लिए खड़ा है। यह प्रेम, निस्वार्थ सेवा, मानवीय गरिमा, आत्मसम्मान, सिमरन और ‘‘सरबत दा भला’’ में विश्वास करता है।

    उन्होंने कहा कि छोटे साहिबजादे, बाबा ज़ोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह, गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे बेटे थे। 1705 में, मुग़ल काल के दौरान उन्हें बंदी बना लिया गया था और जबरन धर्म परिवर्तन से इंकार करने पर उन्हें मृत्यु दण्ड सुनाई गई। छह और नौ साल की उम्र में, वे अपने धर्म को छोड़ने की बजाय मृत्यु चुनी और इसके परिणामस्वरूप मुग़लों द्वारा उन्हें दीवार में जिंदा चुनवाने का आदेश जारी किया गया। वह असाधारण साहस और सिख सिद्धांतों के प्रति अटूट समर्पण का प्रतीक हैं।

    राज्यपाल ने कहा कि सिख गुरु परंपरा केवल आस्था और आध्यात्म की परंपरा नहीं है। ये ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के विचार का भी प्रेरणा पुंज है। पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहिब में सिख गुरुओं के साथ साथ भारत के अलग-अलग कोनों से 15 संतों की वाणी भी समाहित है। दशमेश गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म पूर्वी भारत में पटना में हुआ, उन्होंने उत्तर पश्चिमी भारत के पहाड़ी अंचल में काफी समय तक कार्य किया और उनकी जीवन यात्रा महाराष्ट्र में सम्पन्न हुई। गुरु के पंच प्यारे भी देश के अलग अलग हिस्सों से थे, इस प्रकार सिख धर्म एक भारत श्रेष्ठ भारत कि संकल्पना का अतुलित उदाहरण है। ‘व्यक्ति से बड़ा विचार, विचार से बड़ा राष्ट्र’, ‘राष्ट्र प्रथम’ का ये मंत्र गुरु गोबिंद सिंह जी का अटल संकल्प था।जब उनके बेटों का बलिदान हुआ, तो उन्होंने अपनी संगत को देखकर कहा- ‘इन पुत्रन के सीस पर, वार दिए सुत चार, चार मूये तो क्या हुआ, जीवत कई हज़ार’ । अर्थात, मेरे चार बेटे मर गए तो क्या हुआ? संगत के कई हजार साथी,न हजारों देशवासी मेरे बेटे ही हैं। ‘‘राष्ट्र प्रथम’’ को सर्वाेपरि रखने की ये परंपरा, हमारे लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है।

    राज्यपाल ने कहा कि इसलिए, जब माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने गुरु गोबिंद सिंह जी के बेटों की शहादत को याद करने के लिए 26 दिसंबर को “वीर बाल दिवस” के रूप में मनाने कि घोषणा की, तो यह सिख धर्म के मूल्यों के साथ गहराई से गूंज उठा। यह मार्मिक अवसर भारत के बच्चों के कल्याण और शिक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर जोर देता है।
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    माननीय राज्यपाल जी का मूल आलेख प्रकाशनार्थ संलग्न है-

    भारत के नन्हें नायकों के साहस का सम्मान।

    लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम, वीएसएम (से नि), राज्यपाल उत्तराखंड।

    सिख धर्म अपनी उत्पत्ति के बाद से ही समाज में एक सकारात्मक संदेश देने का कार्य कर रहा है। यह मात्र कोई धर्म नहीं बल्कि राष्ट्रप्रेम की भावना को साथ में रखकर जीवन जीने की सभ्यता है। सिख शब्द का अर्थ है सत्य की खोज। सिख धर्म महिलाओं और पुरुषों की समानता के लिए तत्पर है, यह सभी प्रकार के भेदभाव की निंदा करता है और मानव स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व, सार्वभौमिकता, विवेक की स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय, नैतिक जीवन, लिंग समानता, और ‘‘चढ़दी कलां’’ या गतिशील शक्ति के लिए खड़ा है। यह प्रेम, निस्वार्थ सेवा, मानवीय गरिमा, आत्मसम्मान, सिमरन और ‘‘सरबत दा भला’’ में विश्वास करता है।

    छोटे साहिबजादे, बाबा ज़ोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह, गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे बेटे थे। 1705 में, मुग़ल काल के दौरान उन्हें बंदी बना लिया गया था और जबरन धर्म परिवर्तन से इंकार करने पर उन्हें मृत्यु दण्ड सुनाई गई। छह और नौ साल की उम्र में, वे अपने धर्म को छोड़ने की बजाय मृत्यु चुनी और इसके परिणामस्वरूप मुग़लों द्वारा उन्हें दीवार में जिंदा चुनवाने का आदेश जारी किया गया। वह असाधारण साहस और सिख सिद्धांतों के प्रति अटूट समर्पण का प्रतीक हैं।

    सिख गुरु परंपरा केवल आस्था और आध्यात्म की परंपरा नहीं है। ये ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के विचार का भी प्रेरणा पुंज है। पवित्र श्री गुर ग्रंथ साहिब में सिख गुरुओं के साथ साथ भारत के अलग-अलग कोनों से 15 संतों की वाणी भी समाहित है, दशमेश गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म पूर्वी भारत में पटना में हुआ, उन्होंने उत्तर पश्चिमी भारत के पहाड़ी अंचल में काफी समय तक कार्य किया और उनकी जीवन यात्रा महाराष्ट्र में सम्पन्न हुई। गुरु के पंच प्यारे भी देश के अलग अलग हिस्सों से थे, इस प्रकार सिख धर्म एक भारत श्रेष्ठ भारत कि संकल्पना का अतुलित उदाहरण है। ‘व्यक्ति से बड़ा विचार, विचार से बड़ा राष्ट्र’, ‘राष्ट्र प्रथम’ का ये मंत्र गुरु गोबिंद सिंह जी का अटल संकल्प था।जब उनके बेटों का बलिदान हुआ, तो उन्होंने अपनी संगत को देखकर कहा- ‘इन पुत्रन के सीस पर, वार दिए सुत चार, चार मूये तो क्या हुआ, जीवत कई हज़ार’ । अर्थात, मेरे चार बेटे मर गए तो क्या हुआ? संगत के कई हजार साथी, हजारों देशवासी मेरे बेटे ही हैं। ‘‘राष्ट्र प्रथम’’ को सर्वाेपरि रखने की ये परंपरा, हमारे लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है। इसलिए, जब माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने गुरु गोबिंद सिंह जी के बेटों की शहादत को याद करने के लिए 26 दिसंबर को “वीर बाल दिवस” के रूप में मनाने कि घोषणा की, तो यह सिख धर्म के मूल्यों के साथ गहराई से गूंज उठा। यह मार्मिक अवसर भारत के बच्चों के कल्याण और शिक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर जोर देता है।

    ‘‘वीर बाल दिवस’’ भारतीयों के दिलों में एक विशेष स्थान रखता है, जो राष्ट्र की प्रगति में बच्चों के अमूल्य योगदान को याद करता है। सिख धर्म में, बलिदान की गूंज इतिहास में गहराई से अंतर्निहित है, खासकर युवा साहिबजादों के जीवन के माध्यम से इसकी प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। इन बहादुर बच्चों ने अटूट साहस का प्रदर्शन किया और मुगलों के खिलाफ ‘‘खालसा पंथ’’ की पहचान और गरिमा को बनाए रखते हुए अपने विश्वास के लिए सर्वाेच्च बलिदान दिया। इसलिए, वीर बाल दिवस न केवल उन्हें बल्कि अनगिनत बच्चों को भी श्रद्धांजलि देता है, जिन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों में असाधारण बहादुरी दिखाई है।

    इन युवा नायकों की ताकत न केवल उनके शारीरिक लचीलेपन में है, बल्कि सिख धर्म के मूल सिद्धांतों न्याय और समानता के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए उनके दृढ़ संकल्प में भी निहित है। जिस तरह साहिबजादों ने अशांत समय का सामना गरिमा और ईमानदारी के साथ किया, उसी तरह आज के बच्चे उनकी विरासत से प्रेरणा लेते हैं, समकालीन चुनौतियों का सामना करते हुए भी लचीलापन दिखाते हैं। हर साहसी बच्चे के पीछे एक परिवार खड़ा होता है जो सच्चे धैर्य का प्रतीक है, और सिख समुदाय कोई अपवाद नहीं है।
    साहिबजादों के परिवार, विशेष रूप से उनकी मां, माता गुजरी जी ने प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करते हुए अद्वितीय शक्ति और विश्वास का प्रदर्शन किया। उनका बलिदान आज चुनौतियों का सामना कर रहे सिख परिवारों के लिए प्रेरणा के स्रोत के रूप में काम करता है।

    आइए वीर बाल दिवस मानते हुए हम न केवल बचपन की खुशी और मासूमियत का आनंद लें, बल्कि सिख धर्म के संदर्भ में असाधारण बच्चों और उनके परिवारों के लचीलेपन, ताकत और बलिदान पर भी विचार करें। साहिबजादों की विरासत और सिख इतिहास में अंतर्निहित बलिदान हमें याद दिलाते हैं कि करुणा, बहादुरी और न्याय के मूल्य युगों से बने हुए हैं।

    विश्व के इतिहास में केवल श्री गुरु गोविंद सिंह जी ही ऐसे महापुरुष हुए, जिनको ‘‘शहीद पिता के बेटे और शहीद बेटों के पिता होने का गौरव’’ प्राप्त था। इन युवा नायकों का सम्मान करके, हम एक ऐसी दुनिया बनाने की प्रतिज्ञा करते हैं जहां हर बच्चा, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, सीख सकता है, और शांति और प्रेम के माहौल में पनप सकता है। ऐसा करते हुए, हम यह सुनिश्चित करते हैं कि सिख इतिहास और उससे परे इन युवा नायकों के बलिदानों को कभी भुलाया न जाए।

    वाहे गुरु जी दा खालसा, वाहे गुरु जी दी फतेह।