23-05-2024 : वैशाख बुद्ध पूर्णिमा उत्सव में माननीय राज्यपाल महोदय का भाषण
जय हिन्द!
आप सभी को बुद्ध पूर्णिमा की, वैशाख उत्सव की बहुत-बहुत शुभकामनाएं! मैं, विश्वभर में फैले भगवान बुद्ध के अनुयायियों को भी इस मंच के माध्यम से वैशाख माह की इस पवित्र पूर्णिमा की बधाई और शुभकामनाएं देता हूँ।
ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे इस पवित्र दिन पर, आपसे मिलने, आप सभी से संवाद करने का अवसर मिला है। सनातन धर्म के अनुसार बुद्ध, भगवान विष्णु के 9वें अवतार हैं, इसलिए हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र है। मैं सभी से आग्रह करता हूँ कि आज के इस पावन दिवस पर हम सभी भगवान बुद्ध के आदर्शों को अपने जीवन में आत्मसात करने का संकल्प लें।
साथियों,
भगवान बुद्ध से जुड़ा एक विषय आपसे साझा कर रहा हूँ, जो कि एक अद्भुत ही संयोग है। वैशाख पूर्णिमा के दिन लुम्बिनी में सिद्धार्थ के रूप में बुद्ध का जन्म हुआ। इसी दिन बोधगया में सिद्धार्थ बोध प्राप्त करके भगवान बुद्ध बने। और इसी दिन कुशीनगर में उनका महापरिनिर्वाण हुआ। एक ही तिथि, एक ही वैशाख पूर्णिमा पर भगवान बुद्ध की जीवन यात्रा के ये पड़ाव केवल संयोग मात्र नहीं था। इसमें बुद्धत्व का वो दार्शनिक संदेश भी है, जिसमें जीवन, ज्ञान और निर्वाण, तीनों एक साथ हैं। तीनों एक साथ जुड़े हैं।
यही मानवीय जीवन की पूर्णता है, और संभवतः इसीलिए भगवान बुद्ध ने पूर्णिमा की इस पवित्र तिथि को चुना होगा। जब हम मानवीय जीवन को इस पूर्णता में देखने लगते हैं, तो विभाजन और भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं बचती। तब हम खुद ही ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की उस भावना को जीने लगते हैं जो ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ से लेकर ‘भवतु सब्ब मंगलम’ के बुद्ध उपदेश तक झलकती है। इसीलिए, भौगोलिक सीमाओं से ऊपर उठकर बुद्ध हर किसी के हैं, हर किसी के लिए हैं।
साथियों,
बुद्ध मानवता के सामूहिक बोध का अवतरण हैं। बुद्ध बोध भी हैं, और बुद्ध शोध भी हैं। बुद्ध विचार भी हैं, और बुद्ध संस्कार भी हैं। बुद्ध इसलिए विशेष हैं क्योंकि उन्होंने केवल उपदेश नहीं दिये, बल्कि उन्होंने मानवता को ज्ञान की अनुभूति करवाई। उन्होंने महान वैभवशाली राज्य और चरम सुख सुविधाओं को त्यागने का साहस किया।
भगवान बुद्ध ने हमें ये अहसास करवाया कि प्राप्ति से भी ज्यादा महत्व त्याग का होता है। त्याग से ही प्राप्ति पूर्ण होती है। इसीलिए, वो जंगलों में विचरे, उन्होंने तप किया, शोध किया। उस आत्मशोध के बाद जब वो ज्ञान के शिखर तक पहुंचे, तो भी उन्होंने किसी चमत्कार से लोगों का कल्याण करने का दावा कभी नहीं किया। बल्कि भगवान बुद्ध ने हमें वो रास्ता बताया, जो उन्होंने खुद जिया था। उन्होंने हमें मंत्र दिया था दृ
’‘अप्प दीपो भव भिक्खवे”,‘‘परीक्ष्य भिक्षवो, ग्राह्यम् मद्वचो, न तु गौरवात।’’
अर्थात अपना दीपक स्वयं बनो। मेरे वचनों को भी मेरे प्रति आदर के कारण ग्रहण मत करो। बल्कि उनका परीक्षण करके उन्हें आत्मसात करो।
साथियों,
भारत में सारनाथ, बोधगया और कुशीनगर से लेकर नेपाल में लुम्बिनी तक, ये पवित्र स्थान हमारी विरासत और मूल्यों का प्रतीक है। हमें इस विरासत को साथ मिलकर विकसित करना है, और आगे इसे समृद्ध भी करना है।
भारत की संस्कृति, इतिहास और सभ्यता इस बात की गवाह है कि हम कभी आक्रांता नहीं रहे, हमने कभी भी किसी मुल्क पर हमला नहीं किया। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान कई वजहों से हमारे यहां अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का कार्य उस तरीके से नहीं हुआ, जिस तरह से होना चाहिए था। हम सभी के लिए गर्व की बात है कि केंद्र सरकार अपनी सांस्कृतिक धरोहर और भगवान बुद्ध से जुड़ी स्मृतियों की रक्षा के लिए एक खास मिशन पर काम कर रही है।
भगवान बुद्ध कहते थे कि किसी के दुख को देखकर दुखी होने से ज्यादा बेहतर है कि उस व्यक्ति को उसके दुख को दूर करने के लिए तैयार करो, उसे सशक्त करो। मेरी सभी से अपील है कि हम सभी करुणा और सेवाभाव के उसी रास्ते पर चलें, जिस रास्ते को भगवान बुद्ध ने हमें दिखाया था।
साथियों,
भगवान बुद्ध की शिक्षा का उद्देश्य सभी संवेदनशील प्राणियों की सेवा करना और उन्हें लाभान्वित करना है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कौन हैं या कहां रहते हैं, हम सभी जीवन में सुख चाहते हैं और दुख नहीं।
भगवान बुद्ध ने सुझाव दिया कि हमें एक सार्थक जीवन जीना चाहिए और सभी जरूरतमंदों की मदद करने का प्रयास करना चाहिए। यदि यह संभव नहीं है, तो हमें कम से कम किसी को नुकसान पहुंचाने से बचना चाहिए।
साथियों,
सभी प्राणियों में बुद्ध-प्रकृति या अनुभूति की उच्चतम अवस्था तक पहुँचने की क्षमता होती है, इसलिए हम सभी के पास जागृत या बुद्ध बनने का अवसर है। मेरा मानना है कि इसके लिए हम सभी को सार्थक प्रयास करने चाहिए।
21वीं सदी में भगवान बुद्ध की शिक्षाएं अत्यधिक प्रासंगिक हैं। उनका जीवन समाज से पीड़ा की समाप्ति एवं अन्याय दूर करने के लिए समर्पित था। उनकी दया-भावना से ही वह लाखों लोगों के प्रिय बन गए।
मौजूदा वक्त में विश्व को बचाने के लिए बुद्ध का करुणा, प्रेम का संदेश बहुत काम आ सकता है और इसके लिए बुद्ध को मानने वाली शक्तियों को सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
मैं इस पवित्र उत्सव का हिस्सा बनकर बेहद सम्मानित और हर्षित महसूस कर रहा हूँ। एक बार पुनः मैं आप सभी को वैशाख बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ।
जय हिन्द!