22-12-2024 : गंगधारा-विचारों का अविरल प्रवाह माननीय राज्यपाल महोदय का संबोधन
जय हिन्द!
‘‘गंगधारा-विचारों का अविरल प्रवाह’’ आज इस महत्त्वपूर्ण व्याख्यान माला के इस सत्र में आप सभी प्रबुद्ध जनों के मध्य आकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है।
राज्य की समृद्ध संस्कृति के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, पलायन, रोजगार, उद्यमिता, सतत विकास, पर्यावरण संरक्षण आदि जैसे जनसामान्य से जुड़े अहम विषयों पर विमर्श एवं बुद्धिजीवियों के सवांद को प्रोत्साहित करने के लिए मैं देव भूमि विकास संस्थान की इस पहल की भूरि भूरि प्रशंसा करता हूँ।
मुझे सबसे अधिक प्रसन्नता इस व्याख्यान माला के नाम से हो रही है, जिसे पवित्र पावनी माँ गंगा के नाम से प्रारम्भ किया गया है। जिस प्रकार आदि-अनादि काल से गंगा नदी अविरल रूप से प्रवाहित होकर असंख्य लोगों के जीवन का आधार रही है, उसी प्रकार ज्ञान की यह श्रृखंला, इस व्याख्यान माला के माध्यम से अविरल रूप से प्रवाहित होकर आमजन से जुड़े विषयों पर विमर्श के उपरांत उनके सार्थक समाधान के विकल्प उपलब्ध कराने में सफल होगी।
मेरा विश्वास है कि इस तरह के समागम और मंथन से सामाजिक समस्याओं के स्थायी समाधान के विकल्प उपलब्ध होंगे, जो राज्य के विकास में सहायक सिद्ध होंगे। जैसा कि हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सोच-विचार और धारणा है, कि आने वाला दशक उत्तराखण्ड का दशक होगा इस दृष्टि से बुद्धिजीवियों के साथ इस तरह के विमर्श राज्य को आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगे।
साथियों!
प्राचीन काल से ही नदियाँ माँ की तरह हमारा भरण-पोषण करती आ रही हैं। नदियों की वजह से सभ्यताएँ पनपती है। आज भी हम कई उत्सव और त्योहार नदियों के साथ मनाते हैं। हिन्दू धर्म में तो मनुष्य के जीवन की अंतिम यात्रा भी इनकी गोद में खत्म होती है। तभी तो कुंभ और पूर्णिमा जैसे अवसरों पर गंगा में डुबकी लगाने के लिये लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
गंगा नदी भारतीय संस्कृति का भी अभिन्न अंग है। भारत के प्राचीन ग्रंथों जैसे-वेद, पुराण, महाभारत इत्यादि में गंगा की पवित्रता का वर्णन है। भारत के अनेक तीर्थ गंगा के किनारे पर ही स्थित हैं। हमारे लिए गंगा एक नदी मात्र नहीं है बल्कि इस देश के समस्त विकास, उत्थान और वैभव के युगों की साक्षी है। वह यहाँ की संपूर्ण संस्कृति, सभ्यता, आस्था-विश्वास, धर्म, दर्शन, चिंतन, मनन का जीवंत इतिहास है। युग बदले हैं पर गंगा की धारा वही है, चिर सनातन और नित्य नूतन है।
हिमालय पुत्री माँ गंगा, जिनके स्मरण मात्र से मनुष्य अपने दूषित कर्मों से मुक्ति पाता है, जिनके दर्शन मात्र से मनुष्य अपने संपूर्ण पाप कर्म से मुक्त हो जाता है एवं जिनके स्पर्श मात्र से मनुष्य इस जन्म में सद्गति प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त होता है। इसीलिए इसे हमारे देश में एक देवी के रूप में पूजा जाता है।
माँ गंगा के तट पर भारतीय सभ्यता का जन्म हुआ, इसके किनारे भारतीय परंपरा का विकास हुआ। गंगा भारत की सांस्कृतिक पहचान है, गंगा भारत की धार्मिक आत्मा है। सदियों से हिंदू धर्म का कोई धार्मिक संस्कार बगैर गंगा जल के संपन्न नहीं होता है। गंगा की जलधारा भारतीय धर्म का दर्शन है। संपूर्ण वेद, पुराण, गीता, रामायण, महाभारत एवं अन्य भारतीय धर्म ग्रंथों में जिसकी महिमा का गान हुआ है। माँ गंगा युगों-युगों से सिर्फ मानव कल्याण के लिए ही धरती पर बहती आ रही है।
विद्वत जनों!
एक राष्ट्र उसकी प्राचीन और वर्तमान उपलब्धियों के द्वारा जाना जाता है। प्राचीन उपलब्धियाँ, जो समय के प्रहार से शेष रह जाती हैं, विरासत बन जाती हैं। भारत की सांस्कृतिक विरासत केवल सबसे अधिक प्राचीन विरासतों में से ही एक नहीं है अपितु यह सर्वाधिक विस्तृत तथा विविधतापूर्ण विरासतों में भी एक है।
यह गर्व की बात है कि आज भारत में विकास के साथ-साथ विरासत को भी समृद्ध बनाने पर फोकस किया जा रहा है। हमें भौतिक विकास के साथ ही अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गौरव करना होगा। हमें देश की नई पीढ़ी को भी अपनी गौरवशाली विरासत से अवगत कराना होगा, ताकि पीढ़ी दर पीढ़ी वह आगे बढ़ती रहे। आज देखिए! आज जब हमने योग और आयुर्वेद की बात की, तो सम्पूर्ण विश्व आज इनके महत्त्व को समझ कर इन्हें तेजी से अपना रहा है।
देवभूमि उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक एवं आध्यत्मिक रूप से वैश्विक स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान है। यहाँ की भौगोलिक संरचना, सांस्कृतिक धरोहर एवं सामाजिक ताना-बाना हमें विशिष्ट बनाता है। प्रकृति ने भी इस भूमि को अपने अनमोल संसाधनों से समृद्ध किया है। यह भूमि योग और आयुष के लिए अनुकूल भूमि है, जिनके बल पर हम पर्यावरण के अनुकूल राज्य के सतत् विकास का लक्ष्य साकार कर सकते हैं।
देवभूमि उत्तराखण्ड में विकास की असीम संभावनाएं हैं, लेकिन हमें अपने पर्यावरण के अनुकूल उद्योगों पर जोर देना होगा। हमारा प्रदेश जैव विविधता और प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है। इस अनुकूलता के कारण हम औषधीय पौधों और हर्बल उत्पादों की खेती से प्रदेश को आयुर्वेद और वेलनेस का हब बना सकते हैं। यहां पर्यटन के विविध क्षेत्रों इको, योग, ध्यान, वेलनेस, अध्यात्म आदि के विकास के लिए भी अनुकूल वातावरण है। यह अच्छी बात है कि उत्तराखण्ड सतत् विकास को प्राथमिकता दे रहा है। सरकार की उद्योग समर्थक नीतियों, के कारण हमारे प्रदेश में निवेशक और इनोवेटर्स इन्वेस्टमेंट कर रहे हैं।
उत्तराखण्ड की पर्यटन प्रदेश के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान है, जो हमारी अर्थव्यवस्था का मजबूत स्तम्भ भी है। यहां पर देश-विदेश से पर्यटकों का आवागमन दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। यह अच्छी बात है कि अब राज्य में धार्मिक यात्रा के साथ ही साहसिक पर्यटन, इको टूरिज़्म, आध्यात्मिक और वेलनेस टूरिज़्म भी तेजी से बढ़ रहा है। इसलिए हमें राज्य में पर्यटन अवस्थापना सुविधाओं को बढ़ाते हुए उन्हें मजबूत करना होगा।
पहाड़ी जनपदों और सीमांत गांवों से पलायन हमारे लिए एक चिंता का विषय है। ऐसे में राज्य के इन गांवों को सशक्त, सक्षम और आत्मनिर्भर बनाना बहुत आवश्यक है। हमें पहाड़ी जनपदों में मूलभूत सुविधाओं, खासकर शिक्षा और स्वास्थ्य पर और अधिक ध्यान देना होगा। केंद्र सरकार के द्वारा ‘‘वाइब्रेंट विलेज योजना’’ के तहत उत्तराखण्ड के 51 सीमावर्ती गांवों को पर्यटन एवं अन्य आर्थिक गतिविधियों का केन्द्र बनाकर, मूलभूत सुविधाओं का विकास किया जा रहा है। केंद्र की इस पहल से निकट भविष्य में निश्चित ही अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे।
मेरा मानना है कि पर्यटक अवस्थापना, स्वरोजगार और रिवर्स पलायन के लिए, राज्य में होम स्टे अत्यंत कारगर साबित हो सकते हैं। प्रसन्नता की बात है कि हम इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। आज उत्तराखण्ड में 5000 से अधिक होम स्टे पंजीकृत हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने राज्य स्थापना दिवस पर प्रदेशवासियों से 5 आग्रह किए थे। जिसमें अपनी जड़ों से जुड़ने, लोगों को अपने गांव की तरफ रुख करने और गांव में परंपरागत घरों के संरक्षण कर उन्हें होम स्टे बनाने के संबंध में ये दो आग्रह शामिल थे। मेरा विश्वास है कि उनके इन दो आग्रहों को हम संकल्प में बदल कर अपनी संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण करते हुए काफी हद तक स्वरोजगार और पलायन रोकने में भी सफल हो सकते हैं।
विद्वत जनों!
शिक्षा में वह ताकत है जिसके बल पर राष्ट्र के भाग्य को बदला जा सकता है। 21वीं सदी का भारत जिन लक्ष्यों के साथ आगे बढ़ रहा है, उन्हें अर्जित करने में हमारी शिक्षा प्रणाली की बहुत बड़ी भूमिका रहने वाली है। मैं मानता हूँ कि हमारी शिक्षा का लक्ष्य शारीरिक एवं मानसिक विकास के साथ ही चरित्र निर्माण और व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास होना चाहिए।
शिक्षा के माध्यम से हमें एक ऐसी ऊर्जावान नई पीढ़ी तैयार करनी है। जो गुलामी की मानसिकता से मुक्त हो, जो नवाचारों के लिए उत्सुक हो, जो साइंस से लेकर स्पोट्र्स तक परचम लहराने को तैयार हो, जो 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुरूप खुद को हुनरमंद बनाने की इच्छुक हो, जो कर्तव्य की भावना से भरी हुई हो। जिसने नेशन फस्र्ट की भावना को आत्मसात किया हो।
शैक्षिक क्षेत्र के लिए अनुकूल वातावरण से परिपूर्ण, गुरु द्रोण की यह भूमि, उत्तराखण्ड वर्षों से स्कूली शिक्षा का हब रहा है। हमारा प्रदेश उच्च शिक्षा का भी केंद्र बने, इसके लिए हमें कठोर सामूहिक प्रयास करने होंगे।समय के साथ-साथ यदि हमें हर क्षेत्र में आगे बढ़ना है तो हमें नित नई तकनीकों को अपनाना होगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अब हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन चुका है, यह कई समस्याओं का समाधान कर रहा है, इसलिए हम इसके सुपयोग के लिए आगे बढ़ें।
यह बड़ी चिंता का विषय है कि आज जलवायु संकट पूरी दुनिया के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर रहा है। जो जनजीवन और अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव डाल रही हैं। इसके कारण बाढ़, भूस्खलन, जल स्रोतों के सूखने, ग्लेशियरों के पिघलने, बढ़ते तापमान, बदलती मौसम की घटनाएँ, और जैव विविधता को हो रहे नुकसान जैसे प्रभाव शामिल हैं। इसके लिए हमें हरित ऊर्जा, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और जलविद्युत के उपयोग को बढ़ावा देना होगा और वनों एवं जल संरक्षण के लिए कदम उठाने के साथ ही सतत् विकास के रास्तों की खोज पर ध्यान केंद्रित होगा, ताकि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ और हरित धरती निर्मित कर सकें।
मुझे खुशी है कि इस व्याख्यान माला में विभिन्न विषयों पर विशेषज्ञों एवं विद्वानों द्वारा गहन विमर्श किया गया जिसमें हमारी संस्कृति और प्रगति प्रमुख रूप से इसके केन्द्र में रही। हमारी संस्कृति हमें नैतिकता, समरसता और सेवा का पाठ पढ़ाती है, जबकि प्रगति हमें इन आदर्शों को तकनीक और विज्ञान के माध्यम से साकार करने का साधन प्रदान करती है।
आज हमारा सपना एक विकसित, सशक्त और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का है। इस स्वप्न को साकार करने के लिए हमें अपनी संस्कृति के मूल्यों को संरक्षित करते हुए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में निरंतर प्रगति करनी होगी और तेजी से प्रगति करनी होगी। मेरे विचार से एक विकसित राष्ट्र के निर्माण के लिए सभी देशवासियों में, ‘राष्ट्र को सर्वाेपरि’ मानने की भावना का संचार करना भी बहुत जरूरी है।
आइए! हम सब मिलकर एक ऐसा भारत बनाएं, जहां हमारी संस्कृति, हमारी प्रगति और हमारी आत्मनिर्भरता की कहानी आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बने। मुझे विश्वास है कि यह व्याख्यान माला माँ गंगा के जल की तरह अविरल रूप से ज्ञान रूपी गंगा को प्रवाहित करते हुए समाज का मार्गदर्शन करती रहेगी।
आज देश एक साथ विकसित भारत के संकल्प की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। मुझे विश्वास है कि बौद्धिक विमर्श के इस महाकुंभ से निकली आध्यात्मिक और सामूहिक शक्ति हमारे इस संकल्प को और मजबूत बनाएगी। मेरा दृढ़ विश्वास है कि फिर से भारत विश्व गुरु, नवाचार और ज्ञान का केंद्र बनेगा और विश्व के कल्याण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।
जय हिन्द!