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    22-11-2025:आईएएस एसोसिएशन द्वारा आयोजित प्रशासनिक सम्मेलन के अवसर पर माननीय राज्यपाल महोदय का सम्बोधन

    प्रकाशित तिथि : नवम्बर 22, 2025

    जय हिन्द!

    आप सभी का राजभवन में हृदय से स्वागत और अभिनंदन।

    आज आपके बीच उपस्थित होकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता और गर्व की अनुभूति हो रही है। यह सम्मेलन केवल एक औपचारिक आयोजन नहीं, बल्कि उत्तराखण्ड के भविष्य की उस दिशा को सामूहिक रूप से निर्धारित करने का अवसर है, जिसे हम सब मिलकर विकसित और सशक्त बनाना चाहते हैं।

    आप सभी अधिकारी सुशासन और विकास के वे स्तंभ हैं जिन पर उत्तराखण्ड की वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों की आकांक्षाएँ टिकी हैं। मुझे प्रसन्नता है कि इस तीन दिवसीय सम्मेलन में ‘विकसित उत्तराखण्ड 2047’ विषय पर गंभीरता, व्यापक दृष्टिकोण और गहन चिंतन के साथ चर्चा की गई है। मुझे विश्वास है कि इस महत्वपूर्ण विषय पर किए गए चिंतन-मनन और व्यापक मंथन से जो अमृत निकलेगा उससे आने वाले वर्षों में उत्तराखण्ड देश का सर्वश्रेष्ठ राज्य के रूप में उभरेगा।

    उत्तराखण्ड अपनी प्रकृति, संस्कृति और धरोहर में अत्यंत विशिष्ट है। हिमालय की चोटियाँ केवल भौगोलिक ऊँचाई नहीं दर्शातीं, वे आत्मशक्ति, धैर्य, त्याग और तप की भी प्रतीक हैं। गंगा-यमुना की पावन धाराएँ हमें निरंतर पवित्रता, प्रवाह और सेवा की प्रेरणा देती हैं। यही कारण है कि उत्तराखण्ड केवल भूमि नहीं, बल्कि आस्था, अध्यात्म और ऊर्जा का अविरल स्रोत के कारण देवभूमि है।

    पिछले 25 वर्षों की यात्रा हमारे संघर्ष, हमारे संकल्प और हमारी क्षमता का परिचय कराती है। अनेक चुनौतियों के बीच भी उत्तराखण्ड ने विकास की राह बनाई है। पहाड़ी भूगोल, सीमांत जिले, जंगल, कठिन मार्ग और प्राकृतिक आपदाएँ- ये सब राज्य के विकास की यात्रा को चुनौतीपूर्ण बनाते रहे हैं। लेकिन मुझे गर्व है कि इन सभी बाधाओं का सामना प्रशासनिक तंत्र ने अनुकरणीय साहस और तत्परता के साथ किया। चाहे बाढ़ हो, भूस्खलन हो, अतिवृष्टि हो या भूकम्प- उत्तराखण्ड के अधिकारियों ने हर संकट में जनता की सुरक्षा को सर्वाेच्च प्राथमिकता देते हुए असाधारण क्षमता का परिचय दिया है।

    आज हमारा राज्य अधिक जागरूक, अधिक आकांक्षी और अधिक संवेदनशील हो चुका है। शिक्षा का प्रसार हुआ है और इसके साथ ही लोगों की अपेक्षाएँ बढ़ी हैं। अब जनता केवल सेवाएँ नहीं चाहती, बल्कि बेहतर गुणवत्ता, पारदर्शिता, त्वरित निर्णय और संवेदनशील प्रशासन की अपेक्षा करती है। प्रशासन अब केवल फाइलों से नहीं चलता, यह व्यवहार, संवेदना और समयबद्ध कार्यप्रणाली से चलता है। आपकी जिम्मेदारी केवल नीति बनाना नहीं, बल्कि उस नीति को अंतिम व्यक्ति तक पहुँचाना भी है। जिस दिन अंतिम व्यक्ति तक सरकारी योजनाओं का लाभ पूरी निष्ठा से पहुँचेगा, उसी दिन सुशासन की परिभाषा पूर्ण होगी।

    विकसित उत्तराखण्ड 2047 का सपना केवल आर्थिक विकास का नहीं है, बल्कि एक ऐसे समाज का निर्माण है जिसमें अवसर, सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति और पर्यावरण का संतुलन समान रूप से स्थापित हो। मुझे विश्वास है कि उत्तराखण्ड आने वाले वर्षों में आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक और मानवीय मूल्यों पर आधारित ऐसा मॉडल प्रस्तुत करेगा जो देश के लिए प्रेरणा बनेगा।

    मेरी दृष्टि में विकसित उत्तराखण्ड का अर्थ है- एक ऐसा राज्य जो अपनी आध्यात्मिक पहचान और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करते हुए आधुनिकता, नवाचार और प्रौद्योगिकी के साथ आगे बढ़े। उत्तराखण्ड योग, आयुर्वेद और वेलनेस का वैश्विक केंद्र बन सकता है। पर्वतीय कृषि, हर्बल उद्योग, माइक्रो-उद्यम, पर्यटन और स्थानीय उत्पाद राज्य की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दे सकते हैं। हमारे विश्वविद्यालय अनुसंधान और नवाचार के केंद्र बन सकते हैं। और सबसे महत्वपूर्ण, एक सुदृढ़, पारदर्शी और संवेदनशील प्रशासन विकसित उत्तराखण्ड की रीढ़ बनेगा।

    आप सभी अधिकारियों से मेरी विनम्र अपेक्षा है कि आप समर्पण को अपना धर्म मानें, ईमानदारी को अपनी शक्ति बनाएं और व्यवहार कुशलता को अपनी पहचान बनाएं। जनता आपकी पदवी नहीं, आपका व्यवहार याद रखती है। कठिन परिस्थितियाँ भी संवेदना और साहस से सरल हो जाती हैं। एक सिविल सेवक के जीवन में हर निर्णय केवल आज को नहीं, बल्कि भविष्य को भी प्रभावित करता है। इसलिए आपका हर कदम उत्तराखण्ड की आने वाली पीढ़ियों की दिशा तय करता है।

    दो दिवसीय इस प्रशासनिक सम्मेलन में नियोजन विभाग द्वारा प्रस्तुत ‘विकसित उत्तराखण्ड 2047’ का विजन, तथा वित्त विभाग द्वारा राज्य की अर्थव्यवस्था और भविष्य की चुनौतियों पर प्रस्तुत किया जाने वाला विचार-विमर्श अत्यंत मूल्यवान होगा। मुझे विश्वास है कि यहाँ से निकलने वाले सुझाव और समाधान आने वाले वर्षों में उत्तराखण्ड की विकास यात्रा के प्रमुख आधार बनेंगे।

    देश का भविष्य विकसित भारत 2047 पर आधारित है। और विकसित भारत का निर्माण तभी संभव होगा जब उत्तराखण्ड जैसे राज्य सशक्त, आत्मनिर्भर और सुशासित बनें। हमारा राज्य प्राकृतिक संसाधनों का भंडार है, आध्यात्मिक धरोहर का केंद्र है और देश की सीमाओं का प्रहरी है। ऐसे में विकसित भारत के निर्माण में उत्तराखण्ड की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।

    अंत में, मैं यही कहना चाहता हूँ कि आप सभी अधिकारियों की निष्ठा, आपका परिश्रम और आपका दृष्टिकोण- ये उत्तराखण्ड को उस ऊँचाई तक ले जा सकते हैं जिसका स्वप्न हम सब देखते हैं।

    आपकी प्रतिबद्धता, अनुशासन और जनसेवा की भावना उत्तराखण्ड को न केवल विकसित, बल्कि प्रेरणादायक राज्य बनाएगी। इन्हीं मंगलकामनाओं के साथ अपनी वाणी को विराम देता हूँ।

    जय हिन्द!