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    16-11-2024 : अखिल भारतीय वैदिक सम्मेलन में माननीय राज्यपाल महोदय का अभिभाषण

    प्रकाशित तिथि: नवम्बर 16, 2024

    जय हिन्द!

    शिवालिक पर्वतमाला की तलहटी में माँ गंगा के तीर पर स्थित, पवित्र भूमि हरिद्वार में आयोजित इस तीन दिवसीय ‘अखिल भारतीय वैदिक सम्मेलन’ में आप सभी विद्वत जनों के मध्य पहुँच कर मुझे अपार प्रसन्नता और गर्व की अनुभूति हो रही है। संपूर्ण भारतवर्ष से पधारे हुए वेद के विभिन्न शाखाओं के वेद मूर्तिगण के समक्ष उपस्थित होना मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात है।

    मुझे बताया गया है कि भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत स्थापित महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन शिक्षा मंत्रालय का स्वायत्त संस्थान है, और यह पूरे भारतवर्ष में वेद एवं वैदिक परंपरा की रक्षा के लिए लगभग 500 वेद पाठ शालाओं एवं गुरुकुलों का आर्थिक सहयोग करके, इस वैदिक संस्कृति और परंपरा की रक्षा के लिए अत्यंत प्रशंसनीय कार्य कर रहा है।

    इस अखिल भारतीय वैदिक सम्मेलन के आयोजन के लिए परम पूज्य महाराज जी विश्वेश्वरानन्द गिरि जी महाराज और वेदस्थली शोध संस्थान वेद पाठशाला, सूरत गिरी बंगला हरिद्वार परिवार को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।

    उपस्थित विद्वत जनों,

    भारतीय संस्कृति में वेदों का विशेष महत्व है। भारतीय ज्ञान परंपरा की शुरुआत वेदों से ही हुई है। वेदों में ही वर्तमान व भविष्य की सभी चुनौतियों का हल है। वेद भगवान की वाणी है, इसलिए वेदों का अध्ययन करने वाला व्यक्ति ही समाज का मार्गदर्शक बनता है।

    वैदिक परंपरा हमारे राष्ट्र की बुनियाद है, जो हमारे पूर्वजों की दूरदर्शिता, तपस्या और ज्ञान का प्रतीक है। हमारे वैदिक ग्रंथों में, चाहे वह आध्यात्मिक उत्थान हो, सामाजिक व्यवस्था हो या प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने का महत्व, जीवन के सभी पहलुओं का ज्ञान समाहित है।

    ‘देवभूमि’ उत्तराखण्ड, ऋषियों और संतों की साधना स्थली, वैदिक संस्कृति और वेदों की शिक्षा की पावन भूमि रही है। यहाँ के कण-कण में ऋषि-मुनियों का तप और ज्ञान का वास है। वेदों का पठन-पाठन का कार्य इस पावन भूमि पर हजारों वर्षों से चला आ रहा है। बाबा केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री जैसे पवित्र धाम इसी भूमि में हैं, जहाँ साधु-संत हजारों वर्षों से ध्यान, साधना, और वैदिक अनुष्ठानों का अभ्यास करते रहे हैं।

    व्यास गुफा उत्तराखण्ड के बद्रीनाथ धाम के निकट माणा गाँव में स्थित एक ऐतिहासिक और पवित्र स्थल है। मान्यता है कि इसी गुफा में महर्षि वेदव्यास ने महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना की थी और चारों वेदों का संकलन भी यहीं किया। यह गुफा अद्भुत और पौराणिक महत्व से भरी है, जो भारतीय संस्कृति और इतिहास में विशेष स्थान रखती है।

    विद्वत जनों,
    सनातन वैदिक संस्कृति का मूलस्रोत हमारी अमूल्य धरोहर वेद है। ‘‘वेदाः स्थानानि विद्यानाम्’’। विश्व में भी व्याप्त ज्ञान-विज्ञान की विभिन्न शाखाओं का भी मूल कहीं न कहीं वेद ही हैं। मनु स्मृति में भी वेद के लिए कहा गया है कि ‘‘सर्वं वेदात् प्रसिध्यति’’ अर्थात् इस संसार में विद्यमान सब कुछ ज्ञान-विज्ञान की खान वेद ही है।

    वेदों को श्रुति भी कहा गया है, क्योंकि इन्हें हमारे ऋषियों, आचार्यों, गुरुओं और उनके शिष्यों ने हजारों लाखों वर्षों से अपने आचार्य से सुन-सुनकर कण्ठ में धारण करके आज तक सुरक्षित रखा हुआ है। हमारी भारतीय सनातन संस्कृति और सभ्यता भी सबसे प्राचीन और पुरानी है। यूनेस्को ने भी ऋग्वेद को दुनिया का सर्व प्राचीन ग्रंथ माना है।

    भारतीय संस्कृति का इतिहास अत्यंत अद्वितीय है, जिसकी जड़ें वेदों, उपनिषदों, महाभारत, रामायण, और पुराणों में हैं। सनातन संस्कृति एक दार्शनिक, सामाजिक, और वैज्ञानिक परंपरा का समागम है। वेदों और उपनिषदों में आत्मा, परमात्मा और ब्रह्मांड के विषय में गहन चर्चा है।

    उपनिषदों में अद्वैत वेदांत का सिद्धांत हमें यह सिखाता है कि आत्मा और ब्रह्म का एक अटूट संबंध है, और हर व्यक्ति में दिव्यता है। ‘‘तत त्वम असि’’ (तुम वही हो) जैसे सूत्र व्यक्ति को यह बोध कराते हैं कि ब्रह्मांड की सभी चीजें आपस में जुड़ी हुई हैं।

    विद्वान साथियों,
    भारतीय संस्कृति केवल आध्यात्म और दर्शन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें विज्ञान और गणित का भी महत्वपूर्ण योगदान है। प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक आर्यभट्ट ने शून्य की खोज की, जिससे गणित और खगोल विज्ञान में क्रांति आई। इसके अलावा ‘‘पाई’’ का मान, ग्रहों की गति, और ब्रह्मांड की संरचना का उल्लेख हमारे ग्रंथों में मिलता है।

    चरक और सुश्रुत जैसे महान चिकित्सकों ने चिकित्सा विज्ञान को नया आयाम दिया, जिनकी चिकित्सा पद्धतियाँ आयुर्वेद के रूप में आज भी प्रचलित हैं। भारतीय संस्कृति में प्रकृति को देवता के रूप में माना गया है। गंगा, यमुना और नर्मदा जैसी नदियों को माँ का दर्जा प्राप्त है। इसमें वृक्षों, पहाड़ों और नदियों की पूजा की जाती है। ‘‘पृथ्वी सूक्त’’ जैसे वैदिक मंत्र हमें पृथ्वी का सम्मान करने की प्रेरणा देते हैं, और यह बताते हैं कि प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना कितना आवश्यक है।

    वेदों में उल्लेखित पर्यावरण संतुलन, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, और मानवता के लिए शुभ संकल्प उत्तराखण्ड की संस्कृति और परंपरा में गहराई से जुड़े हुए हैं। यहाँ के लोग सदियों से प्रकृति के साथ सामंजस्य में जीवन जीते आए हैं, जो वेदों के मूल सिद्धांतों का सजीव उदाहरण है।

    यदि आज हम सभी सनातन धर्मावलम्बी दुनिया को शांति और सुख समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं, तो उसके लिए हमें वेदों ने ही प्रेरित किया है विश्व के कल्याण के अनेक प्रेरक वाक्य हमारे वेदों में भरे पड़े हैं।

    प्रबुद्ध जनों,
    वैदिक संस्कृति भारतीय सभ्यता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है, जिसका प्रभाव आज भी हमारे जीवन में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। वेदों का ज्ञान मात्र धार्मिक ग्रंथों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन के समस्त क्षेत्रों में मार्गदर्शन प्रदान करता है। वेदों में ज्ञान, नैतिकता और सामाजिक व्यवस्था की गहनता से व्याख्या की गई है।

    वैदिक काल में शिक्षा, विज्ञान और कला का बहुत महत्व था। ऋषियों ने ज्ञान के प्रसार के लिए गुरुकुल व्यवस्था को स्थापित किया। यहाँ पर विद्यार्थी केवल शास्त्रों का ज्ञान ही नहीं, बल्कि जीवन के विभिन्न कौशल भी सीखते थे। इसके अलावा, वैदिक संस्कृति में पर्यावरण की रक्षा, प्राकृतिक संतुलन, और मातृभूमि के प्रति प्रेम को बहुत महत्व दिया गया है।

    वर्तमान भारतीय जीवन शैली में वैदिक संस्कृति के कई पहलू बनाए हुए हैं। आज भी भारतीय परिवार में संयुक्त परिवार की परंपरा, त्योहारों की धूमधाम, और धार्मिक संस्कार हमें वैदिक मूल्यों की रक्षा करते दिखते हैं। योग और ध्यान, जो वैदिक परंपरा का एक हिस्सा हैं, आज विश्वभर में लोकप्रियता हासिल कर चुके हैं।

    हालांकि, आधुनिकता के चलते कुछ पारंपरिक मूल्यों में बदलाव आया है, लेकिन वैदिक संस्कृति की नींव आज भी हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह आवश्यक है कि हम अपनी संस्कृतियों को संजोएं और उन्हें भविष्य की पीढ़ियों तक पहुंचाएं, ताकि भारतीय जीवन शैली की सरलता और गहराई बनी रहे।

    आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में देश की सनातन संस्कृति का पुनर्जागरण हो रहा है। मोदी जी ने अपने प्रयासों से सनातन संस्कृति और उसके प्रतीकों के प्रति एक नए सोच, उत्साह और प्रेरणा देने का काम किया है, जो देश को जोड़ता है। समानता का सेतु बनाता है।

    विद्वत जनों,
    हमारी सनातन संस्कृति के दो विचार और महत्वपूर्ण हैं। ‘सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया’ अर्थात सभी प्रसन्न रहें, सभी सुखी रहें। और दूसरा-‘वसुधैव कुटुंबकम’ यानी पूरा विश्व एक परिवार है।

    लेकिन हमें प्रधानमंत्री जी की एक बात भी गांठ बांधनी होगी कि ‘सनातन का अर्थ यह नहीं है कि हम कमजोर और असुरक्षित रहें। जब-जब इस देश में औरंगजेब आता है, तब-तब उसके खिलाफ लड़ने के लिए एक छत्रपति शिवाजी महाराज भी खड़े हो जाते हैं। यही तो सनातन का सत्य, संस्कार और सामथ्र्य है।

    इस वैदिक सम्मेलन का उद्देश्य इस प्राचीन ज्ञान को संरक्षित करना और इसे आधुनिक समाज की चुनौतियों के समाधान में उपयोगी बनाना है। जब हम इस ज्ञान को आत्मसात करेंगे, तो न केवल उत्तराखण्ड बल्कि संपूर्ण भारत और विश्व को भी एक नई दिशा मिलेगी।

    इस भव्य आयोजन में संपूर्ण भारतवर्ष के लगभग सभी प्रान्तों से वेद के विभिन्न शाखाओं के वेद मूर्तियों द्वारा वेद पारायण का मंगल-अनुष्ठान और वेद के विशिष्ट विद्वानों के व्याख्यान हो रहे हैं। आइए, इस सम्मेलन के माध्यम से हम सभी मिलकर भारत की इस अमूल्य विरासत का सम्मान करें और इसे विश्व के कोने-कोने में पहुंचाने का संकल्प लें।

    मुझे विश्वास है कि यह आयोजन जन समुदाय को वेदों को समझने में मदद करेगा एवं वेदों के अध्ययन की उत्सुकता पैदा करेगा। इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में मुझे आमंत्रित करने के लिए आयोजन कर्ताओं को बहुत-बहुत धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। साथ ही भगवान शिव के त्रिशूल की भांति इस तीन दिवसीय अखिल भारतीय वैदिक सम्मेलन की सफलता के लिए मंगल कामना करता हूँ।

    एक बार पुनः इस पुनीत कार्य में जुटे सभी विद्वानों को प्रणाम करते हुए मैं हृदय तल से बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूँ।

    जय हिन्द।