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    13-11-2024 : धाद संस्था द्वारा उत्तराखंड के लोक पर्व इगास पर आयोजित कार्यक्रम में माननीय राज्यपाल महोदय का सम्बोधन

    प्रकाशित तिथि: नवम्बर 13, 2024

    जय हिन्द!

    उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति के प्रमुख पर्व इगास (बूढ़ी दीवाली) की आप सभी को शुभकामनाएं। मैं इस अवसर पर प्रदेशवासियों की सुख-शांति एवं समृद्धि की कामना करता हूँ।

    धाद संस्था द्वारा उत्तराखंड के आपदा प्रभावित छात्रों के कार्यक्रम ‘पुनरुत्थान’ के अंतर्गत इगास आयोजन के अवसर पर उपस्थित छात्रों और उनके अभिभावकों का मैं, विशेष तौर पर राजभवन में स्वागत करता हूँ।

    मुझे मालूम हुआ है कि सामाजिक संस्था धाद, उत्तराखंड में समाज, संस्कृति, साहित्य और पर्यावरण के क्षेत्र में पिछले 38 वर्षों से निरंतर कार्य कर रही है। जो कि बहुत ही सराहनीय है।

    केदारनाथ आपदा के पश्चात धाद ने पुनरुत्थान नाम से आपदा प्रभावित छात्रों की शिक्षा में सहयोग की पहल की। यह कार्यक्रम आज अन्य जिलों में भी आपदा प्रभावित छात्रों और कोरोना प्रभावित परिवारों के बच्चों की शिक्षा सहयोग से जुड़ गया है। यह संस्था अब तक 54 लाख से अधिक की शैक्षणिक सहयोग राशि सीधे बच्चों के खातों में भेज चुकी है। मैं इन सभी पुनीत कार्यों के लिए धाद संस्था की पूरी टीम को बधाई देता हूँ।

    यह हम सभी प्रदेशवासियों का सौभाग्य है कि लोक कला, लोक संस्कृति एवं परंपराओं की दृष्टि से देवभूमि उत्तराखंड समृद्ध प्रदेश है। इगास हमारी पौराणिक कथाओं, आस्थाओं, पशुधन के प्रति सम्मान और ऋतु आधारित एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व हमें जहां एक ओर जीवन में प्रेम, उल्लास और उमंग का संदेश देता है, वहीं दूसरी ओर यह, इस वैज्ञानिक युग में भी तार्किक संदेश देता है कि मनुष्य जीवन का आस्था और प्रकृति के साथ किस तरह का अटूट संबंध होना चाहिए।

    मुझे प्रसन्नता है कि कल पूरे प्रदेश और देश में जहां-जहां उत्तराखंडी निवास करते हैं, उन्होंने बड़े हर्ष और उल्लास के साथ इगास का पर्व मनाया। मुझे मालूम हुआ है कि अब तो विदेशों में भी प्रवासी उत्तराखंडी बड़े उल्लास और उमंग से इस लोक पर्व को दिवाली की तरह ही मना रहे हैं।

    लंका विजय के उपरांत भगवान श्री राम के अयोध्या लौटने पर दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। मान्यता है कि गढ़वाल क्षेत्र में राम जी के वनवास से वापस लौटने की खबर 11 दिन बाद आई थी।

    यही कारण है कि पहाड़ में कार्तिक शुक्ल एकादशी को दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। जिसे बूढ़ी दिवाली या इगास बग्वाल भी कहते है।

    दूसरी मान्यता के अनुसार दीपावली के समय गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघाट, तिब्बत का युद्ध जीतकर विजय प्राप्त की थी।
    दीपावली के ठीक ग्यारहवें दिन गढ़वाल सेना अपने घर पहुंची थी। इसलिए युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में इस दिन दीपावली मनाई जाती है। इस दिन सुबह से लेकर दोपहर तक गोवंश की पूजा की जाती है। मवेशियों के लिए भात, झंगोरा, बाड़ी, मंडुवे आदि से आहार तैयार किया जाता है। जिसे परात में कई तरह के फूलों से सजाया जाता है। रात को सभी पहाड़वासी इस दौरान पारंपरिक ’भैलो’ खेलकर जश्न मनाते है।

    साथियों,
    लोक पर्व एवं समृद्ध सांस्कृतिक विरासत सामाजिक जीवन में जीवंतता प्रदान करने का कार्य करते हैं। मेरा मानना है कि लोक पर्व इगास को अपने गांवों में धूम-धाम से मनाने की इस पहल से हम उत्तराखंड के लोग अपनी जड़ों से जुड़ेंगे। मेरी आप लोगों से अपील है कि हम अपने राज्य की विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान के लिए अपने पर्वों, त्योहारों को धूम-धाम से मनाएं।

    अपनी लोक संस्कृति के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करें, जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी भी उत्तराखंड की संस्कृति से रूबरू हो सके, और अपनी गौरव शाली संस्कृति पर गर्व कर सके। यह खुशी की बात है कि उत्तराखंड के पारंपरिक त्योहार इगास के प्रति प्रदेश वासियों में रुचि जागृत हो रही है। यह अच्छी बात है कि मैदानी क्षेत्रों में बसे और देश-विदेश में बसे उत्तराखंडी लोग अब धीरे-धीरे अपने गांवों में इगास मनाने को लेकर प्रेरित हो रहे हैं।

    लोक पर्व इगास हमारी संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है। अपनी लोक परंपराओं और संस्कृति को बचाने के लिए हम सभी को एकजुट होना होगा। ताकि वीरान होते गांवों, खाली होते पहाड़ों में एक बार फिर से वही पुरानी रौनक लौट सके।

    जब हम लोग अपने पर्वों और त्योहारों को मनाने के लिए अपनी जड़ों की ओर, अपने गांवों की ओर लौटेंगे तो इससे हमारे पहाड़ की स्थानीय अर्थ व्यवस्था को नया जीवन मिलेगा। इससे दूरदराज के गांवों में पलायन पर रोक लगेगी। हमारे लोक पर्व पुनर्जीवित होंगे तो उत्तराखंड के चीन और नेपाल की सीमा से लगे गांव भी आबाद होंगे, जो कि सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।

    मुझे तो लगता है कि जिस प्रकार पिछले कुछ वर्षों से हमारे प्रदेश के मैदानी इलाकों में रहने वाले तमाम लोग त्योहार मनाने के लिए अपने गांव लौट रहे हैं।

    निश्चित ही इस पहल से आज नहीं तो कल गुजरात का गरबा, बिहार की छठ पूजा, पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा, महाराष्ट्र की गणेश चतुर्थी, पंजाब की बैशाखी की तरह उत्तराखंड का इगास पर्व हमारे प्रदेश की पहचान बनेगा।

    मेरा मानना है कि अपनी संस्कृति को जीवित रखने के लिए अपने पारंपरिक पर्वों को जिंदा रखना जरूरी है। हमें अपनी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए हर लोक पर्व में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेकर उत्साह से मनाना चाहिए। और साथ ही अपनी परंपरा और संस्कृति से अपने बच्चों को भी जरूर अवगत कराना चाहिए।

    उत्तराखंड के बच्चों की गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के लिए मैं स्वयं निरंतर प्रयासरत रहता हूँ। धाद संस्था द्वारा उत्तराखंड के आपदा प्रभावित छात्रों के शैक्षिक पुनरुत्थान के लिए की जा रही इस अभिनव पहल की मैं भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूँ।

    यह हम सभी के लिए प्रेरणादायी कदम है। मुझे उम्मीद है कि प्रभावित बच्चों की शिक्षा के लिए संस्था के यह भगीरथ प्रयास सफल होंगे, और इससे निश्चित ही इन बच्चों के जीवन में एक नया सवेरा आएगा। मैं इन सभी बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ।

    एक बार पुनः आप सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

    जय हिन्द!