12-01-2025 : “Cosmic Love” और “Pratap Nagar to Tokyo” पुस्तकों के विमोचन समारोह में माननीय राज्यपाल महोदय का संबोधन
जय हिन्द!
राजभवन के आडिटोरियम में उपस्थित सम्मानित अतिथिगण, विद्वान लेखकगण एवं देवियों और सज्जनों!
सबसे पहले, मैं आप सभी का राजभवन में हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज हम यहां ष्ब्वेउपब स्वअमष् और ष्च्तंजंच छंहंत जव ज्वालवष् पुस्तकों के लोकार्पण के लिए एकत्रित हुए हैं। मैं इन पुस्तकों के संपादकों और प्रकाशकों को बधाई देता हूँ जिनके प्रयासों से इन पुस्तकों का लोकार्पण हुआ है।
आज का दिन विशेष है, क्योंकि हम स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर ‘‘राष्ट्रीय युवा दिवस’’ भी मना रहे हैं। यह दिन हमें न केवल स्वामी विवेकानंद जी के विचारों और शिक्षाओं को याद करने का अवसर प्रदान करता है, बल्कि उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाने तथा देश के विकास और समाज के उत्थान में योगदान देने के लिए प्रेरित भी करता है।
साथियों,
आज यह आयोजन हमें एक और महान भारतीय आध्यात्मिक विभूति स्वामी रामतीर्थ जी के जीवन और दर्शन की स्मृति से जोड़ता है। उनके महान विचार और शिक्षाएं समय और सीमाओं के परे हैं। उन्होंने भारत की गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अपने जीवन और विचारों से वैश्विक मानवता को प्रेम, शांति और एकता का मार्ग दिखाया।
स्वामी रामतीर्थ, की अध्यात्म और मानव कल्याण की प्रेरणा ने उन्हें सांसारिक जीवन छोड़ने के लिए प्रेरित किया। मात्र 27 वर्ष की आयु में उन्होंने परिवार, नौकरी और सामाजिक बंधनों का त्याग कर देवभूमि उत्तराखण्ड के हिमालय में साधना का मार्ग अपनाया।
स्वामी रामतीर्थ केवल एक संत ही नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी विचारक, व्यावहारिक वेदांत के प्रचारक, कवि और वैश्विक प्रेम के दूत थे। वे पांच भारतीय भाषाओं के कवि और आठ अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं के विद्वान थे और उनका व्यक्तित्व ज्ञान, करुणा और विश्वप्रेम का अद्वितीय उदाहरण है।
स्वामी रामतीर्थ ने 1902 में टिहरी के प्रतापनगर से अपनी ऐतिहासिक यात्रा शुरू की। यह यात्रा चीन, हांगकांग और सिंगापुर होते हुए जापान पहुंची। जापान में उन्होंने भारतीय अध्यात्म और व्यावहारिक वेदांत का प्रचार किया और भारत-जापान की सांस्कृतिक एकता को मजबूत किया।
ष्च्तंजंच छंहंत जव ज्वालवष् पुस्तक इस ऐतिहासिक यात्रा का सचित्र वर्णन करती है। यह पुस्तक न केवल स्वामी जी के व्याख्यानों, अनुभवों और विचारों को संजोती है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रभाव का प्रमाण भी है।
यह पुस्तक बताती है कि कैसे एक भारतीय संत ने प्रेम, शांति और एकता का संदेश लेकर विभिन्न देशों की सीमाओं को पार किया और उन्हें आध्यात्मिक रूप से जोड़ने का कार्य किया।
ष्ब्वेउपब स्वअमष् पुस्तक स्वामी रामतीर्थ के व्यावहारिक वेदांत के 108 महत्वपूर्ण जीवन सिद्धांतों का संग्रह है। यह पुस्तक प्रेम, करुणा और आत्मविकास का मार्ग दिखाती है। यह सिद्धांत केवल आत्मशुद्धि और आत्म उत्थान तक सीमित नहीं हैं, बल्कि पूरे समाज और विश्व के उत्थान का मार्ग प्रशस्त करता है।
साथियों,
आज के दौर में जब विश्व, अशांति, असंतोष और संघर्षों से गुजर रहा है, तब स्वामी रामतीर्थ के विचार और सिद्धांत और भी प्रासंगिक हो जाते हैं। यह पुस्तक हर व्यक्ति के लिए आत्ममंथन और आत्मविकास का साधन बन सकती है।
देवभूमि उत्तराखण्ड ने हमेशा ही संतों, महापुरुषों और योगियों को अपनी गोद में पाला है। गंगा-यमुना की पवित्र धाराएं, हिमालय की दिव्यता और यहां की सांस्कृतिक विरासत ने इस भूमि को तप, साधना और प्रेरणा का केंद्र बनाया है।
स्वामी रामतीर्थ ने भी इसी पावन धरती से विश्वप्रेम और अध्यात्म का संदेश दिया। यह हम सभी के लिए गर्व का विषय है कि उनकी यात्रा और शिक्षाएं आज भी हमें प्रेरित कर रही हैं। उन्होंने कहा था – ष्ज्ीम ूपकम ूवतसक पे उल ीवउम ंदकए ज्व कव हववक पे उल तमसपहपवदण्ष्
आज जब हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नए आयाम छू रहे हैं, ऐसे में आध्यात्मिकता की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। स्वामी रामतीर्थ का व्यावहारिक वेदांत न केवल भारतीय दर्शन का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि यह विश्व शांति, मानवता और सह-अस्तित्व का आधार भी है।
मुझे विश्वास है कि ष्च्तंजंच छंहंत जव ज्वालवष् और ष्ब्वेउपब स्वअमष् पुस्तकों का लोकार्पण न केवल साहित्य प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण होगा, बल्कि ये पुस्तकें युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनेंगी। मैं इन पुस्तकों के संपादकों और प्रकाशकों को बधाई देता हूँ, जिन्होंने स्वामी रामतीर्थ के संदेश को इन पुस्तकों के रूप में प्रस्तुत किया है।
मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ कि आप इन पुस्तकों को पढ़ें, स्वामी रामतीर्थ के विचारों को आत्मसात करें और उन्हें अपने जीवन का हिस्सा बनाएं।
आइए, हम सभी इस अवसर पर यह संकल्प लें कि हम प्रेम, शांति और एकता के संदेश को आगे बढ़ाएंगे और स्वामी रामतीर्थ के व्यावहारिक वेदांत के सिद्धांतों को अपनाकर एक बेहतर समाज और राष्ट्र का निर्माण करेंगे।
आप सभी का इस कार्यक्रम में प्रतिभाग करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
जय हिन्द!