Close

    10-10-2024 : सूचना का अधिकार अधिनियम की 19वीं वर्षगांठ पर माननीय राज्यपाल महोदय का संबोधन

    प्रकाशित तिथि: अक्टूबर 10, 2024

    जय हिन्द!

    सूचना का अधिकार अधिनियम की 19वीं वर्षगांठ के अवसर पर आपके बीच उपस्थित होकर मुझे वास्तव में बहुत प्रसन्नता हो रही है।

    आज के इस महत्वपूर्ण अवसर पर उत्तराखण्ड सूचना आयोग के द्वारा राज्य में सूचना का अधिकार अधिनियम की कार्यवाही में अच्छा कार्य करने वाले लोक सूचना अधिकारियों और विभागीय अपीलीय अधिकारियों को सम्मानित किया गया है, मैं ऐसे सभी अधिकारियों को हृदय से बधाई देता हूँ।

    लोकतंत्र में देश की जनता अपने चुने हुए व्यक्ति को शासन करने का अवसर प्रदान करती है और यह अपेक्षा करती है कि सरकार पूरी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के साथ अपने दायित्वों का पालन करेगी। लोकतंत्र में मालिक होने के नाते जनता को यह जानने का पूरा अधिकार है, कि जो सरकार उनकी सेवा में है, वह क्या कर रही है।

    आज का यह कार्यक्रम इस बात पर विचार करने का तथा आत्मचिंतन करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है कि सूचना के अधिकार ने किस प्रकार सरकार तथा इसके नागरिकों के कार्यों को प्रभावित किया है।

    सूचना का अधिकार अधिनियम के इन 19 वर्षों का अनुभव यह रहा है कि यह शासन में सुधार का एक महत्वपूर्ण घटक है। मेरा मानना है कि सूचना का अधिकार अधिनियम को नागरिक तथा जन प्राधिकारियों के बीच, एक का लाभ दूसरे की हानि, के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।

    सूचना का अधिकार अर्थात् राईट टू इनफार्मेशन। सूचना का अधिकार का तात्पर्य है, सूचना पाने का अधिकार, जो सूचना अधिकार कानून लागू करने वाला राष्ट्र अपने नागरिकों को प्रदान करता है। इस अधिकार के द्वारा राष्ट्र अपने नागरिकों को, अपने कार्य को और शासन प्रणाली को सार्वजनिक करता है।

    सूचना का अधिकार अधिनियम को जन प्राधिकारियों के कार्यों में पारदर्शिता तथा जवाबदेही को बढ़ावा देने हेतु सरकार तथा जन प्राधिकारियों के पास उपलब्ध सूचना को प्राप्त करने के लिए बनाया गया एक अधिनियम है।

    इसका उद्देश्य, जवाबदेह और जिम्मेदार शासन की स्थापना है। यह सूचना रखने और नियंत्रित करने वालों तथा लोकतंत्र में नागरिकों के बीच शक्ति समीकरण का बेहतर संतुलन कायम करने के लिए स्थापित किया गया तंत्र है।

    सूचना का अधिकार अधिनियम के अन्र्तगत नागरिक को सूचना पाने का महत्वपूर्ण अधिकार प्राप्त है जिसके माध्यम से वह सूचना प्राप्त कर, अपने विचार प्रकट कर सकता है अथवा किसी कानूनी प्रक्रिया अथवा अपने शोध कार्य में भी उसका उपयोग कर सकता है।

    इस अधिनियम के अन्तर्गत की जाने वाली कार्यवाही, एक समयबद्ध प्रक्रिया है। इस अधिनियम की उपयोगिता के लिए लोक प्राधिकारियों का दायित्व और भी बढ़ जाता है।

    मेरा मानना है कि इस अधिनियम की अधिक से अधिक उपयोगिता के लिए अभिलेखों का उचित ढ़ग से रख-रखाव आवश्यक है जिससे सूचना मांगे जाने पर सूचना निर्धारित समय सीमा के अन्तर्गत उपलब्ध कराई जा सके।

    प्रत्येक संस्था की स्थापना किसी न किसी विशेष उद्देश्य और व्यापक जनहित के लिए की गई हैं। वह व्यापक हित प्रभावित न हो इस हेतु समस्त लोक प्राधिकारियों को समय-समय पर इसकी समीक्षा भी करनी चाहिए कि उनके विभाग से संबंधित कौन सी सूचना प्रायः नागरिकों के द्वारा मांगी जाती है।

    ऐसी मांगी गई सूचना के पीछे नागरिकों का कोई न कोई उद्देश्य अवश्य होता है या सूचना की मांग के पीछे उनकी कोई न कोई समस्या छुपी होती है जिसका निस्तारण प्रशासनिक स्तर पर ही किया जा सकता है।

    इसलिए आवश्यक है कि ऐसे मामलों पर भी विशेष ध्यान दिया जाए और आवश्यक निर्देश निर्गत किए जाएं। इसके साथ-साथ ऐसी सूचनाएं जो नागरिकों के द्वारा बार-बार मांग की जाती हैं, उनको विभागीय वेबसाइट के माध्यम से अधिक से अधिक प्रचारित किया जाए साथ ही मा0 उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों का पालन किया जाए।

    इस अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन में मुख्य रूप से लोक प्राधिकारी, लोक सूचना अधिकारी, विभागीय अपीलीय अधिकारी तथा सूचना आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रत्येक स्तर पर गंभीरता से नियमानुसार कार्यवाही की जानी चाहिए, जिससे जन सामान्य को देय सूचनाएं समय से प्राप्त हो सके।

    मुझे अवगत कराया गया है कि उत्तराखण्ड राज्य में सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन और अपील पत्र प्रस्तुत करने हेतु आरटीआई ऑनलाइन पोर्टल प्रारम्भ कर दिया गया है। आयोग के द्वारा भी हाईब्रिड मोड में पक्षकारों को सुनवाई की जा रही है जोकि एक सराहनीय कदम है।

    सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत लोक सूचना अधिकारियों और विभागीय अपीलीय अधिकारियों के द्वारा किए जाने वाले कार्याें में सुधार लाने हेतु आयोग स्तर पर माह में दो बार कार्यशाला का भी आयोजन किया जा रहा है जो एक सराहनीय कदम है।

    सूचना आयोग, सूचना का अधिकार का संरक्षक है। इसलिए सूचना आयोग के स्तर से भी यही प्रयास होना चाहिए कि आवेदक को नियमानुसार सूचना प्राप्त हो जाए। समय-समय पर लोक प्राधिकारियों की माॅनीटरिंग भी की जाए जिससे इस अधिनियम के प्राविधानों का अनुपालन सुचारु रूप से किया जा सके।

    आज के इस महत्वपूर्ण अवसर पर उत्तराखण्ड सूचना आयोग के द्वारा राज्य में सूचना का अधिकार अधिनियम की कार्यवाही में अच्छा कार्य करने वाले लोक सूचना अधिकारियों और विभागीय अपीलीय अधिकारियों को सम्मानित किया गया है। मैं ऐसे सभी अधिकारियों को पुनः हृदय से बधाई देता हूँ।

    आशा है कि अन्य अधिकारी इनसे प्रेरणा लेते हुए अपना सर्वाेच्च प्रदर्शन करने का प्रयास करेंगे।

    प्रदेश के सभी लोक प्राधिकारियों, लोक सूचना अधिकारियों, विभागीय अपीलीय अधिकारियों तथा सूचना आयोग से मैं यह अपेक्षा करता हूँ कि वे भविष्य में और अधिक उत्साह, पारदर्शिता तथा जवाबदेही के साथ अपने कार्य करते रहेंगे।

    लोकतंत्र में शासन विश्वास और भरोसे पर चलता है तथा नागरिकों और सरकार के बीच विश्वास का स्तर एक परिपक्व लोकतंत्र का सर्वाेत्तम संकेतक है। लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए एवं जागरूक समाज के निर्माण के लिए सरकार को हर संभव प्रयास करने चाहिए।

    मेरा आग्रह है कि सूचना आयोग, सूचना तक पहुंच और अधिकारियों द्वारा प्रकटीकरण के लिए आरटीआई तंत्र को अधिक प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं, जिससे एक जागरूक नागरिक वर्ग तैयार हो सके।

    मैं सभी नागरिकों और अन्य सभी हित धारकों से आरटीआई अधिनियम के उद्देश्यों को पूरा करने और इसे अधिक ऊंचाइयों तक ले जाने में निरंतर सहयोग और भागीदारी करने की अपील करता हूँ।

    अंत में एक बार पुनः इस महत्वपूर्ण अवसर पर सूचना का अधिकार अधिनियम की 19वीं वर्षगांठ की आप सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूँ।
    जय हिन्द!