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    07-05-2024 : “ब्रैन्ड बाॅलीवुड डाउन अन्डर” फिल्म की स्क्रीनिंग के अवसर पर माननीय राज्यपाल महोदय का उद्बोधन

    प्रकाशित तिथि: मई 7, 2024

    “ब्रैन्ड बाॅलीवुड डाउन अन्डर” फिल्म की स्क्रीनिंग के अवसर पर माननीय राज्यपाल महोदय का उद्बोधन

    (दिनांकः 07 मई, 2024)

    जय हिन्द!

    अभी आपके समक्ष “ब्रैन्ड बाॅलीवुड डाउन अन्डर” फिल्म की स्क्रीनिंग हुई, मुझे आशा है कि निश्चित रूप से आपने इसका भरपूर आनंद लिया होगा। हमने अभी इस फिल्म का बहुत ही आकर्षक ट्रेलर भी देखा।

    मैं, इस फिल्म के निर्माण के लिए अनुपम शर्मा जी को हृदय से बधाई देता हूँ। आप फिल्म निर्देशक, अभिनेता, फिल्म निर्माता और लेखक भी हैं। आॅस्ट्रेलिया में इंडियन फिल्मों को प्रोत्साहित करने में अहम योगदान के लिए मैं, अनुपम शर्मा जी की भूरि-भूरि सराहना करता हूँ जो 1997 से भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच फिल्म संबंधों का नेतृत्व कर रहे हैं।

    यह बड़ी खुशी की बात है कि इस फिल्म के निर्माता अनुपम शर्मा जी के जीवन का प्रारम्भिक कालखंड देहरादून की वादियों में ही गुजरा है। उनकी एक से बारहवीं की शिक्षा देहरादून में ही हुई है और उसके बाद आप फिल्म में स्नातक की डिग्री हासिल करने के लिए ऑस्ट्रेलिया चले गए।

    भारतीय-ऑस्ट्रेलियाई फिल्म निर्माता अनुपम शर्मा ने आॅस्ट्रेलिया में भारतीय फिल्मों की शूटिंग को प्रोत्साहित करने में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं।
    आॅस्ट्रेलिया में भारतीय फिल्मों को प्रमोट करने में आपका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आपने ‘अनइंडियन’ ऑस्ट्रेलियाई फ़ीचर फ़िल्म बनाई, जिसमें ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर ब्रेट ली ने अभिनय किया है। आपकी दूसरी फिल्म “द रन” आॅस्ट्रेलियन डॉक्यूमेंट्री फिल्म थी। देहरादून के रहने वाले प्रसिद्ध सिंगर बॉबी कैश जी पर भी आप एक फिल्म बना रहें है। श्री शर्मा, जी ‘अनइंडियन’ और ‘द रन’ जैसी अपनी इंटर कल्चरल प्रोजेक्ट के लिए जाने जाते हैं।

    हममें से शायद ही कोई व्यक्ति हो जिसने आज तक कोई फिल्म न देखी हो। भारत का कल्चर तो सिनेमा कल्चर रहा है। लेकिन फिल्में केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं अपितु इनके जरिए व्यापक सामाजिक सुधार करने और उन्हें लागू करने में भी मदद मिलती है।

    हमारे समाज में कई कुरीतियाँ और परंपराएँ मौजूद रही हैं जिन्होंने हमारे समाज की प्रगति को बाधित किया। जाति व्यवस्था, अस्पृश्यता, दहेज और पर्दा प्रथा आदि कुरीतियों से हमारे समाज को बहुत नुकसान भी हुआ है। फिल्मों ने इन तमाम कुरीतियों को मिटाने में अहम भूमिका निभाई हैं।

    राष्ट्रीय एकता, राष्ट्रीयता का भाव, संस्कृति एवं परंपराओं के संवर्धन, सामाजिक सौहार्द और सामाजिक परिवर्तन लाने में फिल्में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। भारतीय सिनेमा ने प्रेम और सामाजिक सद्भाव जैसे भारतीय मूल्यों को बढ़ावा देने में भी मदद की है।

    वर्तमान में हमारी फिल्में भारतीय संस्कृति का एक अनिवार्य हिस्सा बन गई है जिससे भारतीय पहचान को आकार मिलने के साथ देश के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक पहलुओं पर भी प्रभाव पड़ रहा है।

    हमारी फिल्में अपने देश में ही नहीं बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, चीन और रूस सहित कई देशों में भी लोकप्रिय हैं। इन्हें विश्व स्तर पर लाखों लोग देखते हैं जिससे भारतीय संस्कृति, मूल्यों और जीवन शैली का भी प्रचार-प्रसार होता है।

    हमारी फिल्मों ने विश्व स्तर पर भारत की सकारात्मक छवि विकसित करने में मदद की है और भारत को सांस्कृतिक समृद्धि, विविधता और समृद्ध परंपरा के रूप में प्रदर्शित किया है।

    भारतीय फिल्मों के जीवंत संगीत, नृत्य से दर्शकों को मनोरंजक अनुभव तो मिलता ही है साथ ही हमारी फिल्मों में एक्शन, ड्रामा, रोमांस, कॉमेडी और सामाजिक मुद्दों पर आधारित होने से वह इसे एक विविध और समावेशी उद्यम बनाती हैं।

    सांस्कृतिक सीमाओं से परे विश्व स्तर पर भारतीय सिनेमा ने अपना एक अलग स्थान बनाया है। इसके अलावा विश्व स्तर पर भारत की सकारात्मक छवि विकसित करने, भारतीय पर्यटन को बढ़ावा देने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

    उत्तराखण्ड में फिल्म पर्यटन को बढ़ावा देना और राज्य में फिल्म उद्योग के माध्यम से अधिकाधिक रोजगार के अवसर उत्पन्न कराना हमारी प्राथमिकता में है। वल्र्ड सिनेमा भी उत्तराखण्ड से अछूता नहीं रहा है, ब्रैड पिट की फ़िल्म “सेवन इयर्स इन तिब्बत” में हिमालय के देहरादून में एक युद्धबंदी शिविर को दर्शाया गया था।

    फ़िल्म देवभूमि, जिसे उत्तराखंड के शानदार पहाड़ी स्थानों पर फिल्माया गया था, एक 65 वर्षीय व्यक्ति की यात्रा का वर्णन करती है जो इंग्लैंड में चार दशक बिताने के बाद गढ़वाल में अपने पैतृक गांव लौटने का फैसला करता है। इसमें विक्टर बैनर्जी का अभिनय शानदार था, यह फ़िल्म टोरंटो फ़िल्म फेस्टिवल के लिए भी सेलेक्ट हुई थी।

    अभी हाल ही में राष्ट्रीय पुरस्कारों में उत्तराखण्ड की फ़िल्म पाताल-टी ने गैर-फीचर श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ सिनेमैटोग्राफी के लिए 69वां राष्ट्रीय पुरस्कार जीता। यह फ़िल्म अनेकों फ़िल्म फ़ेस्टिवल्स में पार्टिसिपेट कर चुकी है। आज यहाँ अनेकों इंटरनेशनल प्रोजेक्ट जैसे बपजंकमस जैसी वेब सीरिज़ भी शूट हो रही हैं।

    हमें प्रसन्नता है कि उत्तराखंड की बहुत सारी हस्तियाँ देश-विदेश में विभिन्न क्षेत्रों में अभिनव काम करते हुए उत्तराखंड का नाम रोशन कर रहे हैं। हमारे लिए वे सभी उत्तराखंड के ब्रांड एंबेसडर हैं। निश्चित रूप से अपनी इन हस्तियों को हमारे द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
    इसके साथ ही ये सभी प्रतिभाएं उत्तराखंड को आगे बढ़ाने में किस प्रकार सहयोग कर सकें, इस दिशा में ठोस प्रयास किए जाने जरूरी हैं।

    वास्तव में फिल्मों की शूटिंग के लिए उत्तराखंड एक अनूकूल जगह है। शूटिंग के लिए देवभूमि का कॉर्बेट नेशनल पार्क, ऋषिकेश, रानीखेत, नैनीताल, अल्मोड़ा और मसूरी के पर्यटक स्थल आकर्षण के केंद्र हैं। जबकि बड़े पर्दे पर उत्तराखंड की वादियों की सुंदरता दर्शकों को अलग अनुभव देती है। मुझे विश्वास है कि उत्तराखंड फिल्म शूटिंग के लिए बहुत जल्द दुनिया का पसंदीदा डेस्टीनेशन बन जाएगा।

    मुझे विश्वास है कि वैश्विक स्तर पर श्री अनुपम शर्मा जैसे प्रतिभाओं के आगे आने से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखण्ड की पहचान बनेगी।

    अंत में मैं, आप सभी को इस कार्यक्रम में उपस्थित होने के लिए धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ, और आशा करता हूँ कि आज जो फिल्म आपने देखी, वह आपको जरूर पसंद आई होगी।
    जय हिन्द।