Close

    06-03-2024 : अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन में माननीय राज्यपाल महोदय का अभिभाषण

    प्रकाशित तिथि: मार्च 6, 2024

    जय हिन्द!

    देव संस्कृति विश्वविद्यालय में आयोजित हो रहे “अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन” के शुभ अवसर पर आप सभी के बीच पधार कर अत्यंत प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है। मैं, इस अवसर पर देव संस्कृति विश्वविद्यालय परिवार एवं सभी उपस्थित अतिथियों का सप्रेम अभिवादन करता हूँ।

    देव भूमि उत्तराखंड की अविरल माँ गंगा की गोद, देवात्मा हिमालय की दिव्य छाया, सप्तऋषियों की तपोभूमि, तीर्थनगरी, चारों धामों के प्रवेश द्वार-हरिद्वार में स्थित देव संस्कृति विश्वविद्यालय में, देववाणी संस्कृत पर आयोजित इस “अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन” का आयोजन अत्यंत ही सुखद संयोग है।

    साथियों,

    यह बहुत ही सराहनीय है कि देववाणी संस्कृत के दिव्य मंत्र, प्रार्थना एवं श्लोक, गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार, देव संस्कृति विश्वविद्यालय एवं विश्व भर में फैले 5000 से ज्यादा गायत्री संस्थानों की दैनिक दिनचर्या का अभिन्न अंग हैं।

    माँ गायत्री की प्रार्थना का पवित्र मंत्र ‘‘गायत्री-मंत्र’’ हो अथवा यज्ञ, दीपयज्ञ या संस्कारों में प्रयुक्त होने वाले कर्मकांड के मंत्र, सच्चे अर्थों में पूज्य गुरुदेव ने विश्व मानवता को ऋषि संस्कृति की इस देववाणी से जोड़ कर देव संस्कृति से जोड़ने का उल्लेखनीय कार्य किया है।

    हम सब जानते हैं कि देवों की वाणी संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा है, इसके व्याकरण एवं वर्णमाला की सुस्पष्टता एवं इनमें निहित वैज्ञानिकता इस भाषा को श्रेष्ठतम सिद्ध करते हैं। मानवीय सभ्यता के आदि श्रोत को जानने के लिए संस्कृत भाषा का अत्यधिक महत्व है।

    साथियों,

    मैं मानता हूँ कि संस्कृत भाषा केवल स्वविकसित भाषा नहीं बल्कि संस्कारित भाषा है इसीलिए इसका नाम संस्कृत है। देव संस्कृति विश्वविद्यालय में संस्कृत भाषा पर चर्चा, यह अपने आप में सुखद संयोग है। देव वाणी अन्य भाषाओं की तरह केवल अभिव्यक्ति का साधन मात्र ही नहीं है, बल्कि वह मनुष्य एवं मनुष्यता के समग्र विकास की कुंजी भी है।

    देववाणी संस्कृत में रचित विश्व के प्राचीनतम ग्रन्थ वैश्विक ज्ञान कोश की अमूल्य निधि है। यह खुशी की बात है कि पुरातन ज्ञान को नूतन स्वरूप में अध्ययन करने हेतु, देववाणी संस्कृत को सीखने की वैश्विक स्तर पर अभिरुचि वर्तमान में तेजी से बढ़ रही है।
    नालंदा एवं तक्षशिला सरीखे विश्वविद्यालयों का पुनर्जीवन करने, विश्व के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक पुनरोत्थान करने का संस्कृति विश्वविद्यालय का संकल्प बहुत ही सराहनीय है।

    संस्कृति विश्वविद्यालय की जीवनशैली, जीवनचर्या एवं गुरुकुल जैसे आध्यात्मिक वातावरण में विश्व के सबसे युवा देश की युवा पीढ़ी को मूल्य परक शिक्षा के साथ ही जीवन विद्या का जो अमूल्य शिक्षण मिल रहा है, यह विश्व मानवता की बहुत बड़ी सेवा है।

    संस्कृत भाषा की वैज्ञानिक संरचना इसे वर्तमान तकनीकी युग में भी अत्यंत प्रासंगिक बनाती है। अब बात सिर्फ कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के नूतन आयामों में संस्कृत भाषा की प्रासंगिकता मात्र का ही नहीं है वरन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस युग में नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग एवं अन्य संबद्ध तकनीकी में भी हो रहे शोध कार्य देववाणी की महत्ता को स्थापित करते हैं।

    यह अत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि देव संस्कृति विश्वविद्यालय में देव संस्कृति है, देववाणी संस्कृत है, दिव्य संस्कार हैं तो साथ ही वर्तमान की सबसे प्रासंगिक तकनीक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का केंद्र भी है। मुझे विश्वास है कि इस केंद्र के माध्यम से वर्तमान में एवं आने वाले भविष्य में होने वाले शोध कार्य, समस्त विश्व को दिशा देने का महत्वपूर्ण कार्य करेंगे।

    साथियों,

    मैं मानता हूँ कि भारत की प्राचीनतम भाषा संस्कृत में भारत का सर्वस्व समाया हुआ है। देश के गौरवमय अतीत को हम संस्कृत के द्वारा ही जान सकते हैं। संस्कृत भाषा का शब्द भण्डार अथाह है। यह भारत ही नहीं अपितु विश्व की समृद्ध एवं सम्पन्न भाषा है। आज प्रत्येक भारतवासी को विशेषकर भावी पीढ़ी को संस्कृत का ज्ञान होना बहुत ही आवश्यक है, ताकि वह अपनी विरासत को भली-भांति समझ सकें।

    भारतीय ज्ञान-विज्ञान परंपरा संस्कृत भाषा में है। चाणक्य की राजनीति, भास्कराचार्य का गणित, चरक सुश्रुत का आयुर्वेद, पतंजली का योग, पराशर मुनि का कृषिशास्त्र, भरत मुनि का नाट्यशास्त्र ऐसे अनेक विषय संस्कृत में विकसित हुए। इसी ज्ञान-विज्ञान के बल पर हमारे पूर्वजों ने कभी देश समृद्ध किया था।

    संस्कृत के मंत्रों का उच्चारण करते समय मानव स्वास्थ्य पर विशेष प्रभाव पड़ता है। मंत्रोच्चार के समय वाइब्रेशन से शरीर के चक्र जागृत होते हैं और मानव का स्वास्थ्य बेहतर रहता है। संस्कृत में सबसे महत्वपूर्ण शब्द ‘ऊँ’ अस्तित्व की आवाज, आंतरिक चेतना एवं ब्रह्माण्ड का स्वर है।

    देववाणी संस्कृत भाषा ने अपनी विशिष्ट वैज्ञानिकता के कारण भारतीय विरासत को सहेजकर रखने में अपना अहम योगदान दिया है। यह ऐसी विलक्षण भाषा है जो श्रुति एवं स्मृति में सदैव अविस्मरणीय है। इसीलिए देववाणी संस्कृत की महत्ता को सम्पूर्ण विश्व ने स्वीकारा है।

    संस्कृत परिष्कृत, संस्कारित एवं वैज्ञानिक भाषा है। वेद, पुराण, उपनिषद, आरण्यक एवं आर्ष ग्रन्थों में निहित जन हित का दिव्य ज्ञान इसी भाषा में है। इस भाषा का अपना एक वैज्ञानिक महत्व है। नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार संस्कृत एक सम्पूर्ण वैज्ञानिक भाषा है, इसलिए मेरा मानना है कि संस्कृत को भारतीय शिक्षा में शामिल करना आवश्यक है।

    साथियों,

    संस्कृत भारत को एकसूत्र में जोड़ने वाली भाषा है। शंकराचार्य जी ने देश की चारों दिशाओं में मठ स्थापित किए, दो बार देश की परिक्रमा की। उन्होंने भी ज्ञान, संस्कृति और अध्यात्म के प्रसार के लिए संस्कृत को ही साधन बनाया।

    मैं यहां उपस्थित जनसमुदाय से अपील करता हूँ कि हम सभी, अपनी भाषा, ज्ञान परम्परा, गौरवशाली इतिहास एवं अपनी उपलब्धियों पर गर्व का अनुभव करें, और इसी भाव के साथ, राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए सहभागी बनें।

    प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के विजन “विकास के साथ-साथ विरासत भी” इसके लिए हमें देववाणी संस्कृत के संवर्धन एवं इसे जन-जन की भाषा बनाने की पहल करनी होगी, मुझे पूर्ण विश्वास है कि देववाणी संस्कृत के माध्यम से देश, पुनः भारतीय ज्ञान परम्परा से जुड़कर विश्व के समक्ष अपनी प्रतिष्ठा पुनस्र्थापित करेगा। और “वर्ष 2047 के विकसित भारत“ संकल्पना को साकार करने में संस्कृत भाषा की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।

    सैकड़ों वर्षों के कठिन संघर्ष और दृढ़ संकल्प से श्री राम मंदिर की पुनस्र्थापना हुई है। जोकि सभी भारतवासियों के लिए अत्यंत गौरव का विषय है। भारत पुनः “विश्व गुरु“ बनकर परम वैभव की प्राप्ति करें, देश में आदर्श राम राज्य स्थापित हो, इस संकल्प को पूरा करने के लिए हम सभी पूर्ण मनोयोग और सामथ्र्य से कार्य करेंगे ऐसा मेरा विश्वास है।

    आप सभी को सम्मेलन की सार्थकता और सफलता के लिए असीम शुभकामनाएं।
    जय हिंद!