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    05-12-2024 : कुरुक्षेत्र में आयोजित गीता महोत्सव-2024 में माननीय राज्यपाल महोदय का उद्बोधन

    प्रकाशित तिथि: दिसम्बर 5, 2024

    जय हिन्द!

    धर्म और ज्ञान की भूमि कुरुक्षेत्र की पावन धरा को स्पर्श करने मात्र से ही मेरी आत्मा को तृप्ति की अनुभूति हो रही है, जहां स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का अमर संदेश दिया था।

    मैं अपने आप को बहुत ही सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे इस पवित्र भूमि में आने का सौभाग्य मिला है। मैं आज इस सुअवसर पर यहां उपस्थित प्रबुद्ध जनों को हृदय तल से सादर प्रणाम करता हूँ।

    गीता का यह महा उत्सव न केवल कुरुक्षेत्र की इस ऐतिहासिक धरा को, बल्कि भारत की कल्याणकारी संस्कृति से भी सम्पूर्ण विश्व को रूबरू कराता है।

    कुरुक्षेत्र की यह धरती हमें यह याद दिलाती है कि जब भी जीवन में संदेह और उत्कंठा की स्थिति हो, तब गीता ही है, जिसका ज्ञान हमें सही राह दिखा सकता है।

    भगवद् गीता केवल एक ग्रन्थ नहीं, बल्कि यह सम्पूर्ण जीवन का सार है। यह ग्रंथ समस्त मानव जाति को कर्म, धर्म, और जीवन के कर्तव्यों का बोध कराते हुए सही राह पर चलने की सीख देता है।

    ‘‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’’ गीता का यह संदेश हमें बताता है कि हम कर्म करने में स्वतंत्र हैं, लेकिन फल की चिंता किए बिना अपने धर्म का पालन करें। ये विचार हमें अपने जीवन को सार्थक बनाने के साथ ही समाज और राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए प्रेरित करते हैं।

    भगवद् गीता का सार यह है कि जीवन में मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन निष्काम भाव से करते रहना चाहिए, यानी कर्म करते समय फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि हर व्यक्ति का धर्म और कर्म निर्धारित होता है, और उसे बिना स्वार्थ के, ईश्वर की भक्ति और समर्पण के साथ कर्म करते रहना चाहिए।

    गीता में कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग के तीन मार्ग बताए गए हैं, जिनके द्वारा मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि सच्चा योगी वही है, जो अपने मन और इंद्रियों को नियंत्रित करता है, समत्व भाव रखता है, और सभी जीवों के प्रति दया, प्रेम और अहिंसा का भाव रखता है।

    गीता यह भी सिखाती है कि व्यक्ति को सांसारिक मोह, लोभ और अहंकार से दूर रहना चाहिए और सच्चे ज्ञान की ओर अग्रसर होना चाहिए। ईश्वर में विश्वास रखते हुए, अपना कर्म पूरी निष्ठा और लगन से करना ही जीवन का सबसे बड़ा धर्म है।

    वर्तमान समय में, जहां दुनिया आज विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रही है, वहीं गीता का संदेश हमें शांति, सहिष्णुता और मानवता के मूल्यों को अपनाने का मार्ग दिखाता है।

    इस महोत्सव में होने वाला गीता का पाठ, सांस्कृतिक कार्यक्रम, विचार-विमर्श सत्र जैसी अन्य तमाम गतिविधियां भारत की संस्कृति, परंपरा और आध्यात्मिकता को दर्शाती हैं।

    गीता के इस महोत्सव में भारत सहित कई देशों के विद्वान प्रतिभाग कर, गीता पर विचार-विमर्श करते हैं। इस महोत्सव में भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से प्रेरित झांकियां और शोभायात्रा आयोजित की जाती है। यहां होने वाले सामूहिक गीता पाठ में बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं।

    इस महोत्सव में स्थानीय कारीगरों और शिल्पकारों द्वारा बनाए गए उत्पादों की प्रदर्शनी लगती है। योग और ध्यान शिविरों का आयोजन होता है। हरियाणा सरकार और कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के प्रयासों से इसे अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव के रूप में भव्य स्वरूप दिया जा रहा है, जो हमारी समृद्ध संस्कृति और विरासत को आगे बढ़ाने के लिए सराहनीय पहल है।

    देश के यशस्वी प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी ने इस देश के स्व को जागृत करने का काम किया है। और वे इस देश की महान संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए निरंतर भरसक प्रयास कर रहे हैं।

    श्रीमद् भगवत गीता से प्रेरित प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने गीता को पूरे विश्व की धरोहर बताया है। उन्होंने इस बात को सिद्ध किया है कि यदि गीता को अपना मार्गदर्शक बनाया जाए तो सबका साथ, सबका विकास के भाव से, समग्र विकास के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

    श्रीमद्भगवद गीता सही अर्थों में एक वैश्विक ग्रंथ है।अनेक भाषाओं में गीता के कई अनुवाद हो चुके हैं। यह भारतवर्ष का सर्वाधिक प्रसिद्ध और लोकप्रिय ग्रंथ है। जितनी टीकाएं गीता पर लिखी गई हैं, उतनी शायद ही किसी अन्य पुस्तक पर लिखी गई होंगी। जिस तरह योग, पूरे विश्व समुदाय को भारत की सौगात है, उसी प्रकार योग-शास्त्र गीता भी, पूरी मानवता को भारत माता का आध्यात्मिक उपहार है। गीता पूरी मानवता के लिए एक जीवन-संहिता है और आध्यात्मिक दीप-स्तंभ भी है।

    गीता हमें कर्म करने और फल की चिंता नहीं करना सिखाती है। निःस्वार्थ कर्म करना ही जीवन का सही मार्ग है। कर्म करने से ही जीवन सार्थक हो जाता है, सुख-दुःख में समान रहना, लाभ-हानि को समान भाव से स्वीकार करना, मान-अपमान से विचलित न होना और सभी परिस्थितियों में संतुलन बनाए रखना, यही गीता का महान संदेश है।

    श्रीमद्भगवद गीता विपरीत परिस्थितियों में उत्साहवर्धन और निराशा में आशा का संचार करने वाला ग्रंथ है। यह जीवन-निर्माण करने वाला ग्रंथ है। मैं अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के आयोजकों से गीता के संदेश के प्रचार-प्रसार के लिए अनवरत प्रयास करने का विनम्र अनुरोध करता हूँ। मेरा मानना है कि गीता के उपदेश को आचरण में ढालना अधिक महत्वपूर्ण है।

    इस ऐतिहासिक भूमि पर 5 हजार वर्षों से भी पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करने और उनकी शंकाओं का समाधान करने के लिए गीता का उपदेश दिया था, लेकिन वो युद्ध पृथ्वी पर धर्म की स्थापना और पूरे विश्व के कल्याण के लिए था। मेरा मानना है कि व्यक्ति, देश और पूरे विश्व की सभी समस्याओं का समाधान गीता के उपदेश में है।

    द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, दुनिया ने इतनी पीड़ा कभी नहीं देखी है जो आज देख रही है। आज दुनिया में दो बड़े टकराव चल रहे हैं, हम ज्वालामुखी के ढेर पर बैठे हैं। गीता आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गई है। ऐसे में प्रधानमंत्री जी ने गीता से मार्गदर्शन लेते हुए कहा, संवाद और कूटनीति के जरिए युद्ध टालने का हर संभव प्रयास करना चाहिए।

    महाभारत का युद्ध न हो, इसके लिए भगवान श्रीकृष्ण ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। लेकिन एक बार जब यह अपरिहार्य हो गया तो भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो ज्ञान दिया, उस पर आज हमें चिंतन और मंथन करने की आवश्यकता है।

    जब 140 करोड़ भारतवासी, कोविड की चुनौती का सामना कर रहे थे, उस समय भी भारत ने ‘‘वसुधैव कुटुंबकम’’ के आदर्श को सामने रखते हुए दुनिया के 100 से अधिक देशों को वैक्सीन भेजकर मदद की। यह वसुधैव कुटुंबकम का ही आदर्श है कि प्रधानमंत्री जी ने अफ्रीकन यूनियन को ळ-20 का सदस्य बनवाया। गीता भी तो कहती है कि समावेशी रहिए।

    गीता एक अद्भुत ग्रन्थ है, धार्मिक ग्रन्थ है, नैतिक ग्रन्थ है, जीवन दर्शन का ग्रन्थ है! हर समस्या का समाधान देता है अपने को अंदर से मजबूती देता है। यह हमें संकट के समय भी सही निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करता है। यह हमारे अंदर कर्म ही पूजा है की भावना पैदा करता है, यह हमें उत्कृष्टता और आध्यात्मिकता के साथ, केवल अपने लिए ही नहीं बल्कि सभी के हित के लिए कर्म करने की प्रेरणा देता है।

    गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में प्रेरणा का स्रोत है। यह मानव को सत्य, धर्म और कर्म का मार्ग बताता है। कैसे महाभारत के युद्ध क्षेत्र में अर्जुन के संदेहों को दूर करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश दिया था। यह उपदेश केवल उस समय के लिए ही नहीं छोड़ा गया था, बल्कि आज भी यह जीवन की जटिल परिस्थितियों में साहस के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

    मुझे बेहद खुशी है कि मुझे आज कुरुक्षेत्र की इस पावन धरती पर आने का सौभाग्य मिला है। अंत में, मैं सभी आयोजकों, प्रतिभागियों, और दर्शकों को इस दिव्य और भव्य आयोजन के लिए बधाई देता हूँ।

    मैं हरियाणा सरकार और आयोजकों को इस भव्य महोत्सव के सफल आयोजन के लिए बधाई देता हूँ। आप सभी से भारत की इस सांस्कृतिक विरासत को विश्व पटल पर और अधिक सामथ्र्य से प्रस्तुत करने का आह्वान करता हूँ।

    धर्म की जय हो,
    अधर्म का नाश हो,
    प्राणियों में सद्भावना हो,
    विश्व का कल्याण हो।

    इस मंगल कामना के साथ अपनी वाणी को विराम देता हूँ।

    जय हिन्द!