03-03-2024 : ‘वसन्तोत्सव-2024’ के समापन समारोह में माननीय राज्यपाल महोदय का संबोधन
(दिनांकः 03 मार्च, 2024)
जय हिन्द!
‘वसंतोत्सव’ के समापन समारोह के अवसर पर राजभवन के प्रांगण में उपस्थित आप सभी महानुभाव का, मैं गदगद हृदय से स्वागत और अभिनंदन करता हूँ।
इस तीन दिवसीय उत्सव/मेले में प्रतिभाग करने वाले सभी महानुभावों को बधाई और शुभकामनाएं देता हूँ। विशेष रूप से पुष्प प्रतियोगिता, चित्रकला प्रतियोगिता, उत्कृष्ट कार्य करने वाले किसानों और ऐसे ही सभी प्रतियोगिताओं के प्रतिभागी एवं विजेताओं को उनके उत्कृष्ट कार्यांें के लिए जिससे यह उत्सव, महा-उत्सव के रूप में तब्दील हो गया, मैं उन सभी को हार्दिक बधाई देते हुए आभार व्यक्त करता हूँ।
इन तीन दिनों में, मैंने अनुभव किया कि राजभवन में चारों ओर एक दिव्य, भव्य और उल्लास का वातावरण रहा। लोगों ने राजभवन आकर इस उत्सव को हर्षोल्लास और धूम धाम से मनाया, जो हम सब के लिए बहुत ही खुशी की बात है।
प्रतियोगिता के लिए आए हुए भिन्न-भिन्न प्रकार के फूल यहां की एक धरोहर बन गये हैं। मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि सभी लोगों को इस वसंत मेले (कौथिग) में सच-मुच ही आनंद, परमानंद की अनुभूति हुई होगी।
यहां जो रंग बिरंगे फूल खिले थे, निःसंदेह उनको इस स्तर तक पहुंचाने में बहुत से लोगों की लगन, प्रतिभा, और कड़ी मेहनत लगी होगी।
शायद आम लोगों को तो सभी फूलों में अंतर नजर नहीं आया होगा, लेकिन जो निर्णायक हैं, जो इन फूलों के पारखी हैं, उनकी नजरों ने हर फूल के पीछे की अथक मेहनत को पहचाना है, उत्कृष्टता को खोजा और जो उत्कृष्ट था उसे चुना है। ऐसे उत्कृष्ट प्रतिभागियों को मैं, हृदय तल से बधाई देता हूँ।
इसमें कोई शक नहीं है कि मेहनत तो सभी प्रतिभागियों ने की है, लेकिन उत्कृष्टता के लिए थोड़ी सी और अधिक मेहनत करनी होती है। मैं, ऐसे सभी प्रतिभागियों को एक नई सीख के साथ उत्कृष्ट बनने के लिए शुभकामनाएं देता हूँ।
फूलों को निहारने पर आपने महसूस किया होगा, इन्हंे अगर आप अंतर्मन से देख लें तो मन और आत्मा को एक अलग ही सुकून की अनुभूति होती है। ऐसी घाटी जहां दूर-दूर तक बस आपको रंग-बिरंगे फूल दिखाई दें, उत्तराखंड में एक ऐसी जगह है, जिसे ‘फूलों की घाटी’ कहते हैं।
अपने चमोली जिले में स्थित स्वर्ग सी खूबसूरत इस फूलों की घाटी को प्राकृतिक, खूबसूरती और जैविक विविधता की वजह से 2005 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया। ये न केवल भारत के लोगों को बल्कि दुनियाभर के पर्यटकों को आकर्षित करती है।
मेरी दिली इच्छा है कि फूलों से खिली-सजी इस जन्नत जैसी घाटी की तरह ही पूरे प्रदेश को फूलों की खेती करके आर्थिकी का जरिया बनाया जाय। प्रकृति ने तो हमे फूलों की घाटी का अनमोल उपहार दिया है, क्यूँ न हम प्रकृति से प्रेरणा लेते हुए उत्तराखण्ड को फूलों के प्रदेश के रूप में विकसित करें।
इस वसंतोत्सव और पुष्प प्रदर्शनी का औचित्य तभी सार्थक होगा जब उत्तराखण्ड की पहचान देव-भूमि, सैन्य-भूमि, सन्त-भूमि, योग-भूमि, तीर्थ-भूमि, पर्यटन-प्रदेश के साथ-साथ अब पुष्प-प्रदेश के रूप में भी हो जाए।
‘‘संकल्प से सिद्धि और फूलों से समृद्धि’’ का संकल्प, जो फूलों की भूमि में राजभवन से लिया गया है, आइए! इसे धरातल पर उतारने के लिए हम सामूहिक प्रयास करें।
वृहद स्तर पर पुष्पोत्पादन करके राज्य में सुख, समृद्धि, लाने के साथ ही देवभूमि में देवमय वातावरण का निर्माण करें। उत्तराखण्ड के फूलों की खुशबू से प्रदेश की गरिमा, महिमा, यश एवं कीर्ति पूरे भारत में फैले, दुनिया में फैले। उत्तराखण्ड फूलों का प्रदेश बने, प्रदेश फूलों की घाटी से फूलों की राजधानी बनें, इसके लिए मिशन मोड पर कार्य करें।
आइए! प्रदेश में फूलों की उत्पादकता बढ़ाएं। आज के दौर में फूलों का मार्केट तो बहुत बड़ा है। मदिरों, तीर्थ स्थलों, पर्वांें, त्यौहारों, मेलों और संस्कृति से जुड़े आयोजनों में आज फूलों की बहुत बड़ी डिमांड है। इसलिए बड़ा सोचें, हम कहां-कहां तक अपनी आपूर्ति पहुंचा सकते हैं? इसके लिए सप्लाई चेन का विकास करें और टेक्नोलॉजी को उत्पादकता से जोड़ें।
यह वसंतोत्सव उत्तराखण्ड की लोक-शक्ति के जागरण का, युवा-शक्ति के सपनों की पूर्ति का, मातृ-शक्ति के सपनों के उत्तराखण्ड का, नारी-शक्ति की खुशहाली का पर्व बनें, ऐसा मेरा विश्वास है।
यह वसंतोत्सव खेती की हरियाली का, उत्तराखण्ड के अनाजों को एक नयी पहचान का, जैविक खेती के संकल्प का, उत्तराखण्ड के अनाजों को विश्वपटल पर पहचान का आधार बने। मैं इसकी कामना करता हूँ।
मेरी हार्दिक इच्छा है कि वसंत में जो संत समाहित है उस संत प्रकृति का जागरण हो, उत्तराखण्ड के गांव-गांव में स्वरोजगार हो, गांव-गांव में नवाचार हो, गांव-गांव में कृषि का प्रसार हो, हमारे युवाओं, किसानों और मातृशक्ति के सपने साकार हों।
प्रधानमंत्री जी की भावना के अनुरूप उत्तराखण्ड के उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए हम कर्मयोगी बनें। सभी धामों में, तीर्थस्थलों में, पर्यटन स्थलों में, उत्तराखण्ड के किसानों, कारीगरों, मेहनतकश लोगों द्वारा तैयार उत्पादों के विक्रय केन्द्रों की स्थापना हो, इसके लिए सार्थक प्रयास किए जाएं।
आइए! सभी मिलकर प्रयास करें कि कोदा ,झंगोरा, कौणी, चीना, कुटकी, चैलाई की उपज से एक बार फिर से पहाड़ के खेतों में हरियाली और खुशहाली लाएं।
उत्तराखण्ड की फसलें अमूल्य धरोहर के समान हंै, जिनका संरक्षण, संवर्धन एवं आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित रखना हमारा कर्तव्य है। हम प्रदेश में जैविक खेती के साथ-साथ एक कदम और आगे बढ़ते हुए प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दें, जिससे लोगों को स्वास्थ्यवर्धक भोजन मिल सकें।
हमें उत्पादों को बाजार में उपलब्ध कराना है। हमें पहाड़ के किसानों की आय को बढ़ाना है। स्वास्थ्यवर्धक भोजन बिस्कुट, पैक्ड फूड, बेवीफूड, जैम, जैली, अचार फल आधारित पेय आदि बनाएं जाएं तो इससे प्रदेश एवं किसान दोनों को लाभ मिलेगा।
पहाड़ों में कुटीर उद्योग स्थापित किए जाएं। इसके लिए ग्रामीणों को, किसानों को दक्षता, कौशल आधारित प्रशिक्षण दिये जाएं। बे-मौसमी सब्जी के उत्पादन को बढ़ाएं। औद्यानिक फसलों को बढाएं। कीवी, आडू, अनार, अखरोट, खुबानी एवं नीबू जैसे फल उद्यानों को बढ़ाएं।
फल, सब्जी, जड़ी-बूटी, मशरूम उत्पादन, मधुमक्खी पालन, पुष्प उत्पादन का कार्य बड़े स्तर पर करें। इसके साथ ही हम किसानों के जीवन स्तर और आर्थिक प्रगति के बारे में अवश्य चिंतन करें।
वसंत का यह उत्सव जो जन-जन का उत्सव बन गया है, इसमें अहम योगदान दाताओं को, विशेषकर कृषि एवं उद्यान विभाग को मैं, इस सुन्दर आयोजन के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ।
जिन प्रतिभागियों ने कठोर परिश्रम से प्रतियोगिताओं में भाग लिया, प्रदर्शनियां लगायीं, कार्यक्रमों में भागीदारी की, आप सभी को आपके हुनर, आपके परिश्रम के लिए दिल की गहराई से धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। मैं आप सभी की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना करता हूँ।
मैं राजभवन के इस वसंतोत्सव में दूर-दराज से आए हुए सभी मेहनतकश किसानों, स्वयं सहायता समूहों, सरकारी विभागों और विशेष रूप से प्रेस, मीडिया के सभी प्रतिनिधियों को इस उत्सव को प्रदेश का एक दिव्य, भव्य, नव्य उत्सव बनाने के लिए धन्यवाद देते हुए आभार व्यक्त करता हूँ।
आपका जीवन इस उत्सव के फूलों की तरह खिल-खिलाता रहे, मैं सभी के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ।
जय हिंद!