02-11-2025:पतंजलि विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के अवसर पर माननीय राज्यपाल महोदय का उद्बोधन
जय हिन्द!
यह हमारा परम सौभाग्य है कि आज के इस सुअवसर पर हमें भारत की माननीय राष्ट्रपति महोदया का सानिध्य प्राप्त हो रहा है। इस पावन धरती पर हम सभी देवभूमिवासी आपका हृदय से अभिनंदन और स्वागत करते हैं। विद्या के इस पावन मंदिर पतंजलि विश्वविद्यालय में आपकी गरिमामयी उपस्थिति से हम सभी प्रदेशवासी अभिभूत हैं।
हिमालय की गोद में बसा देवभूमि उत्तराखण्ड केवल एक राज्य नहीं, बल्कि योग, आयुर्वेद और अध्यात्म का प्राण-केंद्र है। इस पवित्र धरती से निकली योग और आयुर्वेद की परंपरा ने न केवल भारत को, बल्कि समूचे विश्व को स्वास्थ्य, संतुलन और सद्भाव का संदेश दिया है। उत्तराखण्ड की यह ऋषि-परंपरा आज भी हमें यह प्रेरणा देती है कि ज्ञान का सर्वाेच्च उद्देश्य केवल आत्म विकास नहीं, बल्कि विश्व कल्याण है।
मैं इस समारोह में उपाधि प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ। आशा है कि हमारे स्वास्थ्य योद्धा दीक्षांत समारोह के बाद आने वाली चुनौतियों का सामना सफलतापूर्वक करेंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि आज इस दीक्षांत समारोह में डिग्रियाँ लेने वाले विद्यार्थी अपने राष्ट्र, प्रदेश और समाज की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे, और आप अपनी शिक्षा, प्रतिभा एवं प्रशिक्षण का उपयोग मानव कल्याण के लिए करेंगे।
योग और आयुर्वेद जैसी महान प्राचीन भारतीय विधाओं को वैश्विक मंच पर लोकप्रिय बनाने के लिए उल्लेखनीय योगदान देने वाले पतंजलि विश्वविद्यालय के इस दीक्षांत समारोह में शामिल होकर मैं गौरव की अनुभूति कर रहा हूँ। स्वामी रामदेव जी और आचार्य बालकृष्ण जी ने योग एवं आयुर्वेद को दुनियाभर में प्रसारित कर नई पहचान दी है, और स्वदेशी के प्रचार-प्रसार में विगत 25 वर्षों में अभूतपूर्व योगदान दिया है।
हमारे ऋषि-मुनियों ने जो ज्ञान अर्जित किया, वह केवल हमारे लिए नहीं, बल्कि पूरे ब्रह्माण्ड के कल्याण के लिए है। आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने संयुक्त राष्ट्र संघ में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को स्वीकृति दिलाकर योग के विज्ञान पर किए गए हजारों वर्षों के काम को वैश्विक मंच प्रदान किया। विगत कुछ वर्षों में योग और आयुर्वेद के माध्यम से स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत बड़ी क्रांति आई है। आज करोड़ों लोग इनके माध्यम से स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं।
मेरा मानना है कि पूरे ब्रह्माण्ड का कल्याण तभी संभव है जब भारत की पुरातन वैदिक संस्कृति का पुनरुत्थान होगा।
हम जानते हैं कि योग, आयुर्वेद, धर्म, दर्शन और अध्यात्म भारतीय संस्कृति की मूल चेतना के आधार हैं। मुझे यह देखकर प्रसन्नता होती है कि आज बड़ी संख्या में युवा संस्कृत भाषा, योग, आयुर्वेद, नैचुरोपैथी तथा प्राचीन भारतीय विधाओं को पढ़ने और सीखने के लिए उत्सुक हैं।
मेरा मानना है कि योग और आयुर्वेद के विद्यार्थी हमारी सभ्यता और संस्कृति के ब्राण्ड एम्बेसडर हैं। योग और आयुर्वेद कम लागत वाला, सरल, प्राकृतिक और शाश्वत ज्ञान का भंडार है। यह एक पूर्ण चिकित्सा विज्ञान है।
प्रिय विद्यार्थियों,
आपकी शिक्षा तभी सार्थक होगी जब उसका लाभ समाज तक पहुँचेगा। आप अपने कर्म, विनम्रता और सेवा भावना से यह सिद्ध करें कि भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा आज भी आधुनिक युग में सबसे प्रासंगिक है।
मुझे विश्वास है कि आप सभी विद्यार्थी आने वाले समय में विकसित भारत 2047 के स्वप्न को साकार करने में सेतु की भूमिका निभाएँगे। आने वाले वर्षों में आप विश्व स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिए अभिनव कार्य करेंगे, ऐसी अपेक्षा है। आप सभी को उज्ज्वल, प्रेरक और अनुकरणीय भविष्य की मंगलकामनाएँ!
इस आयोजन में माननीय राष्ट्रपति महोदया की गरिमामयी उपस्थिति से हमारे अंदर नई ऊर्जा और प्रेरणा का संचार हुआ है। आपके सानिध्य और मार्गदर्शन से हमारा मनोबल बढ़ा है। मैं पुनः देवभूमि उत्तराखण्ड के सभी नागरिकों की ओर से माननीय राष्ट्रपति महोदया का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
जय हिन्द!