02-06-2024 : राजभवन में आयोजित सांस्कृतिक संध्या के अवसर पर मा0 राज्यपाल महोदय का संबोधन।
जय हिन्द!
आज यहां पर विभिन्न सांस्कृतिक टीमों ने अपनी सुंदर नृत्य प्रस्तुतियों के माध्यम से उत्तराखंड का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया है, इसके लिए मैं सभी सांस्कृतिक टीमों को हृदय से बधाई देता हूँ।
हमारा देश समृद्ध संस्कृति और विरासत की भूमि है। हम सभी जानते हैं कि भारतीय संस्कृति दुनिया भर में सबसे पुरानी और सबसे अनोखी संस्कृतियों में से एक है। अपनी इस अद्भुत संस्कृति की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।
संस्कृति अपने लोगों को विशिष्ट रूप से पहचान देती है और उन्हें एक अर्थ देती है। विभिन्न परंपराएं, धर्म, मेले, त्योहार, लोक नृत्य, संगीत उन्हें बाकी लोगों से अलग करते हैं।
उत्तराखंड का समाज सांस्कृतिक रूप से एक रंगीन समाज है। यहां के लोगों की धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आकांक्षाएं विभिन्न मेलों और त्योहारों में अभिव्यक्त होती हैं। यह बहुत ही अच्छी बात है कि उत्तराखंड के निवासी अपनी संस्कृति पर गर्व करते हैं। और उसके संरक्षण एवं सवर्द्धन में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
उत्तराखण्ड की संस्कृति सबसे गहरी जड़ों वाली संस्कृतियों में से एक है। यहां की संस्कृति भारत में सबसे समृद्ध संस्कृति में से एक है, चाहे वह पारंपरिक पोशाक हो या सजावटी कला का रूप हो, वे विरासत, परंपराओं और अनुष्ठानों में साफ झलकती है।
यहां की संस्कृति जितनी समृद्ध है, उतने ही मन को मोहने वाले यहां के लोकगीत-नृत्य भी हैं। यहां की लोक विरासत का विशाल भंडार है, जो अपने आप में विभिन्न रंग समेटे हुए है। जिसकी छाप यहां के लोकगीत-नृत्यों में भी स्पष्ट रूप से दिखती है।
नृत्य एक ऐसी सार्वभौम कला है, जो मानव जीवन के साथ ही अस्तित्व में आ गई थी। नृत्य मानवीय अभिव्यक्ति का रसमय प्रदर्शन है, पत्थर जैसे कठोर व्यक्ति को भी मोम जैसे पिघलाने की क्षमता इस कला में है। यही इसका मनोवैज्ञानिक पक्ष है।
नृत्य मनोरंजक तो है ही, धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष का साधन भी है। अगर ऐसा न होता तो कला की यह धारा पुराणों व श्रुतियों से होती हुई धरोहर के रूप में हम तक प्रवाहित न होती।
यह कला देव, दानव, मनुष्य एवं पशु-पक्षियों को समान रूप से प्रिय है। इसीलिए भगवान शंकर को नटराज कहा गया। उनका पंचकृत्य से संबंधित नृत्य सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार का प्रतीक माना जाता है।
भगवान विष्णु के अवतारों में सर्वश्रेष्ठ एवं परिपूर्ण श्रीकृष्ण नृत्यावतार ही हैं। इसी कारण वे नटवर कहलाए।
उत्तराखंड के लोक नृत्यों में एक अद्भुत सम्मोहन है, लोकगीत-नृत्यों की अपनी विशिष्ट पहचान है। लोकजीवन की अनुभूति है। उत्तराखंडी लोकगीत-नृत्य महज मनोरंजन का ही जरिया नहीं हैं, बल्कि वह लोकजीवन के अच्छे-बुरे अनुभवों से सीख लेने की प्रेरणा भी देते हैं।
हमें लोक गीत संगीत, लोकनृत्य अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों के जरिए अपनी विरासत और पहचान को जीवित रखना होगा, मैं सभी टीमों को बधाई देता हूँ कि आप अपनी संस्कृति को जीवित रखने के महत्वपूर्ण मिशन में लगे हैं।
अंत में इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम का हिस्सा बने उपस्थित सभी लोगों को शुभकामनाएं देता हूँ।
जय हिन्द!