28-11-2025 : ‘‘विमर्श’’ कार्यक्रम में ‘‘उत्तराखण्ड की सुरक्षा एवं पर्यावरण संबंधी चुनौतियां और पर्यटन की संभावनाएं’’ विषय पर माननीय राज्यपाल महोदय का संबोधन
जय हिन्द!
मुझे हार्दिक प्रसन्नता है कि आज भगवान शिव के त्रिशूल के तीन शूल- जो इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसकी शक्ति की भांति “उत्तराखण्ड की सुरक्षा एवं पर्यावरण संबंधी चुनौतियां और पर्यटन की संभावनाएं” तीन महत्वपूर्ण विषयों पर विमर्श हो रहा है।
आज हम ऐसे वैश्विक परिवेश में खड़े हैं, जहाँ दुनिया निरंतर बदल रही है, युद्ध की परिभाषाएं बदल रही हैं, खतरे पहले से अधिक जटिल और बहुआयामी हो चुके हैं। ऐसे समय में भारत के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा केवल सेना की शक्ति का विषय नहीं, बल्कि सामूहिक जागरूकता, तकनीकी क्षमता, आंतरिक एकता, मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और राष्ट्र प्रथम के भाव का समन्वित रूप बन चुकी है।
हमारे पड़ोसी देशों के साथ बदलते संबंध हों, वैश्विक शक्तियों की बदलती नीतियाँ हों, सीमाई चुनौतियाँ हों या साइबर युद्ध जैसे अदृश्य खतरे, हर परिस्थिति हमें यह स्मरण कराती है कि “सुरक्षित भारत” ही “विकसित भारत” का आधार है। इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा हमारे वर्तमान की ढाल और हमारे भविष्य की नींव दोनों है, और इसी जागरूकता के साथ हमें आगे बढ़ना है।
साथियों,
आज इस नए जमाने में युद्ध के तरीके बदल चुके हैं। दुश्मन अब केवल गोलियों और तोपों से नहीं आता, वह आता है साइबर अटैक में, डेटा चोरी में, ड्रोन की उड़ान में, मीडिया के झूठे नैरेटिव में, आर्थिक दबावों में, मनोवैज्ञानिक युद्ध में, प्रॉक्सी आतंकवाद में, और हमारी एकता पर वार करने वाले कुटिल प्रयासों में। सॉवरिन्टी, टेरिटरी, एरोस्पेस, साइबर- ये सिर्फ शब्द नहीं, यह आज की युद्धनीति के नए मोर्चे हैं।
मेरा मानना है- देश की रक्षा केवल सैनिक नहीं करता, सरकार की नीति, कूटनीति, जनता का दृष्टिकोण, सूचना की शक्ति, अर्थव्यवस्था की मजबूती, सेना की क्षमता, टेक्नोलॉजी का स्तर और मीडिया की राष्ट्रवादी जिम्मेदारी- यह सब मिलकर एक अजेय राष्ट्र बनाते हैं।
मैंने अपने जीवन के चालीस वर्ष भारत माता की सेवा में दिए हैं। दस वर्ष चीन सीमा पर, दस वर्ष कश्मीर में, छह बड़े सैन्य अभियानों का नेतृत्व, दस वर्षों तक आर्मी मुख्यालय में रणनीतिक निर्णयों का अनुभव- और दो बार पाकिस्तान, आठ बार चीन का दौरा किया। मैं इन दोनों देशों की मानसिकता, उनकी चालबाजियों और उनकी कुटिल नीतियों को भली-भांति जानता हूँ। चीन और पाकिस्तान- दोनों हमारे लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष, दोनों तरह के खतरे बने हुए हैं।
चीन आज इंडायरेक्ट वॉर, प्रॉक्सी वॉर, मीडिया वॉर और साइकोलॉजिकल वॉर में लगा है। वह अपने विस्तारवादी एजेंडे के लिए नए-नए रास्ते खोज रहा है। पाकिस्तान चीन की गोद में बैठा है, चीन-पाक आर्थिक गलियारा सीधे-सीधे भारत के हितों को चोट करता है। बांग्लादेश, नेपाल और अन्य पड़ोसी देशों में अस्थिरता भी हमारे लिए उतनी ही बड़ी चुनौती है।
वर्तमान समय में हमारे देश के चीन, पाक और बांग्लादेश से संबंध बहुत संवेदनशील मोड़ पर हैं। हमें हर हाल में अपना एक्साई चीन वापस लेना होगा, अपना पाक अधिकृत कश्मीर वापस ले कर रहेंगे, ये प्रण लेना होगा। हमें भारत के समुद्री मार्गों को सुरक्षित करना होगा। हमें दक्षिण चीन सागर की गतिविधियों पर पैनी नजर रखनी होगी। यह वैश्विक भू-रणनीति का नया रणक्षेत्र बन चुका है।
मैं पूरे गर्व से कहता हूँ- 2014 के बाद देश की सुरक्षा नीति ने जो परिपक्वता और दृढ़ता दिखाई है, वह अभूतपूर्व है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर स्पष्ट “रेड लाइन” खींची है। बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर- पहाड़ों को चीरकर बन रही सुरंगें, सड़कों का विस्तार, नए एयरबेस, वाइब्रेंट विलेज- इन सबने दुश्मन को कड़ा संदेश दे दिया है कि भारत आज पहले जैसा भारत नहीं है। ये नया भारत है, हम किसी को छेड़ते नहीं है, लेकिन किसी ने छेड़ा तो छोड़ते नहीं है, घर में घुसकर मारते है।
सचेत रहिए! जो खतरे दिखते नहीं पर वे सबसे ज्यादा खतरनाक होते हैं, वह हैं आंतरिक सुरक्षा के खतरे। उनसे निपटने के लिए राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक को जागृत रहना होगा। आंतरिक सुरक्षा की यह लड़ाई सेना अकेली नहीं लड़ सकती। हर नागरिक, हर युवा, हर बुद्धिजीवी, हर पत्रकार और हर नेता को यह समझना होगा कि जब बात राष्ट्र की आती है, तब कोई मतभेद नहीं- केवल राष्ट्र प्रथम होता है।
हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि मुगलों और अंग्रेजों ने हमें केवल लूटा नहीं, बल्कि हमारी मानसिकता को गुलाम बनाया। आज हमें उसी गुलामी की मानसिकता को तोड़ना है। हमें अपनी विरासत पर गर्व करना है। हमें अपनी पहचान को मजबूत करना है। तिब्बत से कंधार तक, और कश्मीर से इंडोनेशिया तक। यह जो “ग्रेटर इंडिया” की सांस्कृतिक परिधि है, उसे फिर से हमारी चेतना में जागृत होना चाहिए। यह सोच, विचार और धारणा हर भारतीय के मन में पनपनी चाहिए।
साथियों,
हमारा यह प्रदेश उत्तराखण्ड, केवल भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि यह भारत की सामरिक रीढ़ है। यह वही भूमि है जिसने भारतीय सेना को सबसे अधिक वीर, निर्भीक, समर्पित सैनिक दिए हैं। उत्तराखण्ड की सीमाएं उस देश से लगती हैं जिसके विस्तारवादी इरादे किसी से छिपे नहीं। दुनिया में ऊँचे से ऊँचे पर्वत चाहे कितने भी मजबूती से खड़े हों, पर सुरक्षा तभी सुनिश्चित होती है जब उस पर तैनात सैनिक उतने ही दृढ़ता से खड़ा हो।
उत्तराखण्ड की सुरक्षा चुनौतियां बहु-आयामी हैं। यहाँ की संवेदनशील सीमाएं, पहाड़ी भूगोल, ग्लेशियरों की जटिलता, सीमावर्ती गांवों का पलायन, सीमा पर जनसंख्या का कम होना, और चीन की लगातार बढ़ती गतिविधियां- ये सभी उत्तराखण्ड के लिए रणनीतिक चुनौती हैं और रणनीतिक शक्ति भी।
बाहरी सुरक्षा की दृष्टि से उत्तराखण्ड में सड़क, सुरंग, संचार, हवाई पट्टियों और सैन्य लॉजिस्टिक सपोर्ट को और अधिक मजबूत करने की आवश्यकता है। वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम इस दिशा में एक बड़ा कदम है। सीमांत गांवों में आबादी लौटे, युवा लौटें, व्यापार बढ़े, तभी सीमा सुरक्षित होगी। याद रखिए! निर्जन सीमा सबसे बड़ा खतरा है और आबाद सीमा सबसे बड़ी सुरक्षा।
आंतरिक सुरक्षा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। उत्तराखण्ड भूकंप, भूस्खलन, ग्लेशियर फटने, चरम मौसम जैसी प्राकृतिक चुनौतियों से जूझता है, जिनका प्रभाव सीधे राज्य की सुरक्षा पर पड़ता है। ड्रग्स, कट्टरपंथ, फेक न्यूज, साइबर अपराध, और सीमा पार से आने वाली सूचनात्मक छेड़छाड़- ये सब भी प्रदेश की आतंरिक सुरक्षा को प्रभावित करते हैं। समाधान केवल एक है, मजबूत शासन, मजबूत समाज और जागरूक नागरिक।
साथियों,
भारत की संस्कृति में प्रकृति केवल संसाधन नहीं, आराधना है। सनातन धर्म में प्रकृति देवत्व है- नदी माँ है, पर्वत देवता हैं, वृक्ष जीव हैं। सिख धर्म कहता है- “पवन गुरु, पानी पिता, माता धरत महत।” अर्थात- हवा गुरु है, जल पिता है और धरती माता है।
यह वही दर्शन है जिसने उत्तराखण्ड को 71 प्रतिशत वन क्षेत्र दिया, एक ऐसा भू-भाग जहाँ प्रकृति केवल दृश्य नहीं, जीवन है। उत्तराखण्ड में चिपको आंदोलन, मैती आंदोलन, जल संचय आंदोलनों ने दुनिया को संदेश दिया कि प्रकृति बचाने का विज्ञान सबसे पहले भारत के पहाड़ों ने सिखाया। उत्तराखण्ड की पहचान ग्रीन प्रॉस्पेरिटी और ग्रीन इकोनॉमी है।
हमारे लिए गर्व की बात है कि मैती आंदोलन के सूत्रधार पद्मश्री श्री कल्याण सिंह रावत जी, जो वर्ष 1995 से उत्तराखण्ड में, इस अनूठी विचारधारा के द्वारा वन रोपण को बढ़ावा दे रहे हैं, आज हमारे बीच में उपस्थित हैं।
हिमालय की गोद में बसे होने के कारण हमारी जिम्मेदारी और भी बड़ी है। सतत विकास के बिना कोई प्रगति नहीं। हमें विकास भी चाहिए, लेकिन स्थिर धरती के साथ। हमें पर्यटन भी चाहिए, पर जिम्मेदार व्यवहार के साथ। प्रकृति से प्यार नहीं करेंगे तो उसका दण्ड भूकंप भूस्खलन, बाढ़, वनाग्नि आदि के रूप में भुगतना होगा।
कोविड ने दुनिया को सिखाया कि प्रकृति और पौष्टिकता से दूरी विनाश लाती है। कोविड के दौरान भारत ने पूरी मानवता की वसुधैव कुटुम्बकम् के भाव से सेवा की, भारत ने विश्व को बताया कि प्रकृति, योग, आयुर्वेद और मर्म चिकित्सा भविष्य का मार्ग हैं। आज पूरा विश्व ऑर्गेनिक और नेचुरल भोजन और मिलेट की ओर बढ़ रहा है। हमें जहरीले भोजन से दुनिया को बचाना है और उत्तराखण्ड को इसमें अगुआ बनाना है।
साथियों,
प्रकृति ने उत्तराखण्ड को जो अनमोल उपहार दिए हैं। ऊँचे हिमालय, पवित्र नदियाँ, घने वन, शांत घाटियाँ- यह हम उत्तराखण्ड के लोगों का सौभाग्य है। हमारा उत्तराखण्ड बहु-आयामी (उनसजपकपउमदेपवदंस) पर्यटन की भूमि है। आध्यात्म, साहसिक पर्यटन, वेलनेस पर्यटन, योग, आयुर्वेद, इको-टूरिज्म, धार्मिक पर्यटन, होमस्टे, वेडिंग डेस्टिनेशन, बर्ड वॉचिंग, आध्यात्मिक शोध- क्या नहीं है यहाँ?
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की बदरी-केदार के प्रति अगाध आस्था ने उत्तराखण्ड में तीर्थाटन को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया है। उनके मार्गदर्शन से चारधाम यात्रा का पुनरुद्धार, केदारनाथ और बदरीनाथ मास्टर प्लान, आदि कैलाश और ओम पर्वत का वैश्विक परिचय- इन सभी ने पर्यटन को पाँच गुना बढ़ाया है। प्रधानमंत्री जी जब गुंजी, हर्षिल, माणा, ऊँचे हिमालयी क्षेत्रों में गए तो उन इलाकों में पर्यटन की तस्वीर ही बदल गई।
आज चारधाम में 50 लाख से अधिक श्रद्धालु आते हैं। केवल 15 दिन में 5 करोड़ से अधिक कांवड़ यात्री उत्तराखण्ड आते हैं। यह संख्या नहीं- एक नई सांस्कृतिक चेतना है। बारहमासी यात्रा, शीतकालीन यात्रा, और उत्तराखण्ड को वेडिंग डेस्टिनेशन हब बनाने की प्रधानमंत्री जी की परिकल्पना- यह न केवल आर्थिकी को मजबूती देगी बल्कि उत्तराखण्ड को भारत का पर्यटन राजधानी भी बनाएगी। हमें प्रसन्नता है कि उत्तराखण्ड भारत का पर्यटन हब बनने की ओर बढ़ रहा है।
मैं लेफ्टिनेंट जनरल वी.के. चतुर्वेदी जी, लेफ्टिनेंट जनरल ए.के. सिंह जी, पद्मश्री कल्याण सिंह रावत जी, कमांडर दीपक खंडूरी जी, और कर्नल अजय कोठियाल जी का इस विमर्श में प्रतिभाग के लिए आभार व्यक्त करता हूँ।
अंत में, मैं देश और प्रदेश के नागरिकों से कहना चाहता हूँ- राष्ट्र की सुरक्षा केवल सीमाओं से नहीं आती, वह आती है नागरिकों की जागरूकता से। इसलिए हर भारतीय को राष्ट्र प्रथम की भावना को हृदय में धारण करना होगा। उत्तराखण्ड के नागरिकों को प्रकृति, पर्यावरण, सुरक्षा और पर्यटन की संयुक्त शक्ति को पहचानना होगा।
उत्तराखण्ड की भूमि भगवान शिव का धाम है। यह भूमि केवल पर्यटन नहीं देती, यह आत्मा को शांति देती है, चरित्र को शक्ति देती है और जीवन को दिशा देती है।
आप सभी से बस एक ही आग्रह है- राष्ट्र की सुरक्षा को अपनी आत्मा में स्थान दें, और उत्तराखण्ड की प्रकृति को अपनी जिम्मेदारी समझें। इसी में भारत का वर्तमान भी सुरक्षित है, भविष्य भी सुरक्षित है, और विश्व में भारत का नेतृत्व भी सुनिश्चित है।
इस आशा, अपेक्षा और विश्वास के साथ इस देवभूमि, वीर भूमि, अध्यात्म की भूमि को नमन कर अपनी वाणी को विराम देता हूँ।
जय हिन्द!