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    17-11-2025 : श्री गुरु तेग बहादुर जी की 350वीं शहीदी दिवस के उपलक्ष्य में ‘‘हिन्द की चादर, एक सर्वाेच्च बलिदान गाथा’’ कार्यक्रम के अवसर पर माननीय राज्यपाल महोदय का सम्बोधन

    प्रकाशित तिथि : नवम्बर 17, 2025

    जय हिन्द!

    वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतह!

    श्री गुरु तेग बहादुर जी की 350वीं शहीदी दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में, मैं आप सभी का हृदय से अभिनन्दन करता हूँ। आज इस अवसर पर हम उन्हें कोटि-कोटि नमन करते हैं।

    आज हम सभी एक ऐसे पावन उद्देश्य और गौरवमयी क्षण के साक्षी हैं, जब हम “हिन्द की चादर” श्री गुरु तेग बहादुर जी का स्मरण करने के लिए एकत्रित हैं। यह वह क्षण है जो हमारी आत्मा को झकझोर कर उसमें राष्ट्रीयता को जगाता है। यह अवसर केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि राष्ट्रधर्म, मानवीय मूल्यों और आध्यात्मिक शक्ति का एक महोत्सव है।

    मेरा विश्वास है कि ‘‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’’ कार्यक्रम के अंतर्गत देशभर में आयोजित हो रहे श्री गुरु तेग बहादुर जी के यह 350वां शहीदी दिवस समारोह राष्ट्रीय एकता, धार्मिक स्वतंत्रता और उनके सर्वाेच्च बलिदान के संदेश को देश की युवा पीढ़ी तक पहुंचाने में सफल होंगे।

    गुरूमत संगीत विद्यालय, ऋषिकेश के नन्हे बच्चों ने ‘‘हिन्द की चादर – एक सर्वाेच्च बलिदान की गाथा’’ की जो भावपूर्ण प्रस्तुति दी, उसने हम सभी के अंतर्मन को झकझोर दिया। उनकी प्रस्तुति केवल एक सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति की ज्वाला थी- जो हर हृदय में सत्य, साहस और बलिदान का दीप प्रज्वलित कर देती है। उन्होंने हमें यह संदेश भी दिया है कि राष्ट्र के लिए जीना सीखें, और आवश्यकता पड़े तो राष्ट्र के लिए मर मिटना भी।

    हमने अभी श्री गुरु तेग बहादुर जी के जीवन पर आधारित एक महत्वपूर्ण पुस्तक का विमोचन किया। इस पुस्तक में उनके जीवन की ऐतिहासिक घटनाओं को अत्यंत प्रभावी ढंग से संजोया गया है। मेरा विश्वास है कि यह पुस्तक हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक दीपक बनेगी और उनमें राष्ट्र प्रेम की ज्योति को पीढ़ी दर पीढ़ी प्रज्वलित करती रहेगी।

    साथियों,

    भारत की आध्यात्मिक परंपरा में त्याग और बलिदान एक दिव्य स्थान रखते हैं, लेकिन कुछ बलिदान ऐसे होते हैं जिनकी आभा सदियों तक मानवता के पथ को आलोकित करती है। गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान ऐसा ही अमर दीप है- जिसकी रोशनी आज भी अत्याचार के अंधकार को चीरते हुए हमें यह संदेश देती है कि धर्म की रक्षा, मानवता की रक्षा और सत्य की रक्षा किसी भी युग में सर्वाेच्च कर्तव्य है।

    गुरु तेग बहादुर जी केवल सिख पंथ के गुरु नहीं थे- वे संपूर्ण मानव जाति के रक्षक, भारत की आत्मा के प्रहरी और धर्म-संस्कृति की रक्षा के लिए प्राण देने वाले विश्व इतिहास के अनुपम नायक थे। विश्व इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता जहाँ एक महापुरुष ने किसी अन्य समुदाय की स्वतंत्रता, सम्मान और पहचान को बचाने के लिए अपना शीश चढ़ा दिया हो।

    जब औरंगजेब के अत्याचार बढ़े, जब कश्मीरी पंडितों के माथे से जनेऊ छीन लिए गए, मंदिर ढहाए गए, जब लोगों की आवाज दबा दी गई- तब वे डरे नहीं, वे विचलित नहीं हुए। बल्कि ऐसे समय में जब हिंदुत्व का अस्तित्व संकट में था, तब हिन्दुस्तान की रक्षा के लिए, उसकी अस्मिता की रक्षा के लिए, उसके मूल्यों की रक्षा के लिए एक संत ने अपना बलिदान दे दिया। यही कारण है कि भारतवर्ष उन्हें “हिन्द की चादर” कहकर नमन करता है।

    इतिहास के पन्ने बताते हैं कि जब कश्मीरी पंडित गुरु तेग बहादुर जी की शरण में आए, तब उन्होंने अपने छोटे पुत्र, बालक गोबिन्द राय- भविष्य के गुरु गोबिन्द सिंह जी- से पूछा, “दुनिया के इस संकट का समाधान कौन करेगा?” और बालक ने अत्यंत दृढ़ता से उत्तर दिया- “आपसे बड़ा कौन है?” इस एक वाक्य ने इतिहास की दिशा बदल दी। यह क्षण केवल एक पिता-पुत्र का संवाद नहीं था, यह भारत की आत्मा का आह्वान था। यह वह क्षण था जब आदेश नहीं, बल्कि कर्तव्य स्वयं गुरु के चरणों में आ खड़ा हुआ।

    गुरु तेग बहादुर जी ने अत्याचार को सिर झुकाकर स्वीकार नहीं किया, सत्य के लिए अपना सिर कटवाया। उन्होंने सिद्ध किया कि भारत की रगों में कायरता नहीं- वीरता का रक्त बहता है। उनकी शहादत केवल एक गुरु की शहादत नहीं थी, वह भारत की संस्कृति की विजय थी, वह भारत के आत्मसम्मान की विजय थी, वह तो हिन्दुस्तान की आत्मा की अमरता की उद्घोषणा थी।

    उन्होंने हमें सिखाया कि अत्याचार के सामने मौन रहना भी अत्याचार का समर्थन है। उन्होंने यह विश्वास दिया कि धर्म केवल पूजा का तरीका नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है। उन्होंने यह मान्यता स्थापित की कि सच्चा धर्म वही है, जो हर व्यक्ति के जीवन और अधिकार की रक्षा करे। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि अन्याय चाहे जितना बड़ा क्यों न हो, सत्य के आगे उसका अस्तित्व नहीं टिकता।

    गुरु नानक देव जी ने एकता का संदेश दिया,
    गुरु अंगद देव जी ने अनुशासन का पाठ पढ़ाया,
    गुरु हरगोबिन्द साहिब ने रक्षा का संदेश दिया,
    गुरु गोबिन्द सिंह जी ने वीरता का घोष किया,
    और गुरु तेग बहादुर जी ने-
    मानवता के लिए सर्वाेच्च त्याग कर दिखाया।
    इस पुण्य अवसर पर, मैं सभी दस गुरुओं के चरणों में आदरपूर्वक नमन करता हूँ।

    हम आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का हृदय से आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने साहिबजादों के महान बलिदान की स्मृति में 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाने का निर्णय लिया। आज उनकी प्रेरणा से सिख परंपरा के तीर्थस्थलों को जोड़ने के लिए भी निरंतर प्रयास किया जा रहा है।

    साथियों,

    गुरु तेग बहादुर जी के जीवन संत और सैनिक- दोनों का अद्भुत संगम था। उन्होंने हमें सीख दी कि राष्ट्र के लिए त्याग करना किसी एक वर्ग या समुदाय का कर्तव्य नहीं, यह हर नागरिक का धर्म है। चाहे आप किसान हों, शिक्षक हों, सैनिक हों, विद्यार्थी हों- जब राष्ट्र पुकारता है, तो हर व्यक्ति को उसके लिए खड़ा होना होता है।

    गुरु साहिब ने अपने ग्रंथों में अत्यंत सरल शब्दों में मानवता की परिभाषा लिखी- “न किसी से भय खाए, न किसी को भय दे।” यही भारत की सनातन परंपरा है- अहिंसा भी, और धर्म की रक्षा के लिए वीरता भी। दया भी, और अत्याचार के विरुद्ध अडिग प्रतिरोध भी। करूणा भी, और अन्याय पर आघात भी। यह संतुलन भारत की पहचान है।

    आज दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है। चुनौतियाँ भी बढ़ रही हैं। चाहे वह वैचारिक आक्रमण हो, सामाजिक विभाजन हो, या राष्ट्रविरोधी तत्वों की साजिशें हों। ऐसे समय में गुरु तेग बहादुर जी का मार्गदर्शन एक प्रकाश स्तंभ की तरह है। उनका संदेश हमें यह शक्ति देता है कि भारत किसी दबाव में नहीं झुकता, भारत किसी के आगे नहीं रुकता, और भारत की अस्मिता पर कोई आंच नहीं आने देता।

    गुरु तेग बहादुर जी का जीवन हमें सिखाता है कि राष्ट्र सर्वाेपरि है। व्यक्ति बाद में आता है, पद बाद में आता है, पहचान बाद में आती है- सबसे पहले आता है भारत। जब यह भावना हर हृदय में प्रज्वलित होती है, तभी एक सशक्त, आत्मनिर्भर और महान राष्ट्र का निर्माण होता है।

    आज यह वह अवसर आत्मचिंतन का क्षण है। जब हम स्वयं से पूछें- क्या हम उनके बताए मार्ग पर चल रहे हैं? क्या हमारे भीतर वह साहस, वह सत्यनिष्ठा, वह राष्ट्र भक्ति है, जो गुरु साहिब के भीतर थी? क्या हमारा जीवन राष्ट्र को मजबूत बना रहा है? क्या हमारी सोच मानवता को ऊँचा उठा रही है?

    आज हम उनकी शहादत को नमन करते हुए यह संकल्प लें कि भारत की एकता, अखंडता, संस्कृति और आध्यात्मिक धरोहर को किसी भी कीमत पर कमजोर नहीं होने देंगे। हम सत्य, साहस, और धर्म के उसी पथ पर चलेंगे, जिस पथ पर चलकर गुरु तेग बहादुर जी ने मानवता को अमरता दी थी। हम अपने भीतर वही ज्योति प्रज्वलित करेंगे जो गुरु साहिब के भीतर धधकती थी- राष्ट्र प्रेम की ज्योति, कर्तव्य की ज्योति, और सत्य की ज्योति।

    साथियों,

    हमें आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना है। ऐसा भारत जिसकी क्षमता को दुनिया पहचाने, जो दुनिया को नई ऊँचाइयों पर ले जाए। देश का विकास और देश की तेज प्रगति हम सभी की जिम्मेदारी है। यह सामूहिक प्रयासों से ही संभव है। मुझे विश्वास है कि गुरुओं के आशीर्वाद से भारत अपने गौरव के शिखर पर पहुँचेगा। जब हम आजादी के सौ साल मनाएँगे, तो एक नया भारत हमारे सामने होगा।

    गुरु जी का त्याग भारत की शान है, उनका बलिदान भारत का गौरव है। जब तक सूरज-चांद अस्तित्व में हैं, तब तक गुरु तेग बहादुर जी का नाम मानवता की रक्षा के प्रतीक के रूप में लिया जाता रहेगा। उनका यह संदेश सदियों-सदियों तक हर भारतीय को याद दिलाता रहेगा-
    “सत्य के लिए जियो, धर्म के लिए खड़े रहो, और अगर समय आए तो मानवता की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दो।”

    मैं अपने हृदय की गहराइयों से प्रार्थना करता हूँ कि गुरु तेग बहादुर जी की कृपा हम सभी पर बनी रहे, और हम सब ऐसी शक्ति, विवेक और साहस प्राप्त करें, जिससे हम अपने राष्ट्र को और अधिक महान, और अधिक गौरवशाली बना सकें।

    गुरु तेग बहादुर जी की शहादत केवल इतिहास की गाथा नहीं- यह भारत की आत्मा का अमर प्रकाश है। यह प्रकाश हमारे पथ को आलोकित करता रहेगा, हमारी चेतना को शुद्ध करता रहेगा, और हमारे राष्ट्र को ऊँचाइयों की ओर ले जाता रहेगा।

    इसी विश्वास, इसी श्रद्धा और इसी राष्ट्र-निष्ठा के साथ-
    वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतह!

    जय हिन्द!