30-07-2025 : कॉर्पाेरेट सामाजिक उत्तरदायित्व निधि (CSR) के माध्यम से ‘भविष्य के लिए तैयार स्कूलों के निर्माण’ के लिए साझेदारी कार्यक्रम के अवसर पर माननीय राज्यपाल महोदय का उद्बोधन
जय हिन्द!
सम्माननीय मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी, शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत जी, उद्योग जगत के प्रतिष्ठित प्रतिनिधिगण, शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारीगण, सभी उपस्थित महानुभाव,
आज का यह सुअवसर उत्तराखण्ड की शैक्षिक यात्रा में एक स्वर्णिम अध्याय के रूप में अंकित होगा। मुझे यह कहते हुए अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि आज राज्य सरकार और उद्योग जगत के बीच एक सार्थक एवं दूरदर्शी साझेदारी की ऐतिहासिक शुरुआत हो रही है।
आज का यह कार्यक्रम एक औपचारिक आयोजन मात्र नहीं है, बल्कि यह शिक्षा, सामाजिक उत्तरदायित्व और भावी पीढ़ी के भविष्य को एक नई दिशा देने की प्रेरक पहल है। यह उस विचार की परिणति है, जो कहता है – ‘‘यदि राष्ट्र को सशक्त बनाना है, तो शिक्षा को समृद्ध करना होगा।’’
आज राजभवन के इस मंच से राज्य के प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों को गोद लेने के लिए कॉर्पोरेट समूहों और शिक्षा विभाग के मध्य समझौता ज्ञापन की यह पहल न केवल राज्य की शिक्षा व्यवस्था को मजबूती प्रदान करेगी, बल्कि ‘विकसित उत्तराखण्ड’ और ‘विकसित भारत 2047’ के संकल्प को साकार करने में भी एक निर्णायक भूमिका निभाएगी।
साथियों,
हमारा भारत एक ऐसा राष्ट्र है जिसकी आत्मा शिक्षा से आलोकित रही है। प्राचीन काल में हमारे यहाँ तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला और वाल्लभी जैसे विश्वविद्यालय ज्ञान के प्रकाश-स्तंभ थे। ‘गुरुकुल प्रणाली’ के अंतर्गत जीवन के समग्र विकास- शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक- पर बल दिया जाता था। शिक्षा को ‘विद्या दान’ कहा गया, जिसे सबसे बड़ा दान माना गया।
उत्तराखण्ड, जिसे हम देवभूमि के साथ-साथ ज्ञानभूमि भी कहते हैं, प्राचीन काल से ही यह पुण्य धरा शिक्षा, संस्कृति और साधना का केन्द्र रही है। यहाँ की वादियों में तप और ज्ञान की परम्परा रही है। महर्षि व्यास, अगस्त्य, पतंजलि, शंकराचार्य जैसे ऋषि-मुनियों ने हिमालय की गोद में शिक्षा के दीप जलाए। यह भूमि न केवल भौगोलिक रूप से उन्नत है, बल्कि सांस्कृतिक और बौद्धिक रूप से भी समृद्ध है।
उत्तराखण्ड का वातावरण शिक्षा के लिए अत्यंत अनुकूल है – यहाँ की निसर्ग शान्ति, आध्यात्मिक ऊर्जा, और प्रकृति की गोद में बसे विद्यालय बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए आदर्श भूमि प्रदान करते हैं। हमें इस ऊर्जा का उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार और समावेशन के लिए करना होगा।
साथियों,
हम सभी जानते हैं कि 21वीं सदी ज्ञान और नवाचार की सदी है। ऐसे में अगर हमें विकसित भारत 2047 के संकल्प को साकार करना है, तो उसके बीज हमें आज के विद्यालयों में ही बोने होंगे। आज आवश्यकता है कि हम अपने विद्यालयों को भविष्य के लिए तैयार संस्थान बनाएं – ऐसे केन्द्र जहाँ ज्ञान के साथ-साथ संवेदनशीलता, नैतिकता और नवाचार को भी पोषित किया जाए।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 इसी दिशा में एक मार्गदर्शक प्रकाश स्तंभ की तरह है, जो समग्र शिक्षा, समावेशिता, तकनीकी कौशल और नैतिक मूल्यों पर आधारित एक ऐसे छात्र को विकसित करने का संकल्प देती है, जो केवल रोजगार के योग्य ही नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण के योग्य भी हो।
मुझे प्रसन्नता है कि राज्य सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में आधुनिक दृष्टिकोण अपनाते हुए उद्योग जगत को विद्यालयों से जोड़ने की अभिनव पहल की है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत राज्य के करीब 550 राजकीय प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों को कॉर्पोरेट समूह गोद लेंगे। यह गोद लेना केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि व्यावहारिक है- इसमें इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधार, डिजिटल शिक्षा, प्रयोगशालाओं की स्थापना, पुस्तकालय, खेल सामग्री, शौचालय, चारदीवारी जैसे आवश्यक सुधार शामिल हैं।
मुझे विशेष रूप से यह जानकर संतोष हुआ कि जिन विद्यालयों को इस योजना में सम्मिलित किया गया है, उनमें से अधिकांश पर्वतीय क्षेत्रों के हैं। यह सुनिश्चित करेगा कि दुर्गम क्षेत्रों के बच्चे भी वही सुविधाएं प्राप्त करेंगे जो महानगरों के बच्चों को मिलती हैं।
मैं शिक्षा विभाग से आग्रह करता हूँ कि वे इस पूरे अभियान में पूर्ण पारदर्शिता, जवाबदेही और समयबद्धता सुनिश्चित करें। इसके लिए राज्य स्तर पर एक स्वतंत्र निगरानी एवं मूल्यांकन तंत्र विकसित किया जाए, ताकि आपके द्वारा प्रदत्त हर संसाधन यथास्थान, यथोचित उपयोग में लाया जा सके।
साथियों,
शिक्षा किसी भी राष्ट्र के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास की रीढ़ होती है। यह व्यक्ति को सशक्त बनाती है, समाज को जागरूक करती है और राष्ट्र को प्रगतिशील बनाती है। जब हम आत्मनिर्भर भारत, विकसित भारत और विश्व गुरु भारत की बात करते हैं, तो उसका मूल आधार गुणवत्तापूर्ण, समावेशी और मूल्य- आधारित शिक्षा ही है।
आज की यह साझेदारी ‘कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी’ यानी सी.एस.आर. फंड के माध्यम से प्रदेश के विद्यालयों में एक नई ऊर्जा का संचार करेगी। मुझे बताया गया है कि हर कॉर्पोरेट समूह एक प्राथमिक और एक माध्यमिक विद्यालय को गोद लेकर उन्हें आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित करेगा। यह न केवल छात्रों के लिए बल्कि शिक्षकों के लिए भी उत्साहवर्धक है।
आज के डिजिटल युग में शिक्षा को केवल पुस्तकों तक सीमित रखना पर्याप्त नहीं है। हमें बच्चों को कम्प्यूटर, साइंस लैब, लाइब्रेरी, ऑडियो-विजुअल सामग्री, खेल-कूद और जीवन कौशल से भी जोड़ना होगा। यह कार्यक्रम इस दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।
साथियों,
मुझे यह जानकर भी प्रसन्नता हुई कि राज्य के 559 ऐसे विद्यालय हैं, जिनमें व्यावसायिक पाठ्यक्रम संचालित हो रहे हैं। इन पाठ्यक्रमों को कॉर्पोरेट समूहों की सहायता से अधिक प्रासंगिक और उद्योगों की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया जा सकता है। इससे युवाओं को रोजगार के अधिक अवसर मिलेंगे और उत्तराखण्ड आत्मनिर्भरता की दिशा में और आगे बढ़ेगा।
आज की यह पहल केवल अवसंरचना के स्तर पर नहीं रुकेगी। मेरा आग्रह है कि उद्योग समूह विद्यार्थियों के लिए मेंटॉरशिप प्रोग्राम, इंटरशिप, शिक्षक प्रशिक्षण और डिजिटल कंटेंट निर्माण जैसे क्षेत्रों में भी अपना योगदान दें। इससे शिक्षा की गुणवत्ता में असाधारण सुधार होगा।
साथ ही, हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि शिक्षा केवल ज्ञान का संचय नहीं है, यह चरित्र निर्माण, राष्ट्र-निर्माण और समाजोत्थान का माध्यम है। हमारी शिक्षा ऐसी हो जो विद्यार्थियों को राष्ट्र प्रथम का भाव दे, उन्हें ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और संवेदनशीलता से युक्त नागरिक बनाए।
इस अवसर पर मैं मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी एवं शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत जी को विशेष धन्यवाद देता हूँ, जिनके नेतृत्व और विजन से यह अभिनव पहल आज साकार हो रही है, उनके प्रयास से राज्य के उद्योग जगत को इस अभियान से जोड़ा। साथ ही शिक्षा विभाग के अधिकारियों को इस कार्यक्रम की परिकल्पना और क्रियान्वयन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ।
उद्योग जगत के सभी सम्माननीय प्रतिनिधियों का मैं विशेष आभार प्रकट करता हूँ, जिन्होंने शिक्षा जैसे पवित्र कार्य में अपनी संवेदनशीलता और प्रतिबद्धता दिखाई। आप सबके सहयोग से हम एक ऐसा उत्तराखण्ड गढ़ सकेंगे, जहाँ हर बच्चा समान अवसरों के साथ आगे बढ़ सके।
यह पहल केवल एक ‘समझौता ज्ञापन’ नहीं, बल्कि – राज्य, उद्योग और समाज, तीनों की साझी जिम्मेदारी के समर्पण की घोषणा है। मुझे विश्वास है कि आज का यह कार्यक्रम उत्तराखण्ड की शिक्षा में एक नए युग का सूत्रपात करेगा।
मैं आप सभी से एक करबद्ध निवेदन करता हूँ-
आइए, मिलकर एक ऐसा उत्तराखण्ड बनाएं, जहाँ हर बच्चा अपनी प्रतिभा को पहचान सके, एक ऐसा विद्यालय वातावरण बने जहाँ से राष्ट्र की महानतम शक्तियाँ जन्म लें जो चरित्रवान, कर्मठ और राष्ट्रभक्त हों।
मैं अपने उद्बोधन का समापन स्वामी विवेकानंद जी के एक प्रेरक वाक्य से करता हूँः
“यदि कोई पवित्र कार्य है, तो वह है बच्चों के जीवन को रोशन करना – यही सच्ची पूजा है, यही राष्ट्र की सेवा है।”
अंत में, मैं आप सभी के बहुमूल्य समय, सहभागिता और समर्पण के लिए मैं हृदय से धन्यवाद ज्ञापित करते हुए अपनी वाणी को विराम देता हूँ।
जय हिन्द!
जय उत्तराखण्ड!