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    04-07-2025 : आपदा प्रबंधन विभाग की बैठक में माननीय राज्यपाल महोदय का सम्बोधन।

    प्रकाशित तिथि: जुलाई 4, 2025

    जय हिन्द!

    आज मानसून की तैयारियों को लेकर आयोजित इस महत्वपूर्ण समीक्षा बैठक में आप सभी के साथ जुड़कर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। यह बैठक केवल एक वार्षिक औपचारिकता मात्र नहीं है, बल्कि हमारे प्रदेश की सुरक्षा, समृद्धि और स्थायित्व के लिए एक गम्भीर और महत्वपूर्ण संवाद है। उत्तराखण्ड की भौगोलिक परिस्थिति और जलवायु विशेषताओं को देखते हुए यह अत्यंत आवश्यक है कि हम आपदा प्रबन्धन को प्राथमिकता देते हुए समय रहते सभी तैयारियों को पूरा कर लें।

    आप सभी जानते हैं कि उत्तराखण्ड प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से अत्यंत संवेदनशील राज्य है। वर्षा ऋतु में बादल फटना, भूस्खलन, बाढ़ और सड़कों का अवरुद्ध हो जाना यहाँ आम घटनाएं हैं। इन आपदाओं को पूरी तरह रोक पाना हमारे वश में नहीं है, लेकिन इनके दुष्प्रभावों को कम करना और जन-धन की हानि को न्यूनतम करना अवश्य हमारे सामूहिक प्रयासों से संभव है। यही इस बैठक की मूल भावना भी है।

    आपदा प्रबन्धन केवल एक विभाग की जिम्मेदारी नहीं है, यह एक समग्र और साझा उत्तरदायित्व है-जिसमें सरकार, प्रशासन, आपदा प्रबन्धन इकाइयों, वैज्ञानिक संस्थानों, गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय नागरिकों की समान भूमिका है। उत्तराखण्ड राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (न्ैक्ड।) को मैं विशेष रूप से इस बात के लिए प्रेरित करता हूँ कि वह आपदा पूर्व, दौरान और पश्चात्-तीनों ही चरणों में सजग, सक्रिय और समन्वित दृष्टिकोण अपनाएं।

    गत वर्ष 26 जुलाई की बैठक में मैंने यूएसडीएमए का डैशबोर्ड बनाने और श्री केदारनाथ जी क्षेत्र में 31 जुलाई को घटित आपदा में राहत और बचाव दलों द्वारा किए गए सराहनीय कार्यों पर आधारित एक काॅफी टेबल बुक बनाने की अपेक्षा की थी। मुझे प्रसन्नता है कि 25 फरवरी 2025 को काफी टेबल बुक का विमोचन तथा डैशबोर्ड का लोकार्पण दोनों की कार्यक्रम राजभवन में संपन्न हुए। मैं आप सभी को इसके लिए बधाई देता हूँ।

    ई.आर.एस.एस परियोजना 112 में हमारे राज्य में रिस्पांस टाइम में लगातार सुधार हो रहा है। यह 22 मिनट से घटकर आज 12 मिनट से भी कम पर आ गया है। यह आप सभी की मेहनत, कर्तव्यनिष्ठा और समर्पण सेसम्भव हुआ है। मैं इसके लिए आपदा प्रबन्धन विभाग को साधुवाद देता हूँ।

    हमारे प्रदेश में इंसीडेंट रिस्पाॅन्स सिस्टम यानी आईआरएस को तहसील स्तर तक अधिसूचित कर दिया गया है। पहले यह सिर्फ राज्य स्तर पर ही था। अब जनपद और तहसील स्तर का भी आईआरएस मैकेनिज्म टीम यूएसडीएमए के प्रयासों से नोटिफाई हो गया है। इसके लिए मैं विभाग की सराहना करता हूँ।

    मैं कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा।

    भूस्खलन, बादल फटना और बाढ़ जैसी घटनाओं की पूर्व सूचना देने वाली तकनीकी प्रणालियाँ अब आवश्यक हो गई हैं। हमें प्रदेश के अधिकतम आपदा-संभावित क्षेत्रों में सटीक, तेज और विश्वसनीय प्रारम्भिक चेतावनी प्रणाली स्थापित करनी होगी। इसके लिए उपग्रह आधारित मानचित्रण, मौसम पूर्वानुमान और जिओ-फेंसिंग जैसी तकनीकों का लाभ उठाया जाना चाहिए।

    आपदा के समय सबसे महत्वपूर्ण होता है-समय पर राहत और बचाव कार्य। जिला प्रशासन, छक्त्थ्, ैक्त्थ्, पुलिस बल और चिकित्सा दलों का आपसी तालमेल और समयबद्ध कार्रवाई ही जीवन बचा सकती है। इसलिए ‘‘गोल्डन ऑवर’’ को ध्यान में रखते हुए तत्काल रिस्पांस तंत्र को और सशक्त बनाया जाए।

    मैदानी क्षेत्रों, विशेष रूप से देहरादून, हरिद्वार, रुड़की, रुद्रपुर, हल्द्वानी जैसे शहरी क्षेत्रों में जलभराव की समस्या हर मानसून में देखने को मिलती है। नगर निकायों को चाहिए कि वे समय रहते नालियों की सफाई, ड्रेनेज व्यवस्था की मरम्मत और जल निकासी की वैकल्पिक योजनाओं को लागू करें।

    भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में निर्माण कार्यों की किसी भी दशा में अनुमति न दी जाए। यदि अतिक्रमण या असुरक्षित निर्माण की शिकायत मिले तो प्रशासन तुरंत कार्रवाई करे। यह निर्णय केवल कानून व्यवस्था का नहीं, बल्कि जन सुरक्षा का विषय है।

    स्थानीय नागरिकों, स्कूलों, कॉलेजों, ग्राम पंचायतों और स्वयंसेवी संस्थाओं को आपदा प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। यह जानकारी दी जानी चाहिए कि बादल फटने या भूस्खलन के दौरान कैसे प्रतिक्रिया दें, कहाँ शरण लें और किससे संपर्क करें। डवबा क्तपससे, त्मेबनम ैपउनसंजपवदे और सामुदायिक प्रशिक्षण कार्यशालाएं हर जिले में नियमित रूप से आयोजित की जाएं।

    भारी वर्षा के बाद जलजनित बीमारियों, डेंगू, मलेरिया, हैजा आदि के फैलने की आशंका बढ़ जाती है। स्वास्थ्य विभाग को निर्देश दिए जाएं कि सभी अस्पतालों और स्वास्थ्य केन्द्रों में पर्याप्त दवाइयां, एम्बुलेंस सेवाएं और डॉक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित हो। साथ ही, स्वच्छता और पीने योग्य पानी की आपूर्ति पर विशेष ध्यान दिया जाए।

    आपदा के बाद सबसे अधिक आवश्यकता होती है-मानवता की। पीड़ितों के लिए अस्थायी आश्रय, भोजन, पानी, चिकित्सा और पुनर्वास की व्यवस्था पहले से ही सुनिश्चित की जानी चाहिए। सभी जिलाधिकारियों को चाहिए कि वे अपने-अपने जिलों के लिए विशेष राहत योजना बनाएं और उसका परीक्षण करें।

    मैं यह भी मानता हूँ कि अब समय आ गया है जब हमें आपदा को केवल संकट नहीं, बल्कि एक अवसर के रूप में भी देखना होगा, एक ऐसा अवसर जो हमें अधिक सक्षम, अधिक समन्वित और अधिक संवेदनशील बनने की प्रेरणा दे। हमें ठनपसक.ठंबा.ठमजजमत की अवधारणा को अपनाते हुए पुनर्निर्माण की प्रक्रिया को टिकाऊ, सुरक्षित और नवाचार सम्पन्न बनाना होगा।

    मैं विशेष रूप से यह कहना चाहता हूँ कि आने वाले समय में आपदा प्रबन्धन की दिशा में तीन प्रमुख तत्वों, डेटा आधारित निर्णय प्रणाली, अंतर-विभागीय समन्वय और सामुदायिक सहभागिता को केन्द्र में रखकर कार्य किया जाना चाहिए।

    आज का युग तकनीक का है। तकनीकी संसाधनों का प्रयोग आपदा प्रबन्धन के क्षेत्र में क्रान्तिकारी बदलाव ला सकता है। रडार, उपग्रह, सेंसर, ड्रोन, ळप्ै मैपिंग, मोबाइल ऐप्स, ळच्ै ट्रैकिंग, चैट जीपीटी, रियल टाइम डाटा विश्लेषण, सोशल मीडिया आदि का उपयोग करके आपदा की स्थिति में त्वरित, सटीक और समन्वित प्रतिक्रिया की जा सकती है। राहत और बचाव कार्यों में भी तकनीक का प्रयोग इस प्रक्रिया को अधिक प्रभावी, तेज और संगठित बनाने में अहम भूमिका निभा सकता है।

    आपदा के समय अफवाहें और असत्यापित सूचनाएं लोगों में भय उत्पन्न करती हैं। इसके लिए एक केंद्रीकृत सूचना प्रणाली विकसित की जाए, जहाँ से सही, त्वरित और प्रमाणिक जानकारी प्रसारित की जा सके। मोबाइल अलर्ट, सामुदायिक रेडियो, लोक संचार और सोशल मीडिया के माध्यम से जनहित सूचनाएं लोगों तक पहुंचाई जानी चाहिए।

    मुझे यह भी कहना है कि हमारी मानसून तैयारी केवल इस वर्ष तक सीमित न रहे, बल्कि एक दीर्घकालिक रणनीति के रूप में विकसित हो। जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा पैटर्न में बदलाव, आपदाओं की तीव्रता और अवधि बढ़ रही है। इसलिए हमें ‘‘जलवायु अनुकूलन आधारित आपदा प्रबन्धन’’ की दिशा में भी कदम बढ़ाने होंगे।

    आपदा प्रबन्धन की सफलता हमारी तत्परता, समर्पण और सामूहिकता पर निर्भर करती है। उत्तराखण्ड की जनता आप पर विश्वास करती है। उस विश्वास को बनाए रखना और जन-धन की रक्षा करना हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी है। हम सभी एकजुट होकर इस मानसून को सुरक्षित, संगठित और सुनियोजित रूप में पार करें-यही आज की बैठक का उद्देश्य है।

    मैं एकबार फिर से कह रहा हूँ कि, हम कई प्राकृतिक खतरों को आने से नहीं रोक सकते हैं, लेकिन जीवन और संपत्ति के नुकसान को कम करने के लिए उचित प्रबन्धन द्वारा उनके हानिकारक प्रभावों को कम कर सकते हैं। मैं सभी अधिकारियों से अपेक्षा करता हूँ कि वे सतर्कता, संवेदनशीलता और सजगता के साथ अपने दायित्वों का निर्वहन करें। आपदा में कर्तव्यपालन ही सच्ची सेवा भावना का प्रमाण है।

    इस आशा और अपेक्षा के साथ कि आप सभी समन्वय से कार्य करते हुए अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाएंगे, आप सभी को इस पुनीत कार्य के लिए शुभकामनाएं देता हूँ।

    जय हिन्द!