20-05-2025 : मधुमक्खी दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में माननीय राज्यपाल महोदय का सम्बोधन
जय हिन्द!
आज के इस कार्यक्रम में उपस्थित आप सभी भद्रजनों को मैं विश्व मधुमक्खी दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ देता हूँ।
आप सभी जानते है कि विश्व मधुमक्खी दिवस जो हर साल 20 मई को मनाया जाता है। जिसे दिसम्बर 2017 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया था, यह तिथि इसलिए चुनी गई क्योंकि यह आधुनिक मधुमक्खी पालन के अग्रणी एंटोन जानसा का जन्म दिवस है, जो एक स्लोवेनियाई मधुमक्खी पालक और आधुनिक मधुमक्खी पालन के अग्रणी थे।
इस दिवस को मनाने का उद्देश्य मधुमक्खियों और अन्य परागणकर्ता कीटों की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाना, उनके सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करना और उनके संरक्षण के लिए उपाय करना है। हम जानते हैं कि मधुमक्खियाँ और अन्य परागणकर्ता खाद्य सुरक्षा, जैव विविधता के संरक्षण और पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में शहद की मांग के कारण वर्तमान में मधुमक्खी पालन अधिक लोकप्रिय हो रहा है। जिससे मौन पालक न केवल आर्थिक लाभ प्राप्त करते हैं बल्कि मधुमक्खी पालन परागण के माध्यम से कृषि उत्पादकता बढ़ाने में भी किसानों की मदद करता है।
यह चिंता का विषय है कि वर्तमान समय में मधुमक्खियाँ कीटनाशकों का उपयोग, आवासों का नुकसान और जलवायु परिवर्तन आदि कई खतरों का सामना कर रही हैं, इसलिए आज हमें मधुमक्खियों और परागणकों के संरक्षण के लिए टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना, कीटनाशकों के उपयोग को कम करना, प्राकृतिक आवासों को संरक्षित करना और अनुसंधान को समर्थन करना बहुत जरूरी है।
साथियों,
देवभूमि उत्तराखण्ड में मधुमक्खी पालन केवल एक पेशा नहीं बल्कि एक हजारों वर्षों की विरासत एवं परंपरा रही है, जिसने हमारे जीवन जीने को आकार दिया है। हमारे मधुमक्खी पालक प्रकृति के संरक्षक एवं भूमि के रखवाले हैं, जो हमारे परिस्थिति तंत्र के लिए मधुमक्खियों के आंतरिक मूल्य को समझते हैं। इसलिए सरकार भी मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक प्रभावी कदम उठा रही है।
उत्तराखण्ड में व्यावसायिक मधुमक्खी पालन और विविध कृषि बागवानी फसलों और जंगली वनस्पतियों के परागण के लिए मधुमक्खियों के उपयोग की बहुत संभावना है। यहाँ मधुमक्खी पालन की प्रथा राज्य की एक महत्वपूर्ण पूरक आय सृजन गतिविधि रही है। हमारे यहाँ मौन पालन का कार्य व्यवसाय के साथ-साथ घरेलू उपयोग के लिए भी किया जाता है।
प्रचुर मात्रा में वनस्पतियों और जलवायु की उपयुक्तता के कारण उत्तराखण्ड में मधुमक्खी पालन की अपार संभावनाएँ हैं, लेकिन सोचनीय विषय है कि हमारे किसान अभी भी पारंपरिक प्रथाओं पर निर्भर हैं, जिसके परिणामस्वरूप गुणवत्ता और मात्रा दोनों के मामले में शहद का उत्पादन कम होता है।
इसलिए, मेरा मानना है कि राज्य में पारंपरिक मधुमक्खी पालकों द्वारा आधुनिक मधुमक्खी पालन प्रथाओं को विशेष रूप से मधुमक्खी प्रबंधन, बेहतर निष्कर्षण, शहद भंडारण और गुणवत्ता नियंत्रण जैसे क्षेत्रों में अपनाने की आवश्यकता है, निश्चित ही इससे राज्य के मौन पालकों की आय में इजाफा होगा।
हमारे प्रदेश में मधुमक्खी पालन स्थानीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है। राज्य का शहद अपनी शुद्धता और अनोखे स्वाद के लिए बहुत कीमती माना जाता है। शहद और अन्य मधुमक्खी उत्पाद कई ग्रामीण परिवारों के लिए आय का एक स्थायी स्रोत बन सकता है। इस क्षेत्र में आर्थिक संभावनाओं को देखते हुए मुझे लगता है कि हमें अपने किसानों को और जागरूक करने की आवश्यकता है।
वर्तमान में जैविक और प्राकृतिक उत्पादों की बढ़ती मांग ने घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाजारों में उत्तराखण्ड के शहद के लिए नए रास्ते खोले है, इसलिए मेरा सुझाव है कि हमारे मधुमक्खी पालक जैविक और स्थायी मधुमक्खी पालन प्रथाओं को अपनाकर अपने उत्पादों से अधिक से अधिक मुनाफा अर्जित करें।
साथियों,
उत्तराखण्ड का विशाल वन क्षेत्र मधुमक्खी पालन के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करता है। राज्य में विभिन्न प्रकार के फूल और वनस्पति हैं, जो मधुमक्खियों के लिए भोजन का स्रोत प्रदान करते हैं। मधुमक्खी पालन से न केवल शहद का उत्पादन होता है, बल्कि परागण की प्रक्रिया से फसलों की उत्पादकता में भी वृद्धि होती है।
मधुमक्खी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जो ग्रामीण क्षेत्रों में, खासकर युवाओं और भूमिहीन किसानों के लिए स्वरोजगार के अवसर प्रदान कर सकता है। उत्तराखण्ड सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में शहद उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए मधुग्राम योजना चलाई जा रही है, जिसके तहत युवाओं को प्रशिक्षण और सब्सिडी दी जाती है।
मुझे प्रसन्नता है कि आज प्रदेश के मधुमक्खी पालकों के अथक प्रयास एवं कठिन परिश्रम से शहद का उत्पादन 2000 टन से बढ़कर 12000 टन तक पहुँच गया जो विगत वर्षों में एक नया कीर्तिमान है। मैं इसका पूरा श्रेय प्रदेश के उन सभी कर्मठ और परिश्रमी किसानों, व्यवसायियों और कर्मचारियों को देता हूँ जिन्होंने सरकार के द्वारा किए जा रहे प्रयास में कदम से कदम मिला कर साथ दिया है।
मौन पालन हमारे राज्य की कृषि विरासत की आधारशिला है और हमारी पर्यावरणीय स्थिरता का एक प्रमुख चालक है। मधुमक्खी पालन के प्रति हमारी प्रतिबद्धता केवल परंपरा का विषय नहीं है यह हमारे भविष्य के लिए निवेश है। मुझे अत्यन्त खुशी है कि देश का सबसे पहला एवं अग्रणी, पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय ने मधुमक्खी पालन के प्रोत्साहन एवं विकास के लिए उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है।
साथियों,
पंतनगर विश्वविद्यालय देश का पहला ऐसा विश्वविद्यालय है जिसने अपने मुख्य परिसर में 92 एकड़ भूमि में मधुमक्खी शोध एवं प्रशिक्षण केन्द्र बनाया है विश्वविद्यालय के इस कदम से देश के अन्य विश्वविद्यालय सीख लेते हुए अपने विश्वविद्यालयों में भी मधुमक्खी शोध एवं प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना कर रहे हैं।
विश्वविद्यालय का मधुमक्खी शोध एवं प्रशिक्षण केन्द्र अनेकों नयी शोध परियोजनाओं के द्वारा नित्य नवीनतम तकनीकी का विकास का केन्द्र बना हुआ है। अभी पिछले माह मुझे मधुमक्खी शोध एवं प्रशिक्षण केन्द्र पर नवस्थापित मधुवाटिका के उद्घाटन का अवसर प्राप्त हुआ। मुझे यह जानकर अत्यन्त हर्ष हुआ कि यह केन्द्र न केवल मधुमक्खी पालन हेतु शोध कर रहा है बल्कि अनेकों ऐसे परागणकर्ता कीट जो विभिन्न फसलों के परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है उनके संरक्षण एवं पालन पर शोध कर रहा है।
मुझे बताते हुए हर्ष हो रहा है कि पंतनगर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक नया शब्द एवं अवधारणा विकसित की है, जिसको मौन-पर्यटन के रूप में उच्चारित एवं परिकल्पित किया है जिसका उद्देश्य मौनपालन के प्रति लोगों में जागरूकता लाना एवं सामान्य लोगों को मधुमक्खियों के महत्व को समझाना है मुझे यह भी बताया गया कि मधुमक्खी के विभिन्न बहुमूल्य उत्पादों द्वारा मानव रोगों का उपचार भी किया जाता है जिसको एपीथेरेपी नाम दिया गया है।
आज के युग में जहाँ लोग रसायनों के उपचार एवं प्रयोग से बचने का प्रयास कर रहे हैं वही विश्वविद्यालय द्वारा नए अन्वेषण कर प्रकृति प्रदत्त मौन उत्पादों द्वारा मानव रोग उपचार की नयी तकनीकी का विकास कर मानव समाज के कल्याण हेतु नए एवं पर्यावरण हितैशी समाधान ढूंढने में दिन-प्रतिदिन सफलता के नए आयाम स्थापित कर रहा है।
विश्वविद्यालय आज माननीय प्रधानमंत्री जी के आह्वान पर केन्द्र सरकार के साथ कदम से कदम मिलाते हुए वह सभी कार्य जैसे शोध, प्रशिक्षण एवं प्रसार के द्वारा कठिन प्रयास कर रहा है, जिससे प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश में मीठी क्रांति लायी जा सके। मुझे पूर्ण विश्वास है कि पंतनगर केवल हरित क्रांति की जननी ही नहीं वरन् भविष्य में मीठी क्रांति के जनक के रूप में भी जाना जाएगा। एक बार पुनः इस शानदार पहल के लिए मैं पंतनगर विश्वविद्यालय परिवार को हृदय से शुभकामनाएँ देता हूँ।
वर्तमान समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग समाज के लगभग हर क्षेत्र में हो रहा है क्या हम मधुमक्खी पालन में भी एआई का प्रयोग कर मधुमक्खियों की उत्पादकता में वृद्धि कर सकते है? क्या हम ब्लॉकचैन तकनीकी का प्रयोग कर उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्ता वाला शहद उपलब्ध करा सकते हैं? क्या हम शहद एवं अन्य मौन उत्पादों के निर्यात को इन तकनीकों के माध्यम से बढ़ा सकते हैं? अगर हम ऐसा कर पाएं तो उत्तराखण्ड के छोटे एवं सीमान्त किसानों के लिए यह बहुत लाभकारी सिद्ध होगा।
साथियों,
मुझे यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है कि हमारा राज्य मधुमक्खी संरक्षण की पहल करने में सबसे आगे है। हम मधुमक्खियों के सामने आने वाली जटिल चुनौतियों को समझने के लिए शोध में निवेश कर रहे है, हम ऐसी नीतियाँ लागू कर रहे है जो हानिकारक कीटनाशकों को प्रतिबंधित करती है और स्थायी खेती की प्रथाओं को प्रोत्साहित करती है।
मैं आज इस महत्वपूर्ण दिवस पर, आपसे आग्रह करता हूँ कि हम शिक्षा कार्यक्रमों के माध्यम से सामुदायिक जुड़ाव को भी बढ़ावा दें, जो मधुमक्खियों के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाएँ। हम नागरिकों को मधुमक्खी अनुकूल उद्यान लगाने, स्थानीय शहद खरीदकर स्थानीय मधुमक्खी पालकों का समर्थन करने और परागण कर्ताओं की रक्षा करने वाली नीतियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करें।
अंत में, आज की इस पावन बेला में हम सभी यह शपथ लें कि हम में से प्रत्येक इन अमूल्य मधुमक्खियों की रक्षा करेंगे, क्योंकि इनके बिना कोई कृषि नहीं, कृषि के बिना कोई भोजन नहीं और भोजन के बिना कोई जीवन नहीं है, इसी आह्वान के साथ अपनी वाणी को विराम देता हूँ।
जय हिन्द!