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    15-12-2024 : 10वें विश्व आयुर्वेद कांग्रेस एवं आरोग्य एक्सपो महाकुंभ के अवसर पर माननीय राज्यपाल महोदय का उद्बोधन

    प्रकाशित तिथि: दिसम्बर 15, 2024

    जय हिन्द!
    भगवान धन्वंतरि की जय!

    भारत के मस्तक पर्वतराज हिमालय के ऑचल में स्थित, योग एवं आयुष की पावन धरा, देवभूमि उत्तराखण्ड में 10वीं विश्व आयुर्वेद कांग्रेस और आरोग्य एक्सपो के समापन सत्र में आप सभी को संबोधित करते हुए मुझे अपार प्रसन्नता हो रही है।

    यह मंच, जिसने आयुर्वेद और समग्र स्वास्थ्य के क्षेत्र से जुड़े विचारकों, विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं और उत्साहियों को एकजुट किया है, वास्तव में अभूतपूर्व है। इस भव्य आयोजन को सफल बनाने वाले सभी महानुभावों को मैं दिल से बधाई देता हूँ।

    जब मैं कहता हूँ कि यह आयोजन अभूतपूर्व रहा है तो इसके पीछे ठोस कारण हैं। आयोजन के आरंभ में आयोजकों ने बताया था कि 5500 प्रतिनिधि पंजीकृत हैं, जिनमें 58 देशों से 320 अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभागी शामिल हैं। लेकिन आज यह संख्या 9611 तक पहुंच चुकी है! वास्तव में यह बहुत बड़ी उपलब्धि है।

    उत्तराखण्ड सरकार ने इस आयोजन को आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ आधुनिक चिकित्सा और पारंपरिक चिकित्सा के समन्वय से राज्य के स्वास्थ्य क्षेत्र को सुदृढ़ करने के अवसर के रूप में देखा। मैं इस आयोजन को सफल बनाने में उत्तराखण्ड सरकार के विशेष प्रयासों की सराहना करता हूँ।

    मेरा दृढ़ विश्वास है कि आधुनिक तकनीक जैसे कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और ब्लॉकचेन का आयुर्वेद में उपयोग, सटीक चिकित्सा, प्रिसीजन मेडिसिन की संभावनाओं को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा।

    इस 4 दिवसीय आयुर्वेद महाकुंभ में हमने विचारों, ज्ञान और नवाचारों का अद्भुत संगम देखा है। इस दौरान भारत एवं विश्व के कोने-कोने से प्रतिनिधियों, आयुर्वेदाचार्यों एवं विशेषज्ञों ने प्राचीन भारतीय चिकित्सा धरोहर आयुर्वेद को प्रसारित करने के लिए जो चितन और मंथन किया, निश्चित ही इस मंथन के अमृत परिणाम निकट भविष्य में वैश्विक फलक पर देखने को मिलेंगे।

    आयुर्वेद की आदर्श भूमि, देवभूमि उत्तराखण्ड अपनी प्राकृतिक संपदा, औषधीय पौधों के भंडार के लिए देश-दुनिया में प्रसिद्ध है। मुझे विश्वास है कि यह सम्मेलन भारत के प्राचीन ज्ञान, आयुर्वेद और योग की शक्ति को वैश्विक स्तर व्यापकता प्रदान करने में सफल होगा। साथ ही हमारी समृद्ध विरासत, आयुर्वेद के ज्ञान को, आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़कर, और प्रभावी बनाकर विश्व कल्याण में और अधिक योगदान देगा।

    आयुर्वेद व प्रज्ञा की इस पावन भूमि में 10वीं विश्व आयुर्वेद कांग्रेस का सफल आयोजन उत्तराखण्ड के साथ ही पूरे भारत और विश्व के लिए ऐतिहासिक एवं सुनहरा अवसर है। आयुर्वेद के इस महाकुंभ को उत्तराखण्ड में आयोजित कराने के लिए आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के निर्णय के लिए मैं, उनका देवभूमि वासियों की ओर से हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। निःसंदेह यह भव्य आयोजन आयुर्वेद के क्षेत्र में राज्य को नई पहचान दिलाने में भी सफल होगा।

    ये हमारे लिए गौरव का विषय है कि हमारे प्रदेश में आयोजित इस विशाल कार्यक्रम में 50 से अधिक देशों के प्रतिनिधि और 6000 से अधिक विशेषज्ञों ने प्रतिभाग किया। यहां पर आरोग्य एक्सपो में 250 से अधिक स्टॉल लगाए गए। मेरा विश्वास है कि यह सम्मेलन आयुर्वेद के क्षेत्र में परस्पर ज्ञान साझा करने व विभिन्न शोध कार्यों को बढ़ावा देने के साथ-साथ सहयोग और व्यापार के नए अवसरों को बढ़ावा देगा।

    साथियों,

    जैसा कि हम सभी जानते हैं, आयुर्वेद केवल एक चिकित्सा प्रणाली नहीं है। यह एक जीवनशैली है, एक दर्शन है, जो शरीर, मन और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित करने पर जोर देता है। आज की दुनिया, जो पुरानी बीमारियों और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही है, उसमें आयुर्वेद अपने रोकथाम-केंद्रित दृष्टिकोण और समग्र स्वास्थ्य समाधान के जरिए एक आशा की किरण प्रदान करता है।

    साथियों,

    आरोग्य एक्सपो की बात करूं तो यह आयुर्वेद की समृद्ध विरासत का एक बेहतरीन प्रदर्शन रहा है, जिसमें औषधीय पौधे, नवीन उपचार पद्धतियां, स्वास्थ्यउत्पाद और शोध प्रस्तुत किए गए। यह मंच व्यवसायों, उद्यमियों और चिकित्सकों को सहयोग और वैश्विक बाजारों तक आयुर्वेद को पहुंचाने के लिए प्रेरित करता है। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि इस शहर के डेढ लाख से अधिक लोगों ने आरोग्य एक्सपो का दौरा किया।

    मैं विशेष रूप से युवाओं को आयुर्वेद से जोड़ने के लिए किए गए प्रयासों से बेहद प्रभावित हूँ। यह आवश्यक है कि हम नई पीढ़ी को प्रेरित करें और उन्हें इस प्राचीन परंपरा को गर्व और उद्देश्य के साथ आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करें। मैं शैक्षणिक संस्थानों और शोध संगठनों से आह्वान करता हूँ कि वे मजबूत प्रशिक्षण प्रोग्राम विकसित करें, अतःविषय अध्ययन को बढ़ावा दें और आयुर्वेद में नवीन शोध को समर्थन दें।

    देवभूमि उत्तराखण्ड प्राचीन काल से ही आयुर्वेद, औषधीय संपदा और समृद्ध जैव विविधता की भूमि रही है। जिसने आयुर्वेद की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को पुनर्जीवित करने और प्रोत्साहित करने में अग्रणी भूमिका निभाई है। हम औषधीय पौधों की स्थायी खेती, स्थानीय समुदायों का समर्थन और शोध को बढ़ावा देने के प्रति प्रतिबद्ध हैं ताकि हमारे प्राकृतिक संसाधनों का लाभ आने वाली पीढ़ियों तक पहुंच सके।

    उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के अंतर्गत 20 से अधिक महाविद्यालय संबद्ध हैं। हमें गर्व है, हमारे राज्य में 100 वर्ष से भी प्राचीन महाविद्यालय हमारे छात्रों को आयुर्वेद की शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।

    साथियों,

    इस वर्ष आयुर्वेद कांग्रेस और आरोग्य एक्सपो का मुख्य विषय, ‘‘डिजिटल स्वास्थ्य-एक आयुर्वेद दृष्टिकोण,’’ यह दर्शाता है कि कैसे आयुर्वेद और आधुनिक तकनीकों का समन्वय हमें स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक नई क्रांति की ओर ले जा सकता है।

    यह दृष्टिकोण आयुर्वेदिक ज्ञान को डिजिटल प्लेटफॉर्मों के माध्यम से वैश्विक स्तर तक पहुंचाने, स्वास्थ्य सेवा को अधिक सरल और प्रभावी बनाने व आयुर्वेद को नए युग की स्वास्थ्य जरूरतों से जोड़ने में भी कारगर सिद्ध होगा।

    भारत प्रकृति के साथ अपने सह अस्तित्व के संबंध के लिए जाना जाता है। देश के कोविड-19 महामारी प्रबंधन में आयुष का बहुत बड़ा योगदान रहा। आयुर्वेद और योग जैसे परंपरागत ज्ञान के माध्यम से भारत ने न केवल स्वस्थ जीवनशैली का संदेश दिया, बल्कि ‘‘वैक्सीन डिप्लोमेसी’’ के तहत विश्व को संकट के समय राहत पहुंचाने का भी कार्य किया। इस महामारी के बाद भारत में लोग अपनी जड़ों की ओर, यानि योग-आयुर्वेद की ओर लौटकर आ रहे हैं, जो प्रसन्नता का विषय है।

    साथियों,

    भारत सरकार ने 2014 में एक अलग आयुष मंत्रालय की स्थापना करके आयुर्वेद के विश्वव्यापी विस्तार को सुगम बनाया है। जिस कारण आज आयुष तेजी से आगे बढ़ते हुए हमारे इस प्राचीन विज्ञान को वैश्विक स्तर पर नई पहचान दिला रहा है। केंद्र सरकार द्वारा संचालित ‘‘राष्ट्रीय आयुष मिशन’’ और ‘‘प्रकृति परीक्षण अभियान’’ जैसे विभिन्न कार्यक्रम आज शहरों से लेकर गांवों तक आरोग्य स्थापित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

    आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में आयुष के क्षेत्र में हुई पहलों से पिछले 10 सालों में आयुष उत्पाद निर्माण में आठ गुना बढ़ोत्तरी हुई है। अब आयुष और हर्बल उत्पाद विश्व के 150 से अधिक देशों में निर्यात हो रहे हैं। आयुर्वेद भी अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग उपकरणों के जैसी तकनीकी को अपनाकर आगे बढ़ रहा है।

    जिस देश के नागरिक, जितने स्वस्थ होंगे, उस देश की प्रगति की गति भी तेज होगी। इस सोच के साथ केंद्र सरकार सभी जिला, तहसील और गांव स्तर पर एक ही छत के नीचे आयुर्वेद की सभी दवाएं उपलब्ध कराने के लिए आयुष औषधि केंद्रों की स्थापना करने का प्रयास कर रही है। देशभर में ऐसे केंद्र खुलने से आयुष चिकित्सक परामर्श में आसानी से दवा लिख सकेंगे।

    हमारे ऋषियों ने कहा है- ‘‘आरोग्यं परमं धनम्’’! यानी, स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है। यही प्राचीन भारतीय चिंतन, आज आयुर्वेद के प्रसार के साथ पूरी दुनिया में छा रहा है। ये प्रमाण है- आयुर्वेद को लेकर बढ़ रहे वैश्विक आकर्षण का! और ये प्रमाण है कि नया भारत अपने प्राचीन अनुभवों से विश्व को कितना कुछ दे सकता है।

    साथियों,

    आज दुनिया भारत को मेडिकल और वेलनेस टूरिज्म के एक बहुत बड़े सेंटर के रूप में भी देखती है। पूरी दुनिया से लोग योग, पंचकर्म और मेडिटेशन के लिए भारत आते हैं। अब आने वाले समय में ये संख्या और तेजी से बढ़ेगी। अब भारत ही नहीं, बल्कि अलग-अलग देशों में भी आयुष प्रैक्टिशनर्स के लिए अपार अवसर बन रहे हैं। हमारे युवा इन अवसरों के जरिए न केवल खुद आगे बढ़ेंगे, बल्कि मानवता की बहुत बड़ी सेवा भी करेंगे।

    आज दुनिया ट्रीटमेंट के साथ ही वैलनेस को महत्व दे रही है। और जब वैलनेस की बात होती है, तो इसमें भारत के पास हजारों वर्ष पुराना अनुभव है। आज समय है, हम अपने इस प्राचीन ज्ञान को मॉडर्न साइंस के नजरिए से भी प्रमाणित करें। मेरा आशय एविडेंस बेस्ड आयुर्वेद से है। आधुनिक मेडिकल साइंेस की सफलता का एक बड़ा कारण है-हर प्रिंसिपल का लैब वैलिडेशन। हमारे ट्रेडिशनल हेल्थ केयर सिस्टम को भी इस कसौटी पर खरा उतरना है।

    साथियों,

    आयुष की सफलता का प्रभाव केवल हेल्थ सेक्टर तक सीमित नहीं है। इससे एक ओर भारत में नए अवसर बन रहे हैं, दूसरी ओर विश्व कल्याण के प्रयासों को भी बल मिल रहा है। 10 साल के भीतर-भीतर, आयुष देश के फास्टेस्ट ग्रोइंग सेक्टर्स में शामिल हो गया है। आज देश का युवा नए-नए आयुष स्टार्टअप्स लॉन्च कर रहा है। जो हब्र्स और सुपर फूड्स पहले स्थानीय बाज़ार तक सीमित रहते थे, अब वो ग्लोबल मार्केट में पहुँच रहे हैं। इस बदलते परिदृश्य का ज्यादा लाभ किसानों को मिल रहा है।

    ‘‘वसुधैव कुटुंबकम’’ शुरू से ही भारत की भावना रही है। हमारे पूर्वजों ने आयुर्वेद को दुनिया के सामने लाया। हम सभी के लिए खुशी की बात है कि इस वर्ष भगवान धन्वंतरि की जयंती पर 150 से ज्यादा देशों में आयुर्वेद दिवस मनाया। भारत की पहल पर, संयुक्त राष्ट्र ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने का फैसला किया। अब योग दुनिया भर के नागरिकों को लाभान्वित कर रहा है।

    साथियों,

    हमारी संस्कृति में विश्व कल्याण की भावना निहित है। “सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयः”। सब सुखी हों, सब निरामय हों। आने वाले 25 वर्षों में स्वास्थ्य क्षेत्र में हमारे ये प्रयास विकसित भारत का मजबूत आधार बनेंगे। मुझे भरोसा है, भगवान धन्वंतरि के आशीर्वाद से हम विकसित भारत के साथ-साथ निरामय भारत का सपना भी जरूर पूरा करेंगे।

    अंत में, मैं इस भव्य, सुव्यवस्थित और सफल आयोजन के लिए सभी आयोजकों को हृदय से बधाई देता हूँ। मुझे खुशी है कि यह आयोजन विचारों, अनुसंधान, और नवाचारों के आदान-प्रदान का एक उत्कृष्ट मंच सिद्ध हुआ है। और यह उत्तराखण्ड की समृद्ध परंपरा, संस्कृति और वैज्ञानिक उपलब्धियों से परिचित कराने का एक अद्भुत अवसर रहा है।आयुर्वेद जीवन का एक समग्र दृष्टिकोण है।

    आइए! हम नवाचार को अपनाते हुए एक स्वस्थ व संतुलित जीवन की ओर कदम बढ़ाएं।

    मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस आयोजन के माध्यम से न केवल उत्तराखण्ड बल्कि विश्वभर में आयुर्वेद नई ऊंचाइयों को प्राप्त करेगा। आइए, हम सभी, इस आयोजन के संदेश को विश्वभर में फैलाने और इस ऐतिहासिक अवसर पर अपनी समृद्ध विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लें।

    जय हिन्द!