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    05-11-2024 : एआईयू द्वारा आयोजित उत्तर क्षेत्र के कुलपतियों के सम्मेलन में  माननीय राज्यपाल महोदय का संबोधन

    प्रकाशित तिथि: नवम्बर 5, 2024

    जय हिन्द!

    आज मुझे इस बात की बेहद प्रसन्नता है कि शिक्षा-दीक्षा की इस पावन धरा उत्तराखण्ड में, जहां सदियों से ज्ञान की गंगा अविरल रूप से बह रही है, एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज (एआईयू) द्वारा नॉर्थ रीजन के चांसलर का एक महत्वपूर्ण विषय पर सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है।

    सबसे पहले, मैं आप सभी का इस सम्मेलन में हृदय से स्वागत करता हूँ। शैक्षणिक समुदाय के लिए अपनी समर्पित सेवा के 100 वर्ष पूरे करने पर मैं इस ऐतिहासिक संगठन को हार्दिक बधाई देता हूँ।

    ‘एआईयू’ देश के प्रमुख शीर्ष उच्च शिक्षा संस्थानों में से एक, उच्च शिक्षा, खेल, संस्कृति और अंतर्राष्ट्रीयकरण के क्षेत्र में भारत सरकार को एक शोध-आधारित नीति सलाह संस्थान है। वर्तमान में 1034 विश्वविद्यालय इसके सदस्य हैं, इसमें अन्य देशों के 18 अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय भी शामिल हैं।

    अपनी स्थापना के बाद से, यह ‘एआईयू’ भारतीय उच्च शिक्षा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह गर्व की बात है कि डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. जाकिर हुसैन और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी उन कुछ दिग्गजों में से हैं जिन्होंने एआईयू के अध्यक्ष के रूप में सेवा की है।

    यह जानकर खुशी हुई कि उत्तरी क्षेत्र के राज्यों, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली एवं जम्मू और कश्मीर के लगभग 100 कुलपति व्यक्तिगत रूप से और 100 कुलपति वर्चुअल मोड के माध्यम से बैठक में भाग ले रहे हैं।

    इस शिक्षा स्थली में हम दो दिन तक अत्यधिक प्रासंगिक और महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा करेंगे जो वर्तमान समय में हमारे लिए बहुत जरूरी हैं। हमें यहां पर चिंतन और मंथन करना है कि कैसे तकनीकी एकीकरण भविष्य की उच्च शिक्षा पद्धतियों को आकार देगा और भारत इस दिशा में किस प्रकार से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

    साथियों,

    भारत की भूमि प्राचीन काल से ही समृद्ध विरासत और सांस्कृतिक विविधता की भूमि रही है। आज, हमारी शिक्षा प्रणाली कौशल विकास और अनुभवात्मक शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये विचार हजारों साल पहले बोए गए थे? गुरुकुलों के प्राचीन ज्ञान की कल्पना कीजिए कि विद्यार्थी जंगल में अपने गुरु के साथ रहकर व्यावहारिक अनुभवों के माध्यम से सीख रहे हैं। यही प्राचीन गुरुकुल प्रणाली का सार था।

    उस समय शिक्षा केवल पाठ्य पुस्तकों तक सीमित नहीं थी। इसमें पवित्र वेदों से लेकर धनुर्विद्या, खगोल विज्ञान और चिकित्सा तक सब कुछ शामिल था। सीखना इंटरैक्टिव था, जिसमें कौशल विकास, चर्चा, बहस और कहानी सुनाना प्रमुख भूमिका निभाते थे। बरगद के पेड़ के नीचे जीवंत बहस और साथी छात्रों के साथ सीखने की खुशी पाठ्य पुस्तकों के एकाकी बंधन से बिल्कुल अलग थी।

    फिर 5वीं शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय स्थापित किया गया। यह दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था, जिसने दुनिया भर से 10,000 छात्रों और विद्वानों को आकर्षित किया। यह ज्ञान और नवाचार का केंद्र था, जिसमें एक विशाल पुस्तकालय था जिसमें लाखों किताबें थीं और खगोल विज्ञान से लेकर तर्कशास्त्र तक के विषय उपलब्ध थे।

    इसके बाद ब्रिटिश राज के आगमन ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया। अंग्रेजी बोलने वाले श्रमिकों का एक वर्ग बनाने के लिए शुरू की गई, इस शिक्षा नीति ने भारत को अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से दूर भी कर दिया।

    लेकिन आज, भारतीय शिक्षा प्रणाली पारंपरिक मूल्यों और आधुनिक प्रथाओं का मिश्रण है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 का उद्देश्य बहु-विषयक दृष्टिकोण, अनुभवात्मक शिक्षा और प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग के साथ शिक्षा प्रणाली को बदलना है।

    आज का नया भारत अपनी जड़ों की ओर बढ़ रहा है, इसलिए हमारे पास उज्ज्वल भविष्य की संभावना है। रटने की शिक्षा से कौशल-आधारित शिक्षा की ओर बढ़ना एक सकारात्मक कदम है। व्यावसायिक प्रशिक्षण और व्यावहारिक शिक्षा पर जोर देने के साथ, आज भारत गुरुकुल प्रणाली के कौशल-केंद्रित गुणों की ओर वापस लौट रहा है।

    पेड़ की छाया में वेद सीखने से लेकर ऑनलाइन डिग्री हासिल करने तक, भारत ने एक बड़ा सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव देखा है। भारतीय शिक्षा का भविष्य परंपरा और नवाचार के बीच संतुलन में निहित है। शांत गुरुकुलों से लेकर आज की तकनीक-संचालित कक्षाओं तक की हमारी यात्रा हमें समावेशिता और सहयोग का महत्व सिखाती है।

    साथियों,

    आज उच्च शिक्षा का परिदृश्य एक उल्लेखनीय परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। जैसे-जैसे वैश्विक परिवर्तन की गति तेज हो रही है, प्रौद्योगिकी हमारे जीने, काम करने और सीखने के तरीके को बदल रही है। यह आवश्यक है कि हमारे शैक्षणिक संस्थान इन परिवर्तनों को अपनाने के लिए विकसित हों।

    आज इस महत्वपूर्ण बदलाव के दौर में, जहाँ तकनीकी एकीकरण उच्च शिक्षा के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह सही समय है कि हम अपनी उच्च शिक्षा प्रणाली को तकनीकी नवाचारों के साथ जोड़ें ताकि हम एक ऐसे प्रगतिशील समाज की स्थापना कर सकें जो ज्ञान, अनुसंधान और नवाचार पर आधारित हो, जिससे वे भविष्य की चुनौतियों का सामना आसानी से कर सकें।

    बदलते वैश्विक परिवेश में आज उच्च शिक्षा में तकनीकी एकीकरण को बढ़ावा देने, मिश्रित शिक्षण मॉडल, सीखने की प्रक्रिया में एआई, आभासी और संवर्धित वास्तविकता और साइबर जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने और उच्च शिक्षा संस्थानों में सुरक्षा और डेटा गोपनीयता पर केंद्रित चर्चा बहुत महत्वपूर्ण है।

    तकनीकी एकीकरण का अर्थ केवल डिजिटल उपकरणों का उपयोग करना नहीं है, बल्कि यह छात्रों के सीखने के अनुभव को समृद्ध करना है। आज की युवा पीढ़ी को ज्ञान प्राप्त करने के लिए व्यावहारिक कौशल व अनुभव की भी आवश्यकता है। इसलिए, हमें ऑनलाइन शिक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बिग डेटा और क्लाउड कंप्यूटिंग जैसी तकनीकों का भरपूर उपयोग करना होगा।

    आज का युग सूचना और प्रौद्योगिकी का युग है। इंटरनेट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉकचेन, और डेटा एनालिटिक्स जैसी कई तकनीकों ने हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में क्रांति ला दी है। उच्च शिक्षा में तकनीकी एकीकरण केवल एक विकल्प नहीं है, यह अब एक आवश्यकता बन चुका है।

    संकट के समय में मिश्रित शिक्षा विशेष रूप से उपयोगी साबित हुई है, जैसे कि कोविड-19 महामारी, जिसने दुनिया भर में उच्च शिक्षा संस्थानों को रातोंरात ऑनलाइन सीखने को अपनाने के लिए मजबूर किया। यह मिश्रित शिक्षा हमें दूरदराज के क्षेत्रों में छात्रों तक पहुंचने में भी मदद कर सकती है।

    ऑनलाइन शिक्षा और डिजिटल प्लेटफॉर्मों के उदय ने यह संभव बना दिया है कि विद्यार्थी भौगोलिक सीमाओं को पार कर सके और उच्च गुणवत्ता की शिक्षा प्राप्त कर सके। हमें अपने पाठ्यक्रमों में भी निरंतर नवीनीकरण की आवश्यकता है, जो वैश्विक आवश्यकताओं के अनुरूप हों।

    तकनीकी एकीकरण के साथ-साथ हमारे सिस्टम और डेटा की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी आती है। शिक्षा में डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बढ़ती निर्भरता ने साइबर खतरों को भी बढ़ा दिया है। ऐसे में हमें साइबर सुरक्षा और डेटा गोपनीयता को प्राथमिकता देनी होगी।

    हमारे सामूहिक प्रयास, हमारी शिक्षा प्रणालियों में प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने की सफलता निर्धारित करेंगे, और ऐसा करने में, हम अपने छात्रों को तेजी से विकसित हो रहे वैश्विक कार्यबल में आगे बढ़ने के लिए तैयार कर सकेंगे।

    ऐसे युग में जहां प्रौद्योगिकी मानव जीवन के लगभग हर पहलू के पीछे प्रेरक शक्ति बन गई है, हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए प्रासंगिक और प्रभावशाली बने रहने के लिए इन प्रगतियों को अपनाना जरूरी है।

    साथियों,

    शिक्षकों का निरंतर अपडेट होना, इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण है। उन्हें तकनीकी प्लेटफॉर्मों का समझदारी से उपयोग करना सीखना होगा। इसके लिए, उन्हें लगातार प्रशिक्षण और विकास के अवसर प्रदान करना आवश्यक है। एक प्रशिक्षित और तकनीकी दृष्टि वाले शिक्षक ही छात्र को सही दिशा में मार्गदर्शन कर सकता है।

    हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि तकनीकी एकीकरण केवल शहरी केंद्रों तक सीमित न रहे। ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों के विद्यार्थियों को भी समान अवसर मिलना चाहिए। ताकि हम डिजिटल विभाजन को समाप्त कर सकें और सभी को तकनीकी संसाधनों की पहुंच प्रदान कर सकें।

    हमारा देश, एक युवा राष्ट्र के रूप में, अपनी शिक्षा प्रणाली को मजबूत बनाकर वैश्विक मंच पर एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी युवा पीढ़ी को 21वीं सदी में आगे बढ़ने के लिए आवश्यक उपकरणों और कौशल से लैस करें।

    साथियों,

    वर्तमान समय में शिक्षा न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए आवश्यक है, बल्कि यह राष्ट्र के विकास का भी पर्याय है। शिक्षा के माध्यम से हम अपने नैतिक, सामाजिक और आर्थिक ढांचे को मजबूत कर सकते हैं। हमें यह समझना होगा कि शिक्षा का मूल उद्देश्य केवल ज्ञान अर्जन करना नहीं है, बल्कि हमें सच्चे नागरिक, अच्छे मानव और समर्पित समाजसेवी बनाना है।

    मैं कुलपतियों के इस सम्मेलन में सार्थक और उपयोगी चर्चा के लिए आपको शुभकामनाएं देता हूँ। मुझे विश्वास है कि इस सम्मेलन के मंथन से अभिनव विचार सामने आएंगे। हम यहां एकजुट होकर ऐसी शिक्षा प्रणाली की दिशा में कार्य करेंगे जो हमारे राष्ट्र की आकांक्षाओं को पूरा करती हो।

    आइए ! हम सब मिलकर तकनीकी एकीकरण के इस मिशन को आगे बढ़ाएं, ताकि हम शिक्षा के क्षेत्र में जो संभावनाएं और अवसर मौजूद हैं, उनका पूरा उपयोग कर सकें। आइए! हम अपने विश्वविद्यालयों को ऐसे शिक्षण संस्थानों में बदलें, जो भविष्य के लिए तैयार हों, जहां ज्ञान और तकनीक का संगम हो, ताकि हमारा देश शिक्षा में एक नई ऊँचाई पर पहुंच कर पुनः विश्व गुरु के पद पर आसीन हो।

    एक बार पुनः इस सम्मेलन की सफलता के लिए मेरी ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं।
    जय हिन्द!